सिस्ट्म के बदनुमा दाग धोने आसान नहीं है, खुद को जलाना पड़ता है। सिस्ट्म तुमको तोड़मरोड़ कर अपने जैसा बनाना चाहता है और तुम हो कि बाज नहीं आते। लगे रहो जसबीर सिंह। कोई तो है जो ख्वाब के पीछे दिन और रात जागता है। (आईपीएस का गीत )।
सालों पहले एक गुंडा हुआ करता था। बाद में "गुंडा "नहीं रहा। कारनामे तो नहीं बदले बस सत्ता की गंगा ने उसको पवित्र कर दिया। हर किसी की आंख का तारा। इतना कि बौंनों (पत्रकारों) की भीड़ ( किसका नाम लूं किसको छोड़ दूं खुद भी आईने के सामने नहीं जाता हूं) उसके चरण धो कर पीना चाहता थी। ऐसे में एक दिन एक युवा आईपीएस अफसर उस जिले में गया। कानून की ताकत से दमदमाता। सत्ता की मर्जी थी। लेकिन ऐसी मर्जी में भी खुदगर्जी के चलते बहुत से अफसर बस नामचारे के लिए भाईचारा निबाह कर निकल लिए। लेकिन अशोक चक्र की ताकत को सबसे बड़ी मानने वाले उस आईपीएस अफसर ने जैसे ठान लिया था कि गुंडों की जात नहीं होती बस वो गुंडे होते है। ऐसे में अपने आप को कानून मान रहे उस खद्दरधारी को जमीन पर ला पटका। खैर कानून ने अपना काम किया सत्ता ने अपना। कांटा नहीं रहा था तो फूल भी नहीं रहता। अफसर उस वक्त के बौंनों के लिए बड़ा हीरो नहीं बन पाया। क्योंकि जितना आज के बौंनों को मिलता है उस वक्त के बौंने ज्यादा हासिल करते थे। राज्यों की राजधानियों में जमें हुए बौंने (पत्रकार जो बाद में बडे ओहदों पर दिल्ली पहुंचे) सामाजिक न्याय में जुटे हुए थे और नायकों को राज्यारोहण करा रहे थे। और फिल्मों को देखकर हीरो तलाशने वाला बीमार समाज अपने आप को सामाजिक न्याय की क्रांत्रि में नहला रहा था। दंबग फिल्म बनी नहीं थी और इसीलिए समाज के लिए ऐसे नायक की जरूरत नहीं हुई थी। ये समाज मुंबई के नैतिक रूप से भ्रष्ट्र समाज से नायकों को तलाश करता है और उन मुंबईयां चेहरों की गंदगी को स्कैंड्ल्स मैंगजीन में पढ़ता है।
ऐसे में उस अफसर को दो तीन पोस्टिंग्स और मिली और फिर उसके बारूद को सीलन भरी फाईलों में रख कर दफना दिया गया। सालों तक तो लोग उसको भूल गए जैसे वो कभी था ही नहीं। दिल्ली में दुनिया बदलने के ख्वाबों में कभी मैं ऐसे ही मिल गया था। और फिर दोस्ती हो गई। ( बौंनों के कोई दोस्त नहीं होते, बौंने खबरों के लिए दोस्ती करते है और ऊंचें लोग मोहरे देखते है। लेकिन कुछ दोस्त बन जाते है) क्योंकि न मुझे खबरों की तलाश थी न उसको कुछ प्लांट कराना था। बस दोस्ती चलती रही। फिर एक दिन पता चला कि सर्विंग ऑफिसर होने के बावजूद देश के सबसे बड़े घोटाले की पीआईएल पर उस अफसर ने अपने साईन कर रखे है। मैं हैरान था और कहा कि तुमको डर नहीं लगता है। बेहद सादा डील डौल के उस दोस्त का जवाब था कि डरता तो फिर इस नौकरी में क्यों आता। खैर बात आई गई हो गई। देश की सबसे बड़ी अदालत ने उस पीआईएल के आधार पर लूट की एक बडी़ बारात की थाली छीन ली। ( उसी मामले में सब बाराती रिहा कर दिये नीची अदालत ने) । और वो अफसर राज्य की राजधानी की उन ऊंची ईमारतों के काले कमरों में दबता चला गया जहां किसी भी आवाज को निकलने के लिए किसी खादी वाले के जूतों की खाक साफ करनी होती है या फिर जातिय गणित बैठाना पड़ता है। लेकिन इन साहब को इस राज्य से कोई रिश्ता नहीं था नौकरी में कॉडर मिल गया था तो इस रास्ते चले आएं। और जातिय रिश्ता बनाने के लिए बहुत से ऐसे-वैसे काम भी करने होते है। नहीं किए तो नहीं बना। फिर एक दिन चांस मिला तो फिर वही करतूत कर दी। सत्ता में नहीं लेकिन विपक्ष का सांसद भी सांसद होता है कौन जाने कब मुख्यमंत्री बन जाएं। अफसर साहब को अशोक चक्र का नशा था तो नेता को जनता और जाति का। हालत इतने बदतर हुए कि देश की संसद में रो रो कर हाल सुना बैठे नेता। और फिर अफसर दरबदर। ऐसी कहानियों को सुनाता रहूं तो कई पन्ने भर जाएंगे। लेकिन अफसर ने अपनी आदत नहीं बदली तो सत्ताधीषों ने बदल दी। मैं भी बदल गया। दोस्ती रही लेकिन अलमारी में किसी कोने में छिपी किताब में किसी पन्ने पर लिखी गई खूबसूरत कविता की तरह कही गुम गई।
सालों बाद एक व्हॉटऐप मैसेज आया। व्हॉटऐप पर हिंद वासियों लिखा था। लगा कि छब्बीस जनवरी के सैंकड़ों संदेशों की तरह से फॉरवर्ड मैसेज लेकिन आदतअनुसार क्लिक कर दिया। तो एक आवाज हवा में गूंजी और फिर दिल में उतर गई। जसबीर सिंह ये तुम गा रहे हो। वही सधी सी आवाज जो दिल से निकलती है और दिल में उतर जाती है। मैंने कभी शास्त्रीय संगीत की बारीकियों को नहीं जाना लेकिन ये तो मैं सुन ही रहा था कि ये सधे हुए गले से भी ज्यादा सधे हुए दिल की आवाज है। ऐसा दिल जो ख्वाब तोड़ना नहीं जानता। जो हारता है तो टूटता नहीं। आवाज के साथ बात की तो लगा कि ये ही तो जो अंधेंरे में चलते आदमी को हौंसला देती है।
और जानते है इस गीत के बोल क्या है......हिंद वासियों रखना याद हमें.......
