हर-हर मोदी, घर-घर मोदी, हर-हर मोदी, घर-घर मोदी। तीस-पैतीस मिनट से मंच पर एक बेसुरा, और साहित्य से दूर तक भी कोई रिश्ता न रखने वाले गा रहा था। (माफ करना मैं किसी के अपमान के लिए नहीं लेकिन उसके परिचय और हकीकत की तुलना कर रहा हूं) जब मंंच पर बुलाया गया था तो उसको बड़ा कवि घोषित किया था। लेकिन भीड़ थी कि हर नारे पर स्वर से स्वर मिला रही थी। युवाओं का जोश तो मैदान की बाड़ को बार-बार तोड़ रहा था। गांव से लेकर शहर,कस्बे हर तरफ के युवा, बूढ़े उस बेसुरे की आवाज में आवाज मिला रहे थे। सूरज आसमान से आग बरसा रहा था। और मैं महीनों से जैसे लोगों का पीछा कर रहा था। तभी मंच पर अमित शाह साहब अवतरित हुए। बहुत से लोग पहले आ चुके थे। वो बैठे हुए थे। अचानक यूपी के कभी दिग्गज रहे नेता ( उम्र में सभी अमित शाह से बड़े थे) अमित शाह के पैरों की तरफ दौड़ने लगे। पैरों का सत्ता से ये रिश्ता मेरे लिए कोई अजनबी नहीं था। लेकिन मुझे हैरानी थी कि अमित शाह ने रोकने की कोशिश करना तो दूर की बात है पैर छूने वालों की तरफ देखा तक नहीं। और मैं इस साधारण से शिष्टाचार को भी ताक पर रखने वाले घमंड से भरे हुए एक इंसान को देख रहा था जिस को सत्ता मिलने वाली थी और फिर वो उस सत्ता का क्या करेगे। मैं सिर्फ कुछ लोगों से उस बात की चर्चा करके रह गया। (पश्चिमी उत्तरप्रदेश का होने की वजह से पैर छूने की परंपरा से भी कम ही रिश्ता है। यहां के लोग सीधे नमस्कार करने में यकीन करते है और बहुत ही करीब का रिश्ता हो तभी पैर छूते है)। खैर बाद में मोदी जी आ गए। रंगमंच में बदल चुके मंच पर जनता के दिलों का नायक पहुंच चुका था और मैं भी रैली में मोदी जी की आग उगलती स्पीच नोट करने में जुट गया। बात तो पुरानी हो गई लेकिन उस वक्त भी ऐसा लगा था कि क्या वाकई इतनी छिछली समझ रखने वाले और इस तरह का हवाई घमंड रखने वाले जनता के अंदर जो भूख है उसको समझ पाएंगे। क्या बदलाव का कोई बड़ा रास्ता तैयार कर पाएंगे। क्या नौकरशाहों के रचे हुए उस जाल को काट पाएंगे जिसमें सिर्फ लुटेरों को ताकत मिल रही है। जिसमें पैसे वाले को पैसा मिल रहा है और सबसे ज्यादा वोटों के लिए देश को तोड़ने की हद तक जा पहुंची राजनीति के तुष्टिकरण पर लगाम लगा सकते है। अब एक के बाद एक फैसले आ रहे है। सरकार उस मुहाने पर खड़ी हो गई है जहां सेे ऊपर का रास्ता दिखाई देना बंद हो रहा है।
सरकार की हकीकत सिर्फ कागजों में रह गई है। मोदी जी को लग रहा होगा कि वो बहुत शानदार सरकार चला रहे है। क्योंकि उनके दरबारी बता रहे होगे की विकास का घोड़ा विकास मार्ग पर बगटूट दौड़ रहा है। अभी गुजरात से चुनाव कवर करके लौटा हूं लिखने के लिए इतना सब कुछ है लेकिन उससे पहले ही जो लगातार महसूस कर रहा हूं वो दिखने लगा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास अब आंकडे़ं काफी आ गए है। क्योंकि सरकार चाहे नकारा हो लेकिन नौकरशाह काम कर रहे है। आंकड़ों का एक ऐसा झूठ जो सत्ता में बैठे हुए इंसान को पहाड़ की तरह से दिखता है। इस सरकार को लग रहा है कि वो आंकडे़ बेच कर जनता की भूख मिटा देगी। लेकिन अब वो मुलम्मा उतर रहा है। मैं इस बात को नहीं मानता हूं कि सिर्फ 2 जी ने इस सरकार को सत्ता में बैठा दिया। और इस बात को दिल और दिमाग दोनों से इंकार करता हूं कि मोदी को सीडब्लूजी के घोटाले को सामने लाने के लिए जनता ने वोट दिया है। जनता ने कुछ मूल्यों की रक्षा के लिए एक नायक के तौर पर मोदी को वोट दिया था। चुनाव के दौरान दिल्ली से कोलकाता तक कार से कारवां देखा और गुबार भी। और जनता की उम्मीदों ने धूल से एक चेहरे को फूल की तरह से उठाकर लोकतंत्र की सबसे ऊंची जगह पर सजा दिया। एक रंगमंच सा सज गया दिल्ली में।
