त्रिपुरा से निकल कर बादलों के घर चला आया। मेघालय। बादल यहां आंख-मिचौली नहीं करते है बल्कि आपके इर्द-गिर्द अठखेलियां करते हैं। मेघालय तक का रास्ता हरे-भरे जंगलों से भरे होकर गुजरता है। गुवाहटी से पूरा रास्ता खूबसूरत जंगलों से होकर गुजरता है। आपकी आंखों को हरियाली भा जाती है। फिर शिलांग से पहले विशाल झील। इसको अभी आंखों में भरा ही था कि लंबे जाम को पार कर शिलांग की ओर। शिलांग के अंदर घुसते ही वो जाम की झुंझलाहट जैसे छू-मंतर। कुछ साल पहले शिलांग के पुलिस बाजार में सिर्फ एक बड़ी ईमारत के तौर पर कोने पर एक तिकोनी सी बिल्डिंग थी। और बाजार में सब्जियां और फल अपनी पीठ पर टोकरियों में बेचते हुए मुस्कुराते हुए चेहरे। लेकिन इस बार तो जैसे सब कुछ उलट चुका है। बहुमंजिल ईमारतें दिख रही है। एक बड़ा ट्यूरिस्ट प्लेस बन गया है।
मेघालय का नाम बचपन में चेरापूंजी के नाम से ज्यादा पहचानते थे। सबसे ज्यादा बारिश की जगह। लेकिन अब वो जगह बारिश होने के लिए नहीं बल्कि न होने के लिए जानी जाती है। बारिश अब मसिनराम की ओर निकल गए है। इस बार चुनाव कवर करने पहुंचा हूं तो सीधा मेघालय नहीं बल्कि त्रिपुरा के रास्ते पहुंचा हूं। त्रिपुरा जहां एक दम से शांत और मुस्कुराते चेहरों का राज्य है जिसके लोगों से आप सीधे बात शुरू कर सकते है। मेघालय भी शांति से बात करता है और मुस्कुराहट से आपका स्वागत करता है अगर आप पर्यटक है तो। लेकिन भाषा बदल जाती है। त्रिपुरा में आप कही भी हिंदी में बात कर अपना जवाब हासिल कर सकते है। लेकिन मेघालय में ये थोड़ा सा मुश्किल है। यहां स्थानीय भाषाओं के अलावा आपको अगर किसी भाषा की जरूरत है तो वो इंग्लिश है। यहां राजकीय भाषा के तौर पर भी इंग्लिश है। और माहौल में एक अजीब सी कशमकश दिखती है। अब आप पर है कि आप उसको किस तरह से पहचानते है।
अभी त्रिपुरा की राजनीति पर भी नहीं लिख पाया हूं क्योंकि यात्रा इतनी तेजी से कर रहा हूं कि खुद को रात में लिखने से ज्यादा आराम कर अगले दिन की कवरेज पर ध्यान देने को मजबूर पाता हूं। तो मेघालय पर उसके बाद लिखूंगा। लेकिन ड़ाऊकी नदी की खूबसूरती और मालिंगलौंग की सफाई को आज देखने गया था। मन मोह लेती है आप का।
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