Sunday, April 25, 2010

अब तुम रूठते नहीं

अब तुम रूठते नहीं हो
मैं मनाता नहीं,
तुम तोड़ते नहीं
मैं भी अब रेत के घरोंदें बनाता नहीं।
वक्त था गुजर गया
एक भी लम्हा वापस आता नहीं।
इस रात से उस रात तक
लड़ने की बातें
जाग-जाग कर चांद के सहारे
छोटी सी मुलाकातें
रात भी आती है
चांद भी दिखता है
आवारा सा
अब वो मुस्कुराता नहीं हैं।
आग थी सो बुझ गयी
राख से कोई दिया जलाता नहीं।