Monday, March 26, 2018

आसमान के नीचे दो दोस्त। कीर्ति स्तंभो की कहानी भी इतिहास का खूबसूरत अनछुआ किस्सा है।



अरे...वाह. क्या खूबसूरत...बेमिसाल ....इतने अकेले . आकाश में टके हुए दो खूबसूरत से सितारे , जमीन से आसमान को छूने की आदिम इच्छाओं को दर्शाते हुए दो दरवाजे .. एक जीवन पद्धति की कहानी सुनाते हुए दो किस्सागों... अकेले में बदलते हुए जमाने को देखते हुए वक्त के दो मुसाफिर... या फिर इतिहास की दरिंदंगी के चश्मदीद ... थक कर अपने लम्हों को जीते हुए दो खूबसूरत से दरवाजे......( चालीस फीट ) ..
वडनगर के इतिहास की कहानी को आपस में बतियाते हुए दो कीर्ति तोरणों को देखने के बाद आप के मुंह से भले ही न निकले लेकिन आपका दिमाग सिर्फ इन्हीं विचारों के इर्द-गिर्द घूमता है।
कई बार लोगों को लगता होगा कि चुनाव कवर करते -करते जाने कहां से इतिहास घुस आता है, लेकिन मैं सोचता हूं कि चुनाव आने वाले कल के सपने देखता है तो इतिहास इस चुनाव तक पहुंचने की एक खिड़की है। हजारों साल का सफर तय करने का गर्वीला दावा करने वाली मिट्टी ने इस सफर को किस तरह से तय किया। संस्कृति के डीएनए में शामिल वो कौन से जीन है जिनके सहारे हजारों बदलावों को झेला, आत्मसात किया और सफर को जीती रही। इसी लिए मुझे इतिहास पसंद है। इसीलिए इतिहास मुझे जरूरी लगता है। एक खास मकसद से लिखे गए इतिहास को पढ़ा तो भ्रमित हुआ। बचपन में गांव की सर्द रातों में जलते हुए पूर की आधी सी रोशनी में, सदियों को समेटे हुएे किस्सागों की कहानियों और इतिहासकारों के अक्षरों के बीच की खाई को यात्राओं ने और चौड़ा किया। सिर्फ सुन कर नहीं देख कर और पढ़कर भी इस देश की इतिहास की यात्रा आपकों एक नया सच दिखाती है जो किताबों से अलग होता है। गुजरात के चुनाव को कवर कर रहा था, हर जिले की धूल का स्वाद चखता हुआ, पानी देखता हुआ गुजर रहा था। और फिर महेसाणा जिला, पाटीदारों के इस जिले से इस बार गुजरात में बदलाव का नारा बुलंद था। युवा पाटीदार हार्दिक की अगुआई में युवा सड़कों पर थे और बीजेपी कही दूर खड़ी देख रही थी। महेसाणा का ये बदलाव राजनीतिक तौर पर एक बड़ा बदलाव है 1984 में जब बीजेपी दो सीटों पर सिमट गई थी और उसके दो जन्मदाता चुनाव हार चुके थे तब महेसाणा ने बीजेपी को एक सीट दी थी। ये पार्टी से इस जिले का रिश्ता था। लेकिन मैं खोज रहा था कि आखिर उस वक्त भी इस जिले ने बीजेपी मे क्या देखा था। खैर ये अलग यात्रा है। पीटीसी और पैकेज में लिख कर स्टूडियों भेज दी जाने वाली । लेकिन अपनी यात्रा दूसरी है
