Monday, March 26, 2018

इतिहास मिटा देना आसान नहीं है, किस्सों में ही सही सदियों तक जिंदा रहता है।जो बचा लेते है वो कौंमें जिंदा रह जाती है और फिर किस्से भी।


गुजरात के चुनाव में घूम रहा था। एक के बाद एक शहर में घूमता रहा। मेरे से दूर रहे इतिहास ( पूरी शिक्षा व्यवस्था इस तरह तैयार की गई है कि आप अपने इतिहास से गाफिल रहे) के कई पन्ने मेरे सामने खुल रहे थे। ऐसे ही वड़नगर पहुंच गया। वड़नगर सिर्फ एक ऐसे गांव का नाम था मेरे लिए, जिस गांव में इस देश के मौजूदा प्रधानमंत्री ने जन्म लिया था। बस इतना ही टीवी के लिए बहुत था लेकिन गांव में घूमने लगा तो लगा कि हिंदुस्तान के इतिहास के पन्ने में घूम रहा हूं। ये शहर सातवी शताब्दी तक का इतिहास खुद से गा देता है। शहर में घूमने के बाद कई मंदिर और बौद्ध स्तूपों के अवशेषों से इतिहास की गलियों में घूमने का रास्ता मिलता जाता है।
इसी तरह घूमते हुए एक शख्स ने बताया कि ताना-रीरी मंदिर चलेंगे। मैं जल्दी में था क्योंकि हर शहर के लिए एक दिन तय किया था और वड़नगर तो महेसाणा जिला का छोटा सा कस्बा था और एसी स्टूडियों में बैठे बौंनों की नजर में एक चाय की दुकान और स्टेशन के अलावा वहां कुछ होना भी जैसे टीआरपी की दुनिया में अछूत था। ऐसे में बस ऐसे ही कह दिया कि यार अब कोई मंदिर नहीं जाना है, सूर्य मंदिर के अवशेष देख आया हूं वैसे ही मन में उन इतिहास के जीवित गवाहों के साथ की गई नृशंसता आपका मन खट्टा कर देती है। ऐसे में मैं बच रहा था लेकिन वो अनाम दोस्त लगा था कि नहीं सर वहां नहीं जाएंगे तो कैसे समझेंगे वड़नगर। इससे पहले उसकी जिद कीर्ति तोरण ले गई थी, उसकी जिद् नागर हटकेश्वर महादेव मंदिर ले गई थी और उसकी जिद ने 10वीं शताब्दी के मंदिर के दर्शन करा दिए थे। ऐसे में फिर से उसकी जिद से बच निकलने के लिए मैंने कहा कि पहले कहानी सुनाओं तानारीरी की। ( हमारे यहां इतिहास वामपंथियों ने सिर्फ कहानी ही बना दिया है)। अब उसकी कहानी आप सुन लीजिए।
" एक थे मियां तानसेन। सुरों के सम्राट और अकबर बादशाह के दरबारी। बादशाह का मनोरंजन करते थे। दरबार में राग गाते थे। अकबर को एक दिन मन किया कि वो राग दीपक सुने। यानि एक ऐसा राग जिसकों गाने से दीपक जल जाते हो। बादशाह ने अपने दरबारी से कहा कि वो दीपक राग सुनाएं। बादशाह के आदेश पर तानसेन ने कहा कि बादशाह सलामत सुना तो दूंगा लेकिन इस राग को गाने के बाद शरीर में बेहद गर्मी हो जाएंगी जिसको शांत पानी से नहीं शुद्ध मल्हार से ही शांत किया जा सकता है। मैं राग मल्हार को शुद्ध नहीं गा सकता हूं । इसीलिए बेहतर होगा इसको टाल दिया। लेकिन इसबात से नाराज बादशाह ने गाने के लिए कहा। मियां को जान बचानी थी जो न गाने से पहले जानी थी गाने के बाद तो थोड़ा उम्मीद भी थी। राग दीपक गाया गया। दीपक जल उठा। और फिर जल उठी तानसेन के बदन में ज्वाला। मियां तानसेन चल दिए दर दर ऐसे गायक को तलाशने जो उनकी जान बचा सके और गा सके शुद्ध राग मल्हार। ऐसे ही जगह जगह घूमते घूमते उनको नागर ब्राह्मणों की जन्मस्थली वड़नगर के बारे में पता चला जहां तीन सौं से ज्यादा संगीतज्ञ रहते है। ऐसे में वहां एक उम्मीद के साथ पहुंच गये। देर रात गेट के बाहर रूके। बंद दरवाजों के खुलने पर पानी की प्यास में जलाशय तक पहुंच गएं ( जलाशय अभी भी वहां काफी बड़ा) सुबह सुबह गांव की लड़कियां जल भरने पहुंची। दो सुंदर बहनें भी उसमें शामिल थी। लेकिन एक लड़की बार बार गगरी भरे और उलट दे। दे रही थी आखिर में एक साथी ने कहा कि तुम भर कर चल क्यों नहीं रही हो इस पर उस लडकी का जवाब था कि पानी भरने