Monday, March 26, 2018

गांधी का रास्ता उम्मीद का रास्ता है, निराशा की दलदल नहीं। दांडी यात्रा पार्ट- 1

गुजरात में दांडी यात्रा के बाद दिल्ली के रास्ते में आते वक्त सोच रहा था कि दांड़ी यात्रा में मैने क्या हासिल किया। साबरमती आश्रम की ओढ़ी हुई सादगी में मिश्रित एक अहमन्यता का भाव तो दांडी में सैफी बंगले में उदास सी दिखती हुई ईमारत। सरकार के नाम पर जनता के टैक्स से मजे लूटते हुए ब्यूरोक्रेट और हर जीत के बाद बौनी होती राजनीति । 87 साल पहले जिस यात्रा ने सदियों से गुलामी की जंजीरों को ढो रहे एक देश को खड़ा करने की कोशिश की थी और यकीन दिलाया था कि आजादी से भी बड़ी चीज है आत्मसम्मान हासिल करना। आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी के योगदान को लेकर हम सब कई बार बहसों में उलझते है, कई गर्म दल के समर्थको को लगता है कि क्रांत्रिकारियों की भूमिका को ढकने का काम किया गया है और आजादी के बाद पैदा हुई कांग्रेस ने पूरी जीत का श्रेय बरास्ते गांधी नेहरू को थमा दिया। इस पर वाद विवाद होता है। कई बार आप इस तरफ होते है कई बार आप उस तरफ होते है। आप भगतसिंह और गांधी को एक दूसरे के सामने खड़ा करने की कोशिशों को कभी नकारते है कभी स्वीकारते है। आजादी के बाद गांधी के चेलों की कमाई को लेकर और कांत्रिकारियों के घर वालों की भीख मांगने की हकीकतों से आपका मन उचाट होता है। और मैं भी इन सब सवालों के बीच झूलता रहता हूं लेकिन इस बात गुजरात के चुनाव के वक्त मुझे कवरेज के तौर पर प्लॉन देना था। और मैंने कई बार सोचा और फिर गांधी ही मुझे याद आएँ। 
कई आंदोंलनो को देखने के बाद और गांधी के साबरमति आश्रम के प्रवास के दौरान उनकी कार्यशीलता पर नजर डाली। और फिर मुझे उनका दांडी यात्रा के वक्त दिया गया उनका वो शानदार भाषण मिला जिसमें उन्होंने कहा था कि चाहे मैं कव्वे की मौत मरूं या सियार की लेकिन स्वराज लिए बिना साबरमती आश्रम वापस लिए नहीं लौटूगा। मैं देख पढ़ रहा था और गुजरात के बारे में सोच रहा था तभी एक भाषण सामने से गुजरा और देखा था कि उसमें महात्मा ने साफ किया था कि इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि आज गुजरात पहल करता है तो कल सारा भारत जाग्रत होगा। और मुझे लगा कि यही वो सिरा है जिसको लेकर गांधी जी और उनके सपने को आज की राजनीति के बरक्स परखा जा सकता है। और फिर मैने तय किया किया की दांडी की यात्रा की जाएं। पैदल 387 किलोमीटर । गांधी के पदचिह्हों पर चलते हुए। लेकिन बाद में चुनावी कार्यक्रम को देखते हुे इसमें फिर से बदलाव किया और तय किया गया कि चुनाव के लिए दौरे करते वक्त दांडी यात्रा की जाएं। मुझे लगा कि यदि इस तरह से यात्रा करूं और नाम दूं दांडी यात्रा तो ये एक किस्म का दगा होगा। और मैने यात्रा का नाम बदल दिया और नाम रखा गया चुनाव की दांडी यात्रा। और फिर शुरू हुआ एक कांत्रि को समझने का सिलसिला। मैं सोच रहा था कि गांधी की दांडी यात्रा आजादी की लडाई के लिए चल रहे आंदोलनों का एक अहम हिस्सा थी बस इतना ही। लेकिन जैसे ही मैेने साबरमती आंदोलन पर बात करनी शुरू की तो पता चला कि आंदोलन को भले ही आजादी के बाकि आंदोलनों से इस लिए जोड़ दिया जाएं कि इसका मकसद अंग्रेज सरकार से आजादी की मांग करना है लेकिन ये आंदोलन उससे कही आगे का था। ये आंदोलन देश की सदियों की नींद से उठाने की कहानी है। ये कहानी देश को दुनिया की आंखों में आंखे डालकर खड़ा करने की कहानी है। इस आंदोलन ने गांधी के सपनों का भारत कैसा होगा उसकी बुनियाद रखने की कहानी है। इस आंदोलन ने कई ऐसे कदम चले जो हिंदुस्तान में इससे पहले किसी सियासतदान ने सोचे भी नहीं थे। चुनाव के बहाने ही सही मैंने हिंदुस्तान के बदलते हुए कलेवर को इस दौरान महसूस किया। मैं सिर्फ चुनाव कवर करने ही नहीं गया था बल्कि बदलाव की उस प्रक्रिया को देखने गया था जिसने हजारों साल की गुलामी से निराशाओं णें डूबे हुए देश को बदलाव की उम्मीद दी थी। और सबसे बड़ी उम्मीद थी कि गुलामी से मुक्ति के साथ सामाजिक कुरीतियों से मुक्ति। आजादी की लड़ाई से भी बड़ी लडाई थी जातिवाद की दलदल जिसमें कोई राजनेता उतरना तो दूर झांकना भी नहीं चाहता था और ऐसे में एक बेहद पतला दुबला शख्स अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा फैसला करता है कि गुलामी की इस जड़ को खत्म करना है इसके खिलाफ युद्ध का उद्घोष हिंदुतान की अँगडाई थी। आजादी की लडाई का श्रेय निसंदेह एक के सर नहीं है लेकिन दांडी की लडाई ने दूसरी कई बातों का सेहरा गांधी के सर बांधा है। मैं इस यात्रा में आपको अपनी समझ के मुताबिक इस यात्रा को देखने की कोशिश करूंगा। अगर आपके पास कुछ समय हो तो जरूर देखिए एक ऐसी यात्रा जिसने देश को बदवाव के रास्ते पर डाला लेकिन आज वो तमाम रास्ते जिन पर चल गए गांधी गए थे बदहाली का शिकार है। इस यात्रा पर एक ही टिप्पणी थी उस गांव से जहां गांधी ने पहली बार गांव वालों को दलितों के साथ बैठा दिया था उस गांव के इतिहास में पहली बार। वही गाधी जी की नाक टूटी हुई मूर्ति एक गंदे से कमरे में कूड़े के बीच थी और मैंने सामने रह रहे एक नौजवान से पूछा कि क्या यही वो जगह है जहां गांधी जी ने दांडी यात्रा के दौरान सभा की थी तो उस नौजवान ने हंसते हुए जवाब दिया कि ये तो मालूम नहीं लेकिन यहां कमरे में एक गांधी जी रखे हुए है। मैंने सन्न रहते हुए पूछा कि किस क्लास में पढ़ते हो तो उसने जवाब दिया कि वो एमएससी कर रहा है इंड्रस्ट्रियल कैमिस्ट्री थेे और वो वही सामने के घर में रहता है और मै कुछ कहता तो उसने पहले ही कह दिया कि ये दलितों की बस्ती है।

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