और वडनगर में मोदी मेरे लिए इस यात्रा का एक बेहद छोटा सा हिस्सा दिखे। दिल्ली से वडनगर छोटा सा एक अनाम गांव दिख रहा था और मोदी महानायक लेकिन उलके उलट वडनगर में कदम रखते ही मोदी एक हिस्सा हो गए और हंसता हुआ वडनगर एकाएक इतिहास का नायक दिखने लगा। शर्मिष्ठा तालाब की कहानी में मोदी का मगरमच्छ वाली कहानी बाहर दिल्ली में तालाब से बड़ी थी लेकिन यहां तालाब बड़ा है। ताना-रीरी से लेकर ह्वेनसांग तक की कहानी यहां की फिजाओं में गूंजती है।लेकिन तालाब के किनारे खड़ा कहानी पर बात ही कर रहा था कि मेरे मददगार ने कहा कि सर चलिए फिर कीर्ति तोरण दिखाता हूं आपको। फिर एक नई कहानी। मुझे लगा चलो-पता नहीं कैसा तोरण है क्योंकि पूरी यात्रा में सरकारी रेस्टहाउस के नाम पर एक शेर और तोरण पढ़ता हुआ आया था। युवा ने कहा कि सर आप तोरण देख कर खुश हो जााओंगे। मैंने सोचा चलो ये भी देख ही लेते है, मुझे लग रहा था कि सुबह से कैमरा संभाले हुए वीडियो जर्नलिस्ट अंदर से नाराज हो रहा होगा क्योंकि काम करने की एक सीमा होती है एक दिन के अंदर।लेकिन मेरी जिज्ञासा उसको वहां तक खींच लाई। गलियों से गुजरते हुए हम वडनगर के बन रहे सिविल हॉ्सपीटल की विशालकाय ईमारत के सामने से गुजरे. लेकिन देसी कीकर, नीम, बरगद और झाड़ियों के बीच धूल से अटा हुआ रास्ता ऐसा नहीं लग रहा था कि कोई ऐसी जगह ले रहा हो जहां मुझे आश्चर्य हो। लेकिन बस चलता जा रहा था। और फिर गलियों में से घुसा कर बस्ती के बीच के एक प्लॉट से घिरे चबूतरे पर बना हुआ एक खूबसूरत सा तोरण दिखा। बस्ती के घरों में बने हुए इस खूबसूरत तोरण का नाम कीर्ति से अलग हो ही क्या सकता था। मैं ऊंचे चबूतरे पर इस तोरण को देख ही रहा था कि अचानक आगे वाला भी दिख गया। दो खूबसूरत से तोरण। उन पर उकेरी गई और उन पर लगाई गई खूबसूरत सी मूर्तियां। कोई बारहवी शताब्दी का तो कोई आठवीं शताब्दी का बता रहा था। खूबसूरती में डूबी हुई आंखें थोड़ा करीब जाती है तो फिर शुरू होता है दर्द का एक सिलसिला। हर एक मूर्ति का चेहरा पूरी तरह से तहस-नहस किया है। यहां तक कि ऊपर तोरण के बीच में बनी हुई खूबसूरत विशाल मूर्ति के चेहरे को तोड़ कर रखा गया है। दोनों तोरणों के बीच में अब मकान है । दालान पार करना होता है। और फिर वहां पड़े हुए पत्थर दिखते है। अब काले पड़ गए है। आपको लगता है कि शायद ये पत्थर इन स्मारकों को ठीक करने के लिए वहां रखे गए है तो पता चलता है नहीं ये पत्थऱ इन्हीं तोरणों से रिश्ता रखते है। ये आर्कियोलॉजी के अधिकार क्षेत्र में है लेकिन कोई जानकारी वहां किसी को नहीं है। घरों से उत्सुकतावश लोग निकलते है क्योंकि उनको कभी कभी स्टिल फोटो लेने वाले तो दिखते है, मोबाईल से सेल्फी लेने वाले भी दिख जाते है लेकिन न्यूज चैनल वाले कभी कभी ही दिखाई देेते है। ऐसे में उनसे बात हो पाई। ये तोरण सोलंकीकालीन है। हिंदुस्तानी शिल्प के ये बेजोड़ नमूने गुजरात की समृद्ध संस्कृति का एक गौरवशाली पन्ना है। लेकिन इनका रिश्ता अलाउद्दीन से जुड जाता है। अलाउद्दीन ने जब दीन के लिए दरिंदों की फौंज उस वक्त हिंदुस्तान की धरती को रौंदने के लिए तैयार की हुई थी ये उसी की दरिंदगी का एक और अनदेखा नमूना है। मैं मोधेरा का सूर्यमंदिर देख चुका था जो इसी जिले में है और सबसे बड़़े चार सूर्यमंदिरों में से एक है। अलाउद्दीन की नृशंसता और शैतानी कारनामों की बहुत सी मिसाल देख चुका था लेकिन ये कीर्ति तोरणों के साथ उसकी ये कहानी फिर से नई थी। अब कीर्ति तोरणों की कहानी जान लीजिए।
