यात्रा से एक बात समझ में आती है कि इस देश ने इतिहास से रिश्ता तोड़ लिया था। या तो इतिहास से मुक्त हो गया था कर दिया गया था। आत्महीनता की ग्रंथियों जूझता हुआ एक झूठे इतिहास के दम पर कागज की तलवार से लड़ने लगा। ये बात मध्य कालीन इतिहास के बीच में समझ में आती है कि क्यों इस तरह का अंधकार पैदा किया गया प्राचीन इतिहास और मध्ययुगीन भारत के बीच। लेकिन आजादी के बाद उसी मध्य युग को सच बना कर पूरे देश की स्मृति पर चेप दिया गया। और उन्होंने स्वीकार भी कर लिया।
ये बात मुझे काफी हैरान कर रही है कि लेकिन एक कहानी भी बता रही है कि वेस्ट से हासिल ज्ञान से आधुनिक युग से रिश्ता जोड़ने वाले राजनेताओं ने प्राचीन भारत से अपनी जड़े काटने की कोशिश को प्रश्रय क्यों दिया इसका बड़ा कारण वेस्ट का पुराने इतिहास को मध्यकालीन इतिहास से तुलना करना था।
आजादी के बाद इसी इतिहास से टूटे रिश्तों की वजह से आजादी के दीवानों को दूध में गिरी मक्खी की तरह भूला दिया। आजादी के दीवानों और अपनी जान गंवाने वालों के घर वालों को भीख मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा। ये भी इतिहास से टूटे रिश्तों की वजह से हुआ। ऐसे कई परिवारों की कहानियों से बावस्ता हुआ कि जिनकी जमीनों को नीलाम कर दिया गया और आज उनके परिवार वाले ठोंकरे खाकर उनके घरों के बाहर बैठ कर रोटी मांग रहे है जिनको अंग्रेजों के जूते चाटने के लिए पुरस्कृत किया गया। हजारों किलोमीटर की ये यात्रा मुझे बहुत सारी उलझनों में डाल रही है तो उनको सुलझाने के कुछ सूत्र खोजने के लिए भी मजबूर कर रही है। लग रहा है जैसा इस यात्रा को शुरू करते वक्त था अब जब यात्रा के आखिरी पड़ाव की ओर चल रहा हूं वैसा रह नहीं जाऊंगा।
ये बात मुझे काफी हैरान कर रही है कि लेकिन एक कहानी भी बता रही है कि वेस्ट से हासिल ज्ञान से आधुनिक युग से रिश्ता जोड़ने वाले राजनेताओं ने प्राचीन भारत से अपनी जड़े काटने की कोशिश को प्रश्रय क्यों दिया इसका बड़ा कारण वेस्ट का पुराने इतिहास को मध्यकालीन इतिहास से तुलना करना था।
आजादी के बाद इसी इतिहास से टूटे रिश्तों की वजह से आजादी के दीवानों को दूध में गिरी मक्खी की तरह भूला दिया। आजादी के दीवानों और अपनी जान गंवाने वालों के घर वालों को भीख मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा। ये भी इतिहास से टूटे रिश्तों की वजह से हुआ। ऐसे कई परिवारों की कहानियों से बावस्ता हुआ कि जिनकी जमीनों को नीलाम कर दिया गया और आज उनके परिवार वाले ठोंकरे खाकर उनके घरों के बाहर बैठ कर रोटी मांग रहे है जिनको अंग्रेजों के जूते चाटने के लिए पुरस्कृत किया गया। हजारों किलोमीटर की ये यात्रा मुझे बहुत सारी उलझनों में डाल रही है तो उनको सुलझाने के कुछ सूत्र खोजने के लिए भी मजबूर कर रही है। लग रहा है जैसा इस यात्रा को शुरू करते वक्त था अब जब यात्रा के आखिरी पड़ाव की ओर चल रहा हूं वैसा रह नहीं जाऊंगा।
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