कुछ फैसलों में लगा कि सरकार ने रास्ता खोज लिया। लेकिन जल्दी ही महसूस होने लगा कि मोदी जी नौकरशाहों के जाल में आखिर पुहंच ही गए। एक के बाद एक नौकरशाह सेवा विस्तार पाता रहा। एक से एक पोस्टिंग्स पर नौकरशाह विस्तार पा कर बैठ गए। चोरों के गैंग बीजेपी में ही आकर पवित्र होने लगे। एक- दो, हो तो आप नाम गिना सकते है लेकिन यहां तो राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को मोक्ष देने वाली जीवनदायिनी गंगा से भी बड़ी राजनीतिक गंगा गांधीनगर से दिल्ली तक पहुंच गई। लखनऊ और देहरादून की सरकार में अंधा भी किसी के हाथ रख कर ये बता देंगा कि ये साहब बीजेपी के नारों में नहीं जनता की नजर में चोर और भ्रष्ट्राचारी है। लेकिन मोदी का मैजिक जनता पर चल रहा था।
( मुझे ऐसा एक और वाक्या याद है वीपीसिंह का। जनता वीपी सिंह को चुन रही थी और वो जनाब शरद, पासवान, देवीलाल टाईप लोगों से रणनीति पूछ रहे थे। और बाद में उन्होंने सबने मिलकर चिता सजा दी थी वीपी सिंह सरकार की)
सरकार ने एक के बाद एक ऐसी करवटे बदली कि मुद्दों पर गिरगिट शर्माने लगा। जनता ने जिस गैंग के खिलाफ वोट दिया था उसी गैंग की राय लगातार सरकार की राय होने लगी। जेएनयू में देश तोड़ने के नारे लगे। वीडियों साफ दिखा रहा था। लेकिन पुलिस को नहीं दिखाई दिए। मोदी का वोटर बेचारा अपनी ईज्जत विरोधियों से बचाता रहा। फिर दूसरे मामले में ऐसा। फिर कश्मीर में ऐसी की तैसी। ( हालांकि कश्मीर में आतंकियों को मारा जा रहा है लेकिन सिर्फ इसके लिए वोट नहीं दिया गया था)। सरकार किसी किसी को सामने कर रास्ते दिखाती रही। फिर समझौतों की प्रसवपीड़ा निरतंर बढ़ती चली गई। जिस 2 जी, सीडब्लूजी, आदर्श सोसायटी जैसे स्कैम ने जनता को कांग्रेस में एक ऐसे प्रधानमंत्री से विलग कर दिया था जो बोलता ही नहीं था। मोदी जी ने उन मुद्दों को छोड़ कर जिनपर वोट मिला, विकास,विकास,विकास का बाजारू राग आलापना शुरू कर दिया।
बहुत से बीजेपी के नेताओं से बात हुई, ( कोई बड़ा नेता मुझे जैसे छोटे बौंने को नहीं जानता है और मुझे भी नेताओं से थोड़ा ऐलर्जी सी है) सबको मोदी जी विकास कर रहे है, मोदी जी विकास कर रहे है जैसे रटे-रटाएं रिकार्डिंग डिवाईस की तरह से ही देखा। हम पूछ रहे है कि भाई आपको पता है वोट क्यों मिला है लेकिन वो तो मनमोहिनी अदा पर मर मिटे हुए बैठे है। और लोग पूछ रहे है कि भाई अगर विकास की ये अदा ही गिननी थी तो मुझे ऐसा प्रधानमंत्री क्यों चाहिए जो एक भी जानी-मानी यूनिवर्सिटी नहीं गया। फिर मैं अपनी मातृभाषा और राष्ट्रभाषा दोनों से अनजान विदेशी नौकरीशुदा मनमोहन सिंह क्यों ने रखू, दुनिया की बड़ी यूनिवर्सिटी में विकास पर भाषण दे सकते है।
हालांकि 2 जी या फिर ऐसे किसी भी मसले पर सरकार की बरी कराने में कोई भूमिका होगी ये मुझे नहीं लगता क्योंकि इतनी हिम्मत आसान नहीं है। लेकिन अब ये तमाम मुद्दे मोदी जी के साथ चिपकते चले जाएंगे। जितनी कोशिश वो करेंगे उतने ही कीचड़़ उतने कपड़ों पर दिखने लगेगी। समय तेजी से भाग रहा है और हो सकता है कि इसमें और गलतियां होने लगे। क्यों जिस विकास की कहानी वो सुना रहे है वो नौकरशाहों के इशारों पर हो रहा विकास है। शौचालय या स्वच्छ भारत जैसी एक दो स्कीम को छोड़ दे तो वो इन सबके लिए कांग्रेस सरकार के दिए गए सुझावों पर ही खड़े है।
सरकार के अनपढ़ पैरोकारों ने इस सरकार का काम और मुश्किल कर दिया। अचंभित पात्रा जैसे लोग लगातार आश्चर्य कर रहे है टीवी पर। पहले इस बात पर इतनी मिल कैसे गयी और बाद में (अगर किसी ने बुलाया तोृ) इस बात की इतनी रह कैसे गई पर आश्चर्य करेगे। कन्हैया जैसे लोग, हर मसले पर एक पक्षीय रूख वाले दलाल लोग अचानक अभिव्यक्ति की आजादी के नायक बन गये। कनॉट प्लेस में देखता हूं कि चार-पांच युवतियां पोस्टर में देश के बहुसंख्यक समाज को गाली देना फैशन मान चुकी है।
बौंनों के उस गैंग के रोने से कोई स्वर नहीं मिला रहा हूं जो नोटबंदी से लेकर जीएसटी पर हर बात पर सरकार के खिलाफ रूदाली बन गया है। क्योंकि वो सिर्फ सुपारी किलर के तौर पर काम कर रहा है। मेरा अपना अनुभव है कि जनता ने तमाम परेशानियों से जूझते हुए भी इन दोनों मामलों में प्रधानमंत्री का साथ दिया। लेकिन जनता को जिन मुद्दों का हल चाहिए था उनपर मोदी जी दूर दिख रहे है। ( बौंनों की ऊंगलियों का कोई मतलब नहीं होता)
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