ये कीर्ति तोरण सोलंकीकालीन है। सोलंकी राजवंश के राजाओं ने अपनी विजय के फलस्वरूप यहां एक विशाल मंदिर बनाया था। दोनों तोरण उसी मंदिर का बचा हुआ हिस्सा है। वडनगर उस वक्त हिंदु संस्कृति का एक बडा़ केन्द्र था। स्कंद पुराण में वडनगर के बारे में विस्तार से लिखा गया था। इतिहासकार मानते है कि ये दोनो तोरण एक विशाल मंदिर का बचा हुआ हिस्सा है और जो पत्थर आज भी आसपास बिखरे हुए है वो मंदिर के ध्वंसाशेष के बाद वही छोड़ दिये गए पत्थर है। तोरण में उस वक्त के धार्मिक आस्थाओं के मुताबिक देवी, देवताओं, यक्ष-यक्षिणियों, पशु-पक्षियों के माध्यम से धार्मिक कहानियों को उकेरा गया है। ये पीले भूरे बलुआ पत्थर से बने विशालकाय स्तंभ एक ही विशाल शिलाखंड से उकेरे हुए है। पत्थरों को जोड़ने के लिए किसी तरह से सीमेंट या दूसरी चीजों का इस्तेमाल नहीं किया गया है। शुरूआत में ये स्तंभ एक पहेली के तौर पर सामने आए कि आखिर इनका क्या मतलब है और क्यों इस तरह से खड़े किए गए फिर खुदाई के बाद मंदिर के अवशेषों और नींव, मूर्ति और नक्शों के आधार पर इस बात का पता लगाया कि मंदिर आताताईयों की धर्मांधता का शिकार हुआ लेकिन कीर्ति स्तंभ अपना बयान देने के लिए सैंकडो़ं साल का सफर तय करते हुए यहां तक पहुंचे।
मैं गुजरात में था कि पद्मावति की फिल्म को लेकर विवाद चल रहा था और मैंने कई राणा अय्यूब टाईप पत्रकारों को अलाउद्दीन को एक मसीहा मानते देखा। और फिर रास्ते भर ( कार से दिल्ली से आया था) अलाउद्दीन की शैतानी मनोस्थिति के शिकार हुए शहरों को देखा। एक अजब सा रिश्ता देखा मध्यकालीन इतिहासकारों में (इरफान तो पंसदीदा है ही) पूरे देश को भुलावे में डालने के लिए एक गजब का इतिहास रच दिया। सुल्तान के साथ आएँ हुए इतिहासकारों के वर्णनों में से सिर्फ चुंनींदा हिस्सों को लेकर एक नई गाथा गढ़ दी गई औऱ कीर्ति स्तंभों जैसे स्तंभों पर मिट्टी फेर कर पूरा वक्त बदल दिया गया। लेकिन यात्रा एक सवाल तो जरूर खड़ा करती है कि इतना करने में कभी आपके जमीर ने सवाल नहीं खड़ा किया क्यों दोस्तों। क्या कभी नहीं लगा कि एक देश को हजार साल के इतिहास से जुदा कर देना कोई अपराध हो सकता है। चलिए कोई गुस्सा नहीं ।
लेख का पता नहीं लेकिन आप सौमित्र के कैमरे से लिए हुए फोटोंओं के सहारे आसमान के सीने में खड़े हुए खुबूसूरत से दो दोस्तों को देख सकते है।

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