Thursday, April 23, 2009

कविता

आज पुरानी किताब के पन्ने उलटते हुये कुछ कविताओं पर नजर गयी। मैं उनमें से कुछ कविता यहां दे रहा हूं कवि का नाम कविता के बाद लिख दिया है।



तुम्हारे शब्द पत्थर है, पर तुम्हारी वाणी वर्षा है,
तुम्हारी पीठ समुद्र पर दोपहर है,
तुम्हारी हंसी उपनगर में छिपी धूप,
तु्म्हारे खुले केश सुबह की छत पर एक तूफान,
तुम्हारा उदर समुद्र की सांस और दिन का स्पंद है,
तुम्हारा नाम मूसलाधार और तुम्हारा नाम चारागाह है,
तुम्हारा नाम पूरा ज्वार है,
पानी के सारे नाम तुम्हारे है,
लेकिन तुम्हारा यौन अनामित है,
होने का दूसरा चेहरा,
समय का दूसरा चेहरा।
..................................आक्तावियो पाज
सरियलिस्ट लव पॉयम्स टेट से पब्लिश




वह मेरी पलकों पर खड़ी है,
और उसके केश मेरे हाथ में हैं,
उसकी आकृति मेरे हाथों जैसी है,
मेरी आंखों जैसा उसका रंग,
वह मेरी परछाईयों में समायी है,
जैसे आकाश पर एक पत्थर ।
...........................................आंद्रे बेतों
प्रेम हमेशा पहली बार से साभार



रात देर गये हम फल बीनने गये,
जो मेरे मृत्यु स्वप्नों के लिये चाहिये थे,
वे बैंजनी अंजीर ,
पुरातन मृत घोड़े,बाथ टब की शक्ल में,
गुजरते है पास से और ओझल हो जाते हैं,
सिर्फ खाद बोलती है,
हमें आश्वत करती हुयी।
...........................रेने सां

Wednesday, April 15, 2009

बेटा बन रहा हूं एक बार

दिन भर दुनिया में,
अपने हिस्से का नमक बहाकर लौटता हूं,
दो मंजिला घर की सीढिंया चढते वक्त,
न मुझे दुनिया की याद रहती है,
न दुनिया में बहाये अपने नमक की,
मेरा सारा ख्याल बस एक घंटी में बस जाता है,
मैं घंटी बजाता हूं,
दो दरवाजे पार अंदर से उठता है जैसे एक तूफान,
दरवाजे के सीखंचों के बीच से झांकता है,
जल..
पापा आ गये,
मैं भूल जाता हूं,
दुनिया में कम हो गया मेरा एक और दिन,
मेरे गले मे उसकी बांहे,
मुझे बेगाना कर देती है,
इन दरवाजों से बाहर की दुनिया से,
मेरे दिल की धड़कन,
जैसे उसकी धड़कन से मिलती है,
मेरी सांस में उसकी हवा महकती है,
मैंने कभी नहीं सोचा था,
पिताजी घर में घुसते ही,
क्यों पूछते है,
कहां गया है बब्लू,
घर से बाहर इस वक्त,
मैं जब लौटता हूं घर पर,
क्यों नहीं मिलता है घर पर,
कभी पढ़ नहीं पाया,
पिताजी की आंखों को,
पल भर में क्या-क्या गुजर जाता है,
उनकी आंखों के सामने से,
जब वो देखते हैं लौट कर मुझे,
जल मेरी बांहों में और मैं समझ रहा हूं
मेरी गोद में जल नहीं
पिताजी की गोद में खेल रहा
बब्लू है
कैसे समझूं
कि
मैं बेटा बन रहा हूं
फिर से एक बार

