सुखराम के परिवार को बीजेपी में शामिल करना या फिर गुरदासपुर चुनाव में बीजेपी की हार दोनों में से किस चीज के मायने बड़े है ये पार्टी का कट्टर कार्यकर्ता भी नहीं समझ पा रहा होगा। सुखराम वही है जिसके भ्रष्ट्राचार के किस्से सुना-सुना कर टट्पूजिंये नेता नायक बन कर सीटियां बटोरते होगे और रही बात गुरदासपुर की तो ये सीट कई बार से बीजेपी के पास थी।
बीजेपी के नेताओं के हवाई दौरे बढ़ते जा रहे है और नीचे जमीन छूटती जा रही है। बीजेपी के किसी नेता से बात कीजिएं जो एक गुड़ बुक में हो तो आपको लगेगा कि चांद सितारों तक छू लिया है अब पार्टी ने । आसमान से नीचे कुछ बचा नहीं है। और गुड़ बुक के बाहर के नेताओं से बात करो तो लगता है कि जो कुछ उन्होंने कमाया था वो तमाम जमीन के चले पहुंच गया। ये एक स्वाभाविक सी प्रतिक्रिया नहीं है। ऐसी भी नहीं जैसी सत्ता में आने पर किसी राजनीतिक पार्टी के बीच संबंधों और समीकरणों के बाद होती है। आजकल काफी सारी गतिविधियों के बीच रहता हूं। सरकार के मंत्रालयों से लेकर सरकारी लोगों के बीच में भी। एक बात जो आसानी से समझ आ रही है वो ये है कि सरकार को राजनेता नहीं चला रहे है। ये सरकार नौकरशाहों के जिम्में है। वो नौकरशाह जो पिछले तीस चालीस सालों से सत्ता के अलगअगल पायदानों पर मलाई काट रहे है। मीडिया के बौंनों को ये बड़े मासूम दिखते है इस वक्त सत्ताधारी पार्टी की रीढ़ बने हुए रीढ़विहीन नौकरशाह। ( खैर इस पर चर्चा फिर कभी इस वक्त को बीजेपी पर बात हो रही है)। बडी़ मजेदार बात है नौकरशाही में सुधार की बात करने वाले नरेन्द्र मोदी इस वक्त नौकरशाहों को रिटायर ही नहीं होने दे रहे है। खैर बात वो नहीं है बात है जमीन और पार्टी के बीच बढ़ती जा रही दूरी की। अभी दो महीने पहले ही एक ऐसी यात्रा खत्म की है जो देश के अलग-अलग राज्यों और शहरो से होते हुए मैंने की थी। लगभग 19500 किलोमीटर की यात्रा से अलगअलग अनुभव हुए थे और सबसे बड़ा अनुभव था कि जनता कि बैचेनी बढ़ रही है। वो एक के बाद एक झटके देकर भी रदेश में सुधार चाहती है। लेकिन वो जिसको भी पतवार दे रही है वो हवा से या फिर अपनी अपने सहयोगियों की सलाहों से नाव को डुबोएं दे रहा है। इस वक्त मोदी जी को लग रहा है कि उन्होंने जो बदलाव किए है वो बहुत शानदार है और जनता जो भी परेशानी भुगत रही है वो देश हित में सह लेगी। जनता ने अपना कर्जा चुका दिया है जनता ने परेशानियों को हंसते हुए स्वीकार भी किया और उसको झेला भी। लेकिन उसके बाद जो मोदी जी के सलाहकारों ने काम शुरू किया वो शायद जनता अब स्वीकार करने से इंकार कर रही है।
बीजेपी के नेताओं के हवाई दौरे बढ़ते जा रहे है और नीचे जमीन छूटती जा रही है। बीजेपी के किसी नेता से बात कीजिएं जो एक गुड़ बुक में हो तो आपको लगेगा कि चांद सितारों तक छू लिया है अब पार्टी ने । आसमान से नीचे कुछ बचा नहीं है। और गुड़ बुक के बाहर के नेताओं से बात करो तो लगता है कि जो कुछ उन्होंने कमाया था वो तमाम जमीन के चले पहुंच गया। ये एक स्वाभाविक सी प्रतिक्रिया नहीं है। ऐसी भी नहीं जैसी सत्ता में आने पर किसी राजनीतिक पार्टी के बीच संबंधों और समीकरणों के बाद होती है। आजकल काफी सारी गतिविधियों के बीच रहता हूं। सरकार के मंत्रालयों से लेकर सरकारी लोगों के बीच में भी। एक बात जो आसानी से समझ आ रही है वो ये है कि सरकार को राजनेता नहीं चला रहे है। ये सरकार नौकरशाहों के जिम्में है। वो नौकरशाह जो पिछले तीस चालीस सालों से सत्ता के अलगअगल पायदानों पर मलाई काट रहे है। मीडिया के बौंनों को ये बड़े मासूम दिखते है इस वक्त सत्ताधारी पार्टी की रीढ़ बने हुए रीढ़विहीन नौकरशाह। ( खैर इस पर चर्चा फिर कभी इस वक्त को बीजेपी पर बात हो रही है)। बडी़ मजेदार बात है नौकरशाही में सुधार की बात करने वाले नरेन्द्र मोदी इस वक्त नौकरशाहों को रिटायर ही नहीं होने दे रहे है। खैर बात वो नहीं है बात है जमीन और पार्टी के बीच बढ़ती जा रही दूरी की। अभी दो महीने पहले ही एक ऐसी यात्रा खत्म की है जो देश के अलग-अलग राज्यों और शहरो से होते हुए मैंने की थी। लगभग 19500 किलोमीटर की यात्रा से अलगअलग अनुभव हुए थे और सबसे बड़ा अनुभव था कि जनता कि बैचेनी बढ़ रही है। वो एक के बाद एक झटके देकर भी रदेश में सुधार चाहती है। लेकिन वो जिसको भी पतवार दे रही है वो हवा से या फिर अपनी अपने सहयोगियों की सलाहों से नाव को डुबोएं दे रहा है। इस वक्त मोदी जी को लग रहा है कि उन्होंने जो बदलाव किए है वो बहुत शानदार है और जनता जो भी परेशानी भुगत रही है वो देश हित में सह लेगी। जनता ने अपना कर्जा चुका दिया है जनता ने परेशानियों को हंसते हुए स्वीकार भी किया और उसको झेला भी। लेकिन उसके बाद जो मोदी जी के सलाहकारों ने काम शुरू किया वो शायद जनता अब स्वीकार करने से इंकार कर रही है।
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