Monday, March 26, 2018

अलविदा मेहुल... ये स्पार्टा है, तुम्हारी दुनिया नहीं। कमजोर हो तो खुद ही मौत को गले लगा लो नहीं तो दुनिया के पास बहुत फंदें है। मवाद से रिसते हुए घावों से भरे समाज में अपने पर दया करे हम।

अलविदा मेहुल... ये स्पार्टा है, तुम्हारी दुनिया नहीं। कमजोर हो तो खुद ही मौत को गले लगा लो नहीं तो दुनिया के पास बहुत फंदें है। मवाद से रिसते हुए घावों से भरे समाज में अपने पर दया करे हम। 
जन्मदिन था। मां की आंखों में नमी थी। जुबां और दिल दोनों पर आशीष थे। लेकिन 11 साल की मेहुल को मालूम था कि अब ये शब्द बाहर नहीं निकल पाएंगे। जन्मदिन का तोहफा तो वो रात में ही मां के साथ तय कर चुकी थी। मेहुल और उसकी मां दोनों ने किस्तों के उस फ्लैट में जन्मदिन की आखिरी तैयारियां की थी। उसी कमरे में जिस में मेहुल को हर खुशी देने की जद्दोजहद से जूझती हुई मां ने मेहुल का नाम दिया था। दोनों ने रस्सी को ठीक बीच में बांधा था। लेकिन जब गले में अपने से फंदा कसना था दोनों का दिल डर गया। मां और मेहुल दोनों ने इस बात पर साझा किया किया था कि दोनों में से कोई भी बच गया तो दुनिया की संगदिली शायद और भी बुरी मौत से नवाज देगी। रात भर एक बेटी डरती रही और मां बार बार अपने जिगर के टुकड़े गले में जन्मदिन के दिन खुशी का हार देने की बजाय रस्सी का फंदा कसने से बचती रही। और फिर दोनों से तय किया कि मौत को इस तरह से चुनने में शायद रिस्क ज्यादा है और दर्द भी ज्यादा है। निसंदेह वो दुनिया में जीने के दर्द को इस दर्द से ज्यादा मान चुकी थी इसी लिए इस दर्द को उन्होंने चुना था। फिर भी एक अहसास मां को डरा रहा था कि अगर मेहुल बच गई और वो खुद बच गई तो मेहुल का क्या कर देंगी ये दुनिया। 
खैर दोनों ने अपना ईरादा बदला और नींद में ही मौत की गोद में जाने का तरीका सोचा। और समझ में आया कि यदि फिनाईल पी ले तो कष्टरहित तरीके से मौत की गोद में समाया जा सकता है। दोनों ने रात में फिनाईल पी ली और सो गई। लेकिन ये नींद आखिरी नींद नहीं थीं सुबह दोनों की नींद खुल गई और फिर वही दुनिया उनके सामने थी जिससे वो डर कर छोड़ने की कोशिश कर रही थी। मां कुछ देर के बाद बाहर गई और वापस आकर ब्लेड से अपनी कलाई की नसें काट ली। कुछ ही पल में खून से लथपथ और दर्द से तड़पती मां की चीखें सुन कर मेहुल कमरे में पहुंची और मां को इस तरह देख कर उसने फौरन अपने कमरे में जाकर रात भर से टगें हुए फंदे को अपने गले में कस लिया और वो झूल गई। खून से सने कमरे में मां बेसुध और दुसरे हिस्से में फंदे पर झूलती मेहुल। उसके बाद की कहानी बस इतनी है कि मेहुल की मां के साथ कुछ साल से लिव-इन में रहने वाला शख्स ( कुछ के मुताबिक शादी कर ली थी लेकिन वो शख्स पहले से शादीशुदा है) पहुंच गया। गार्ड की मदद से एक फ्लैट की बॉलकनी से कूद कर कमरे में पहुंचा। मां को हॉस्पीटल पहुंचाया गया लेकिन मेहुल हॉस्पीटल सिर एक मुर्दा के तौर पर पहुंची। 
कहानी जरूर एक मेहुल की है लेकिन ऐसी खबरें रोज अखबारों में दम तोड़ रही है। मेहुल की मां महज पैतीस साल की थी।शादी के बाद एक बेटी मेहुल हुई और फिर पति से डाईवोर्स हो गया। दिल्ली में आकर एक प्राईवेट नौकरी की और बेटी को बड़ा करने लगी। फिर एक शख्स के साथ नये सिरे से जिंदगी शुरू करने की कोशिश की। बातें तो बहुत होती है क्योंकि हम बातें करते है। उठाई गई हड्डी से नहीं बल्कि अपने ही मसूड़ों से निकले खून से प्यास बुझाते हुए समाज के तौर पर भौंकतें हुए बातें ही निकलती है। एक बात के मुताबिक ड्राईवर शादीशुदा था और ये बात महिला को बाद में पता चली। महिला की कुछ दिन पहले नौकरी छूट गई थी। इससे किश्तों पर लिए गए फ्लैट की किश्त और बेटी के स्कूल की फीस दोनों ही देने की दिक्कतें पेश आने लगी। इसी बीच में मेहुल का जन्मदिन आया और मां ने अपने दोस्त को कई फोन किए लेकिन बातचीत हल कड़वा ही था। इसी बात ने मां को शायद दुनिया से बेजार कर दिया और उसने ऐसा कदम उठा लिया। ये कदम कितनी दिक्कतों के बाद उठाया था उसको सिर्फ ऐसे देखा जा सकता था कि जो आखिरी लाईंने घर में लिखी मिली वो थी कि हमारे शव को किसी को नहीं देना और हमारा अंतिम संस्कार लावारिस के तौर पर करना। इस फ्लैट को बेचकर लोन चुकाकर जो भी बचे उसको मेरी मां को दे देना। अब मेहुल की मां अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही है। अकेली उसी डर के साथ जिस डर ने उसको मजबूर किया था कि अपने बेटी को भूखे भेड़ियों में बदल चुके समाज में छोड़ने से बेहतर था कि उसको मौत का तोहफा दे दे। ये खबर साथ साथ चल रही थी। लेकिन शायद ही कुछ लोगों ने देखी या पढ़ी होगी। क्योंकि मेरी आंख के सामने सभी अखबारों में लिखा था कि “रोशनी चली गई”।

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