Monday, March 26, 2018

पंकज सारस्वत के शांत हो जाने की दुखद खबर अभी सुनी।ईश्वर परिवार को दुख सहने की शक्ति दे। मुझे हमेशा याद रहोंगे पंकज। 
अभी व्हाटएप्प चैक कर रहा था कि एटा के एक युवा पत्रकार का मैसेज देखा। मैसेज को पढ़ा तो एक बारगी सन्न रह गया। मैंसेज में बताया गया था कि पंकज अब इस दुनिया में नहीं रहे। 
पकंज सारस्वत अलीगढ़ का एक ऐसा युवा पत्रकार जो हमेशा नए की तलाश में आपसे ज्यादा उत्साह दिखाता था। सालों पहले हरि जोशी जी ने फोन किया और कहा कि आप के यहां अलीगढ़ में एक जगह खाली है ( उस वक्त मैं आजतक में था) एक लड़का आप रख सकते है। मैंने बायोडाटा मंगाया और आजतक में असाईंनमेंट को कह दिया। बाद में इंटरव्यू के बाद उस लड़के को रख लिया गया। कुछ दिन बाद मैं ऑफिस पहुंचा तो एक शख्स मेरी डेस्क पर बैठा था, मैंने कभी पहले नहीं देखा लेकिन वो एक दम से आदर से खड़ा हुआ और नमस्कार करके धन्यवाद कहने लगा। मैंने कहा कि दोस्त मैंने आपको पहचाना नहीं तो उसने कहा कि आप मेरे गुरू है इस संस्था में आपकी वजह से मैं आ पहुंचा हूं और मेरा नाम पकंज सारस्वत है। मैंने कहा कि बस यही शुभकामना है कि बेहतर काम करो।
उसके बाद से पंकज के साथ काफी काम किया। ये बात अलग है कि आपको उसकी कार्यशैली से मतभेद हो सकते थे लेकिन उसकी समझ खबरों को समझने की और उस को जमीन से खोज कर लाने के लिए उसके कॉन्टेक्ट दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर कर देते थे। हर खबर को जल्दी से जल्दी करने की उसकी आदत से कई बार मैं उन स्टिंग्स में झुंझला जाता था जिनमें पंकज मेरे साथ होता था। क्रिकेट जगत में उसके संबंधों और क्रिकेट की दुनिया में अपने कदम जमाने के उसके संघर्षों से मैं तभी रूबरू हूआ था। किस तरह से आर्थिक हालात ने उसके बचपन के सपनों को एक जगह से ऊपर जाने नहीं दिया था लेकिन उसके बाद के उसके संघर्ष ने उसको मौजूदा मुकाम तक ला दिया था।
मेरे चैनल बदलने के बावजूद उसका मेरे लिए आदर कभी कम नहीं हुआ था। जब भी मैं उसको फोन करता था उसका एक वाक्य हमेशा होता था कि सर आप कभी भी फोन कर कुछ भी बोल सकते है फोन के इस तरफ से आपको कभी ना नहीं मिलेगी।
हाल में ही जब भी पंकज से बात होती थी वो अपने बेटे को लेकर बहुुत उत्साहित रहता था बेटा बेहतरीन क्रिकेट खेल रहा है। उसको मिले अवार्ड को लेकर कई बार चर्चा हुई। और हाल ही में उत्तरप्रदेश के चुनावों के दौरान अलीगढ़ जाते ही सबसे पहला फोन पंकज को ही किया। और पंकज हाजिर। सब समस्याओं के समाधान के साथ पंकज हाजिर होता था। पंकज को कही बेहद जरूरी काम से बाहर जाना था लेकिन पंकज ने एक दिन के लिए अपना काम टाल दिया । और फिर उस दिन काफी बातें हुए। अगले दिन प्रदीप के साथ रहा और शाम को निकलने के वक्त पंकज के घर पहुंच कर चाय पी कर ही अलीगढ़ से बाहर निकला।
उसके बाद एक दो बार पंकज का फोन आया लेकिन मेरी बात हो न सकी। ऐसे में ये खबर काफी दर्द से भरी हुई है। एक दम स्वस्थ और जिंदगी से भरे हुए पत्रकार, सपने देखते हुए बाप और परिवार की जिम्मेदारी संभाल रहे एक व्यक्ति को इस तरह से अचानक जाते हुए देखना काफी दुखद है। मेरे लिए ये और भी दुखद इसलिए है कि मुझे पंकज के न रहने की सूचना कई दिन बाद ही मिल पाई। मैं सिर्फ यही कह सकता हूं कि इतनी जल्दी नहीं जाना था पंकज। आपके परिवार को अभी बहुत जरूरत थी। दोनों बेटों और बेटी को तुम्हारी ऊंगिलयों के सहारे काफी सफर तय करना था। लेकिन ये सफर जैसे तुमने बहुत जल्दी खत्म कर दिया।
अलविदा पंकज। जहां भी रहो खुश रहो, अपनी ऊर्जा से भरे हुए रहो। ईश्वर पंकज के परिवार को ये दुख सहने की शक्ति दे।

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