Tuesday, April 14, 2009

कौन सा धर्मयुद्ध

तलवार मेरे हाथ में थी...
उन्होंने दी थी,
धार इतनी तेज कि खतरनाक नहीं.... खूबसूरत लगी,
चमक इतनी कि आंखे चौंधियां दी.
फिर मेरे हाथ में गीता दी,
कहां कि धर्म युद्ध में रिश्ते नहीं होते,
सिर्फ कर्तव्य होता है,
बात साफ थी,
तलवार को अपने और पराये में अंतर नहीं करना था,
मेरे उडा दी हर वो गर्दन जो भी मेरी पहुंच में थी,
पहुंच में थे, रिश्तेदार, दोस्त और जान-पहचान के लोग।
सब को मैंने देखा
रोटी के लिये लड़ते हुये।
रोटी के लिये रेंगते हुये,
लेकिन ये लोग शांति को खतरा थे,
और मेरे कानों में गीता गूंज रही थी,
जमीन पर लुढ़कती हर एक गर्दन मुझे नशा देती थी,
फर्ज पर मर-मिटने का नशा,
तलवार घूमाते-घूमाते मैं थक कर झुका... तो नजर में आ गया उनका चेहरा
मेरे हाथ में तलवार देने वाले लोग,
खून से प्यास बुझा रहे थे,
मेरी तलवार से मारे गये लोगों के खून से,
मैं अकबकाया .....
मेरा हाथ धीमा हुआ,
मैंने उनकी तरफ घूरा,
चिल्लाया कि क्या ये धर्मसम्मत हैं,
उनकी आंखों में डर नहीं उपहास था,
उन्होंने हंसते हुए कहा कि लो हो गयी इसकी जबान भी गज भर लंबी
इसका दौर भी पूरा हुआ,
मैं तलवार उठाता उनके खिलाफ,
उससे पहले ही मेरे पांव फिसलने लगे,
मैंने पहली बार देखा जमीन को,
जिस पर मैं खड़ा था,
वो खाई पर जमी... बर्फ की जमीन थी
जिसके नीचे उन्होंने अब आग जला दी थी।

Friday, April 10, 2009

कैसे जियोगे जल अपनी जिंदगी

शिकारियों ने मार गिराया शेर को पालतू कुत्तों के साथ,
शेरों की संख्या अब जल्दी हो जायेगी निल....,
लेकिन शेर नहीं बदलता अपनी आदत,
बारिश में तलाश करना साये की,
पेड हो या फिर कोई मुंडेर,
हर पंछी की यही जरूरत होती है।
मैंने बाद में जाना कि बादलों के पार....
उड जाता है बाज बारिश से बचने के लिये,
बाज खत्म हो रहे है अंधाधुंध शिकार के चलते।
इन सबके बीच ......
जल,
मैं जो कह नहीं पा रहा हूं,
तुम्हारी जानने की उम्र के बावजूद.......
अपनी शर्तों पर जीना,
हर रोज मौत की उम्मीद के साथ,
या
कुत्तों के पट्टे में,
शेरों का शिकार करते हुये,
मालिकों के हांके पर नोंचते हुये
घेरे में आये शिकार को,
उनकी शर्तों पर जीते हुये,
उसके बाद हासिल मांस के छोटे से टुकड़े से पेट भरकर,
शांति से मरना एक कुत्ते की मौत ,
इन दोनों रास्तों में कौन सा रास्ता तुम चुनोगे,
मैं नहीं जानता ,
जिंदा रहा तो तुम्हारी चाल/उडान से मुझे पता चल जायेगा।
मैं नहीं रहा तो.
श्राद्ध करने से बेहतर होगा
लिख कर रख दो मेरे पास।
कि तुमने कौन सा जीवन जिया।
और एक बात जो मैं तुम को जरूर बताउंगा,
मेरे पिता खुश नहीं है,
मेरे शांत जीवन की शर्तों से,

Tuesday, April 7, 2009

जल स्कूल जायेगा....।

जल
मैं इस दरवाजे तक तुम्हारे साथ हूं।
मैंने तुम्हे सिखाया है ,
सच बोलना ,
गलती हो तो मान लेना,
संभल कर चलना,
कुछ बाते जो मैंने सीखी
संभाल कर रखी
और तुम तक पहुंचाया
बाअदब....
मेरे पुरखों की तहजीब।
अब इस दरवाजे के अंदर
तुम को जो सीखना है
उसमें मेरा दखल नहीं है।
तुम्हें जन्म दिया,
नाम दिया मैंने,
लेकिन अंदर तुम को सीखना है,
तरीका... जिंदगी जीने के लिये,
तुम जिनको चुनोगे
जिंदगी में अपने साथी
वो बता देंगे मुझे तुम्हारी....
आगे की जिंदगी के रास्तों का पता।
मैं छोड़ रहा हूं,
आज....
तुमको इस दरवाजे के अंदर
जहां से जिंदगी की कोरी किताब पर
तुमको लिखने होंगे अपने अक्षर
ये दरवाजा
जिसे दुनिया स्कूल कहती है
मेरे लिये तुम्हारी आगे की दुनिया का
कैनवास है,
जिसकी कूंचिया तुमको तराशनी होंगी
जिसके रंग तुम को भरने होंगे।

