Monday, March 26, 2018

एक और "जय जवान जय किसान", दूसरी ओर "अगस्त मौत का महीना"। डीएम साहब सिर्फ जनता की कमाई पर राज करने के लिए है क्या।

अभी तक हम लोग फ्रैंच क्रांत्रि का वो आधार वाक्य ही पढ़ते थे कि "रोटी नहीं है तो क्या हुआ केक खाओं।" लेकिन इस तरह की प्रतिभाएं सिर्फ फ्रांस में हुई हो ऐसा नहीं है इसका बेहतरीन मुजाहिरा किया है सिद्धार्थनाथ सिंह ने।बीजेपी के चश्मों-चिराग सिद्धार्थनाश सिंह ने एक और मुहावरा किताबों में लिखवा दिया है। बच्चों की मौत पर दुख मनाने वालों परेशान मत हो क्योंकि आपके बच्चों की मौत अगस्त नाम के महीने ने ली है। उसको कोई इनसिफैलाईटिस, जापानी बुखार फिर और कोई बीमारी नहीं हुई थी। अगस्त का महीना शुरू हो चुका था इसीलिए बच्चों को मरना था मर गए। इसमें सरकार का क्या दोष है। इस खोज के लिए यूपी के मुख्यमंत्री को ईनाम भी देना चाहिए सिद्धार्थनाथ सिंह को और हो सके तो इसके लिए चिकित्साक्षेत्र में खोज के लिए नोबेल के लिए भी रिकमंड करना चाहिए। 
योगी जी को शायद वो तमाम धर्म की बातें भूल गई है या फिर नौकरशाही ने भुलवा दी है। जिनमें कहा जाता था कि राज लोकलाज से चलता है वो आँकडों से चलाने लगे।
हो सकता है कि आपके पास जो आंकड़े हो वो कुछ कहानी कह रहे हो लेकिन क्या आपको राजधर्म मालूम नहीं है। क्या जिस भगवान राम की कहानी सुनाते है उसका धर्म मालूम नहीं है। किस लिए इतना महान त्याग किया गया। लोक समाज की धारणा क्या है ये भी याद नहीं रही। योगी हो इनको कैसे भूल सकते हो। चाणक्य भले ही याद न हो लेकिन राम तो याद रहने चाहिए।
जनता के दिल से तभी उतर गए जिस दिन कड़ी कार्रवाई के नाम पर हर मुद्दे पर जांच होने लगी अब तो नजरों से भी उतर रहे है ये तमाम लोग।
इस पूरे मुद्दे पर कई दिन देखने के बाद भी जिस बात का अफसोस होता है कि डीएम साहब को किस दिल में छिपाकर रखा है। डीएम साहब किस मर्ज की दवा है वो भी गोरखपुर के। चिट्ठी पर लिखे हुए हर्फ हर किसी की पोल खोल रहे है। आप जो चाहे बहाना बना लो लेकिन इस बात से कोई इंकार कर पाएंगा कि डीएम ऑफिस को गई चिट्ठी को उसने कूड़ें के ढेर में फेंक दिया होगा। क्या डीएम साहब के लिए ऑक्सीजन की कमी से बच्चों के मरने का अंदेशा कोई अंदेशा नहीं है। या किसी ट्रांसफर-पोस्टिंग्स का हिसाब बन रहा था। क्या चल रहा था। जिस डीएम के पास ये ताकत सिस्ट्म ने दी है कि वो किसी भी वक्त अपने चीफ सेकेट्री से बात कर सकता है किसी भी घटना की सूचना दे सकता है यहां तक किसी सत्तारूढ़ नेता का कुत्ता खोने की चिंता में भी घुल सकता है उसको दर्जनों बच्चों की संभावित मौत का आशंका ने जरा भी भयभीत नहीं किया तो इसका कारण और कुछ नहीं नौकरशाहों को लूट की संवैधानिक छूट की वजह है। उनका क्या सकते है नेताजी ( वैसे भी ये तो कुछ करने ही नहीं जा रहे है सिर्फ घंटों भर का भाषण देने के अलावा) अरे ट्रांसफर और सस्पैंशन के अलावा इनके हाथ में है क्या। क्योंकि किसी भी राज्य से आजतक ऐसे लोगों को बर्खास्त करने की जोरआजमाईश नहीं होती है। इनको ताकत किस लिए दी गई थी और ये क्या करने लगे। क्या सरकार को नहीं लगता कि जिले के मालिक के तौर पर राज करने वाले को चिट्ठी मिली और वो सरकार की चिट्ठी से ही गायब है।
