प्रद्युम्न हो या बिट्टू हर किसी हादसे के मीडिया की चील और कौए जैसी चीरफाड़ किसी बदलाव या सहानुभूति की नहीं होती ये सिर्फ सबसे पहले माँ बाप के जख्मों को बार बार खुरचने की होती है। दर्द हो आंसू छलक आये और लोग तालियां बजा दे। यहां लोग आम आदमी नहीं है। अब जबभी कोई हादसा होता है तो डर रिपोर्टिंग से लगता है । अपने अंदर के इंसान और राक्षस दोनों की जंग में जख्मों को खुरचने वाला राक्षस जागता है और जीतता है क्योंकि वो एक दाँवचलता है कि दूसरे ने कर लिया और अब तेरे फ़ोन में आवाज़ आनी है कि अपने यहां अभी तक आंसू क्यों नहीं है।
बहुत से भावुक मुर्खो यानी बौनों का गीत कि मीडिया खबर दिखाता है तभी लोगों को पता चलता है। चालीस चालीस बार दिखाता है तब या तुम्हारे माइक पर आ जाता है तब।हर रोज़ अच्छाई हारती है अच्छा आदमी हारता है।
एक एंकर की महिला सिपाही की औकात पूछने की रिपोर्टिंग और भी शर्मनाक अध्याय जोड़ गयी। व्यक्तिगत नहीं हो रहा हु बस हाथ जोड़कर ईश्वर से धन्यवाद देता हूं इस बार यह हादसा रिपोर्ट नहींकरना पड़ा।
बहुत से भावुक मुर्खो यानी बौनों का गीत कि मीडिया खबर दिखाता है तभी लोगों को पता चलता है। चालीस चालीस बार दिखाता है तब या तुम्हारे माइक पर आ जाता है तब।हर रोज़ अच्छाई हारती है अच्छा आदमी हारता है।
एक एंकर की महिला सिपाही की औकात पूछने की रिपोर्टिंग और भी शर्मनाक अध्याय जोड़ गयी। व्यक्तिगत नहीं हो रहा हु बस हाथ जोड़कर ईश्वर से धन्यवाद देता हूं इस बार यह हादसा रिपोर्ट नहींकरना पड़ा।
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