Monday, April 6, 2009

मैं शक के दायरे में हूं आजकल

मैं शक के दायरे में हूं इन दिनो
हर दिन, हर जगह, हर पल
दिख रहा है कुछ
समझ रहा हूं कुछ
खूबसूरती,,ताकत
उभरती मल्टीस्टोरी
चमकते मॉल्स, दमकते चेहरे
तेजी से दौडता बाजार दिखता है
रात/दिन
ऊपर की और चढ़ता सेंसेक्स का ग्राफ
तस्वीरों से चमकते चेहरे
रैंप पर चढ़ते-उतरते चेहरे
जींस के बटन खुलवाते कसरती जिस्म
बटन खोलते हुये गुलाबी हाथ
मेरी नजर में है दिन -रात
झिलमिलाते तारों सी मुस्कुराहट के साथ
समाचार पढ़ती है एंकर
खनखनाती हंसी के साथ सामान खोलती लडकी
मोहक अंदाज, बेदाग अंग्रेजी में समझाते लडके
दिखते है माल्स हो या शोरूम
कम्प्यूटर पर तेजी से उंगलियां चलाती लडकियां
कार हो या फाईटर प्लेन चलाती लडकियां
लेकिन
दिमाग वो समझ नहीं पा रहा है
जो दिखा रही है नजरे ।
हजार वाट की
नियान लाईटों से बाहर निकलते ही
शुरू होते है
पार्किंग के अंधेंरे
बस स्टाप की रोती हुयी हुयी रोशनी में
अधपूछी लिपिस्टिक
आंखों से चिपकी उदासी के साथ
ऑटो- बस का इंतजार करती लडकी
ये तो वही चेहरा था।
रूक कर कोने में कस्टम शॉप पर
मोल-भाव करते
लडके की इंग्लिश कहां गयी।
समाचार
जो पढ़े नहीं गये
भूख से मरते परिवार
आत्महत्या करने वाले दंपत्ति
बस से कुचले गये बाप का
इंतजार करती मासूम आंखे
मॉल्स की रोशनी में अचानक
चढ़ जाती है मेरे दिमाग में
अखबार न पढूं ,
इंधर ने देखूं ,
उधर न सुनूं,
क्या न करूं ,
शक से बाहर आने को मैं।
स्क्रीन से ओझल
कंपनी का कोट उतारती एंकर
सैंडिल का फ्लैफ बांधती एंकर,
गाड़ी कब मिलेगी,
शिफ्ट क्या लगेगी,
कुछ तो था जो समझ नहीं पायी,
पढ़ गयी
अकाल मौत को
बेटी से बाप के बलात्कार को
मुस्कुराहट के साथ।
वरूण गांधी जेल में है,
लालू मुनाफे से चमकती रेल में है,
सचिन धोनी एड के खेल में है,
तीसरा- चौथा मोर्चा दिलों के मेल में है,
दिख रहा है रात दिन।
बेघर राहुल सोनिया
बे-कार है
मेरे पास एक अदद मोटरसाईकिल
घर और कार है।
दाई जानती थी मेरे जन्म के वक्त,
स्विस बैंकों में जमा होते है पैसे।
आडवानी ने हाल ही में जाना पहली बार
काला धन विदेशों में इकट्ठा होता है ऐसे।
आम चुनाव की कवरेज है,
देश का नक्शा ब्यूरों चीफ के सामने पेश है,
यूपी, दिल्ली, बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान पूरा,
मध्यप्रदेश में कुछ फेस है,
नार्थ ईस्ट, साउथ स्टेट से...
परहेज है।
नक्शे में पूरा दिखता
समझ में नहीं आता
कहां तक मेरा देश है।
मेरी जुबान पर मुझे शक है,
चिल्ला देगी कभी भी,
कही भी,
ये सब फरेब है।

.....मैं शक के दायरे में हूं इन दिनों

Thursday, April 2, 2009

जल का टीवी

जल ने जब पहली बार आंखे खोली
अहसास किया एक बेहद प्यारे से स्पर्श का
शब्द दिया मां
लगा जिंदगी जीने के लिये मिली है
कुछ देर बाद एक हाथ जिसमें
प्यार था लेकिन मां की तरह कोमल नहीं
वो बाप का हाथ था
लगा कि जिम्मेदारियां से कडक हो जाती है जिंदगी
फिर कुछ सफेद कपडों पहने नर्से और डॉक्टर मिले
प्यार और देखरेख की जिंदगी में कडवे घूंट
और इंजेक्शन की चुभन भी सहनी होगी।
ये दुनिया बड़ी आसान सी दुनिया थी
लेकिन घर में जब जल ने टीवी देखा
तो उसकी समझ से बाहर हो गयी दुनिया
और अब वो जिस दुनिया में जी रहा है वों
मां- बाप , डॉक्टर और नर्स की दुनिया नहीं हैं
ये वो दुनिया भी नहीं है
जिसमें जिये है उसके पुरखे।
जल को रास्ता बनाना है
उस दुनिया में
जो जमीन पर नहीं, हवा के सहारे चलती है।
जिसमें इंसान खून से नहीं फ्रेम से पहचाना जाता है।