ऐसे में उस अफसर को दो तीन पोस्टिंग्स और मिली और फिर उसके बारूद को सीलन भरी फाईलों में रख कर दफना दिया गया। सालों तक तो लोग उसको भूल गए जैसे वो कभी था ही नहीं। दिल्ली में दुनिया बदलने के ख्वाबों में कभी मैं ऐसे ही मिल गया था। और फिर दोस्ती हो गई। ( बौंनों के कोई दोस्त नहीं होते, बौंने खबरों के लिए दोस्ती करते है और ऊंचें लोग मोहरे देखते है। लेकिन कुछ दोस्त बन जाते है) क्योंकि न मुझे खबरों की तलाश थी न उसको कुछ प्लांट कराना था। बस दोस्ती चलती रही। फिर एक दिन पता चला कि सर्विंग ऑफिसर होने के बावजूद देश के सबसे बड़े घोटाले की पीआईएल पर उस अफसर ने अपने साईन कर रखे है। मैं हैरान था और कहा कि तुमको डर नहीं लगता है। बेहद सादा डील डौल के उस दोस्त का जवाब था कि डरता तो फिर इस नौकरी में क्यों आता। खैर बात आई गई हो गई। देश की सबसे बड़ी अदालत ने उस पीआईएल के आधार पर लूट की एक बडी़ बारात की थाली छीन ली। ( उसी मामले में सब बाराती रिहा कर दिये नीची अदालत ने) । और वो अफसर राज्य की राजधानी की उन ऊंची ईमारतों के काले कमरों में दबता चला गया जहां किसी भी आवाज को निकलने के लिए किसी खादी वाले के जूतों की खाक साफ करनी होती है या फिर जातिय गणित बैठाना पड़ता है। लेकिन इन साहब को इस राज्य से कोई रिश्ता नहीं था नौकरी में कॉडर मिल गया था तो इस रास्ते चले आएं। और जातिय रिश्ता बनाने के लिए बहुत से ऐसे-वैसे काम भी करने होते है। नहीं किए तो नहीं बना। फिर एक दिन चांस मिला तो फिर वही करतूत कर दी। सत्ता में नहीं लेकिन विपक्ष का सांसद भी सांसद होता है कौन जाने कब मुख्यमंत्री बन जाएं। अफसर साहब को अशोक चक्र का नशा था तो नेता को जनता और जाति का। हालत इतने बदतर हुए कि देश की संसद में रो रो कर हाल सुना बैठे नेता। और फिर अफसर दरबदर। ऐसी कहानियों को सुनाता रहूं तो कई पन्ने भर जाएंगे। लेकिन अफसर ने अपनी आदत नहीं बदली तो सत्ताधीषों ने बदल दी। मैं भी बदल गया। दोस्ती रही लेकिन अलमारी में किसी कोने में छिपी किताब में किसी पन्ने पर लिखी गई खूबसूरत कविता की तरह कही गुम गई।
सालों बाद एक व्हॉटऐप मैसेज आया। व्हॉटऐप पर हिंद वासियों लिखा था। लगा कि छब्बीस जनवरी के सैंकड़ों संदेशों की तरह से फॉरवर्ड मैसेज लेकिन आदतअनुसार क्लिक कर दिया। तो एक आवाज हवा में गूंजी और फिर दिल में उतर गई। जसबीर सिंह ये तुम गा रहे हो। वही सधी सी आवाज जो दिल से निकलती है और दिल में उतर जाती है। मैंने कभी शास्त्रीय संगीत की बारीकियों को नहीं जाना लेकिन ये तो मैं सुन ही रहा था कि ये सधे हुए गले से भी ज्यादा सधे हुए दिल की आवाज है। ऐसा दिल जो ख्वाब तोड़ना नहीं जानता। जो हारता है तो टूटता नहीं। आवाज के साथ बात की तो लगा कि ये ही तो जो अंधेंरे में चलते आदमी को हौंसला देती है।
और जानते है इस गीत के बोल क्या है......हिंद वासियों रखना याद हमें.......
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