के कई तरीके आजमा लिए लेकिन अभी तक मल्हार नहीं निकला। कुछ देर बाद उसने पानी भर लिया और बोली कि चलो अब मल्हार निकल गया। तानसेन तब तक उस आवाज को सुन चुके थे एक दम सामने आ गए और उन्होंने कहा कि मैं एक ब्राह्मण हूं और राग दीपक गाने के बाद से ही शरीर में आग धधक रही है अगर आप शुद्ध राग गा देगी तो मेरी जान बच जाएंगी। बहनों ने कहा कि वो शुद्ध गा तो सकती है लेकिन बिना अपने बुजुर्गों की अनुमति के नहीं। घर आकर उन लोगों ने अपने बड़ों को ये कहानी बताईं तो बुजुर्गों ने उस ब्राह्मण को मिलने के लिए बुलाया और वो देखते ही पहचान गए कि ये मियां तानसेन है और इनके अलावा कोई दीपक राग शुद्ध नहीं गा सकता है। उन्होंने खड़े होकर कहा कि मियां तानसेन आपने झूठ बोला लेकिन वो उनको निराश नहीं करेंगे बस तानसेन को वचन देना होगा कि वो कभी बादशाह को नहीं बताएंगा कि आखिर उसकी जान किस तरह बची, किसने वो राग गाया। और राग गाने वाली लड़कियों के बारे में भी कभी बादशाह को नहीं बताएंगे। मियां तानसेन ने फौरन हामी भर ली। बहनों ने राग गया। मियां तानसेन को आराम मिला और किस्से के मुताबिक कई दिनों तक तानसेन गांव में रूके और फिर आराम मिलने पर अपने वचन का पालन करने का वादा कर आगरा लौट गए। बादशाह को तानसेन के आने का पता चला तो बुलाया। मियां तानसेन ने बंदगी की। बादशाह अकबर ने कहा कि कैसे ठीक हुआ उनका शरीर और कहां उनको शुद्ध मल्हार गाने वाला मिला। तानसेन ने टाल दिया । लेकिन बादशाह अकबर ने फिर से जान लेने की धमकी दी और डरे हुए मियां तानसेन ने ताना-रीरी की कहानी सुना दी।
बादशाह अकबर को गाने वाली लड़कियों की कहानी काफी पंसद आई। और फिर आदतन उनको दरबार में पेश करने का फरमान भी जारी कर दिया। फौजदार गांव में पहुंच गए। गांव को तबाह करना था या लड़कियों को लाना था।गांव वालों ने फौजदार को बताया कि ये गांव की परंपरा के मुताबिक सिर्फ गांव की देवी के सामने ही गाया जा सकता है तो फौजदार ने कहां गांव की ईंट से ईंट बजा दी जाएंगी। और पूरे गांव की नाकाबंदी कर दी गई। पालकियां तैयार थी लडकियों को बैठाना भर था। बादशाह अकबर की पालकियों का मतलब उस समय तय था। और किस्सा है कि उसी रात उन दोनों बहनों ने आत्महत्या कर ली। जहर खाकर या कुएं में डूबकर। शहर तबाह हुआ बादशाह अकबर के गुस्से से इस बात का अलग-अलग वर्णन है। गांव वालों का भी अलग-अळग कहना है। "
बादशाह अकबर तो महान बना रहा लेकिन वो बहनें जिंदा नहीं रही। लेकिन गांव वालों ने उन यादों को अक्षुण्ण रखने का इरादा बना लिया। वो घटना किस्सा बन गई। किस्सों से कहानियों में तब्दील हो गई। और फिर सदियों का सफर तय करती रही। गांव में कोने मे जलाशय के करीब दो छोटे मंदिर जिनमें दो बहने देवियों के तौर पर प्रतिष्ठापित है। वडनगर आने वाले बहुत से लोग यहां पहुंचते है। हटकेश्वर महादेव दुनिया भऱ में फैले हुए नागर ब्राह्मणों का कुल मंदिर है। वो कही भी हो एक बार हटकेश्वर महादेव आते है। ऐसे में वो ताना-रीरी के मंदिर भी पहुंचते है। और हम लोग भी इतिहास के उस पन्नें को कहानियों और किस्सों में ही सही धूल में ढ़के हुए शिलापट्ट पर छू आएँ। देश भर में इतिहास को सुलाने की एक बडी़ कवायद के हिस्सों को कई बार यात्रा उघाड़ देती है। ऐसे ही ये धूल मेरे सामने कुछ उतर गई। मैंने सोचा शायद कुछ लोगों को ये जानने में दिलचस्पी हो तो मैंने शेयर कर दिया। आगे जो यहां तक पहुंच जाएं उनको धन्यवाद। ( हमेशा की तरह मेरे ज्यादातर लेखों में फोटों के लिए सौमित्र को तहेदिल से धन्यवाद)

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