दरअसल सिस्ट्म ने गरीबों को और उनके बच्चों को ऐसे मुर्गों और बकरों में तब्दील कर दिया है जिनका कोई मसीहा नहीं। बस कटते रहो वोट के वक्त गिनवा दिया जांएगा कि फलां जाति के बकरों को भेड़ियों की ड्रैस दे दी गई। फ्लां जाति के मुर्गें को बाज के कपड़े पहनादिए गये है।
आखिर जिस डीएम को रात में ही मौके पर होना चाहिए वो कहां था क्या ये जांच का हिस्सा होगा। नहीं उसतक किसी को जाने की फुर्सत नहीं है। ये डॉक्टर इस तरह कमीशन खोरी कर रहे थे ये खबर किसी को नहीं थी। बेचारी एलआईयू का काम है कितने रिक्शेवाले शक्ल से खूंखार दिख रहे है। और ज्यादातर जगह तो फलां साहब किस नेता के करीब जा रहे है ये ही रिपोर्ट हो रही थी। हो सकता है कि आपको लगे कि ये किस तरह की रिपोर्ट है लेकिन ये सड़े हुए सिस्ट्म की संडांध है जिसका शिकार ज्यादातर लोग कभी भी हो सकते है। लेकिन नौकरशाहों का एक वर्ग ऐसा इम्यून है कि उसतक हाथ पहुंचना असंभव है। नेताओं को जिनता गाली जनता देती है उतनी ताकत नौकरशाहों की बढ़ती है और एक नया शगल मुझ जैसे बौंनों के गैंग पाल रहे है कि साहब इनको काम नहीं करने देते। क्या इसमें कोई ड़ीएम साहब का हाथ पकड़ लेता। बात को बहुत सारी है। दरअसल सत्ता में आएँ हुए नेता इन नौकरशाहों के इंद्रजाल में इस तरह फंसता है कि वो सिर्फ सामने वाले नौकरशाह को देखता है जड़ देख ही नहीं पाता कि कौन है जो इस जाले को बूुनता है लिहाजा जितने दिन सत्ता में रहता है इन नौकरशाहों के लिए टुकड़े जुटाता रहता है। और ये जी जी करके उसके हाथ में कुछ टुकड़े रख देते है ये कहते हुए कि मालिक आप ही आप है।
खैर ये तो अभी बदल नहीं रहा है कम से कम हाल के योगी जी के कदमों से तो नहीं बदल रहा है लेकिन बात है सिद्धार्थनाथ सिंह के करिश्माई बयान की गजब की बात है।
दुख इसलिए भी है कि आज दशकों बाद भी खेत में बैठा हुआ किसा भी जिस लालबहादुर शास्त्री जी का नाम लेते ही हाथ जोड़ लेता है और देश के किसी भी हिस्से में चले जाएँये किसी भी गांव में ट्रैक्टर ट्राली पर लिखा हुआ मिल जाएंगा "जय जवान जय किसान" । किसी भी भाषा में लिखा हुआ मिल जाएँगा यहां तक कि आप इतनी भाषाओं को पढ़ नहीं सकते है।
इतना सम्मान देता है महज ढाई साल तक इस देश की सत्ता संभालने वाले शास्त्री जी को। बहुत से प्रधानमंत्रियों के नाम आप किसी बच्चें से पूछना शुरू करो वो कोई भी नाम भूल सकता लेकिन शास्त्री जी का नहीं। बहुत से लोग आज भी उन्हीं शास्त्री जी की वजह से हफ्ते में एक दिन खाना नहीं खाते है या फिर एक वक्त उपवास रखते है,. उन्हीं लालबहादुर शास्त्री जी के नाम पर सत्ता में अपना टुकड़ा हासिल करने वाले सिद्धार्थनाथ सिंह ने उनको कितनी चोट पहुंचाई होगी ये वो शायद ही समझ पाएं।
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