“यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो नाडियाद की इज्जत चली जाएंगी, नाडियाद जो गुजरात की नाक है क्या इतना भी नहीं करेगा।“. महात्मा गांधी।
लेकिन गांधी के लिए नादियाद में क्या है ? यही से कत्ल की सजा काट चुका सत्याग्राही भी दस्ते में शामिल हो गया। दांडी यात्रा ....11
संतराम मंदिर नादियाड की आस्था का केन्द्र। मंदिर के दरवाजे सबके लिए खुले है। हर रोज हजारों श्रद्धालु पहुंचते है। राम गेट और नारायन गेट से होते हुए अंदर भगवान के दर्शन करने पहुंचते है और प्रसाद चढ़ाते है और मन्नत मांगते हुए निकल जाते है। कई बार किसी को टॉयलेट जाने की जरूरत भी होती है तो एक तीसरे दरवाजे के सामने से गुजरते है। खूबसूरत सा दो मंजिला बिल्डिंग थोड़ा सा अलग दिखती है। नीचे एक चबूतरा, एक मंजिल ऊपर एक छज्जा। जो अपनी ओर खींचता है। लकड़ी का ये पुराना दरवाजा बंद था। इसके बाहर दीवार एक सफेद पत्थर की छोटी सी पट्टिका और उस पर काले अक्षर, मंदिर से आशीर्वाद मांगने आएं हुए लोगों की नजर में शायद ही आते होगें। बाथरूम से लगी हुई इस दीवार से हर कोई गुजर जाता है बिना ये जाने हुए कि आखिर इस पर क्या लिखा है। लेकिन हम को इस रास्ते से जाना था, हमारा इस पट्टिका से ही रिश्ता था।
दीवार की इस पट्टिका पर लिखा था कि महात्मा गांधी ने 15 मार्च 1930 को इसी जगह पर दांडी यात्रा के दौरान संबोधन किया था। आज यहां वो मंच दिखता है, दरवाजा दिखता है, कुछ पुताई हुई चीज भी दिखती है लेकिन उस पर संतराम मंदिर ट्रस्ट के समाजसेवी कार्योंका विवरण दिखता है और महात्मा से रिश्ते के तौर पर सिर्फ ये पट्टिका दिखती है। बाथरूम के बगल में खड़े होकर गांधी की इसपट्टिका पर नाडियाद का रिश्ता कुछ सीधे तौर पर समझ में नहीं आता है। हालांकि हमसे बात करते हुए समाजसेवी भाई ने कहा कि हम लोग तो बहुत खुशनसीब है कि जिस रास्ते से महात्मा गुजरे थे उसी रास्ते से हम लोग गुजर रहे है। लेकिन मुझे दिखा कि ये बात सिर्फ इतनी सी ही है और इसको सिर्फ बोर्ड पर पढ़ा जा सकता है लोगों की जिंदगी से नहीं। कई बार लगता है कि अगर ये बोर्ड न हो तो किसी तरह से कोई नाडियाद में गांधी को कैसे खोंजेगा। लेकिन बाते तो और भी है।
नाडियाद को लेकर महात्मा गांधी जी का एक खास लगाव भी था। 1918 में खेड़ा सत्याग्रह के दौरान एक रिश्ता यहां से जुड़ गया था। गांव, खेती-किसानी को लेकर महात्मा अगर किसी की बात पर सबसे ज्यादा यकीन करते थे तो वो सरदार पटेल थे। और सरदार को सरदार खेड़ा सत्याग्रह ने ही बनाया था। सरदार पटेल की जन्मस्थली नडियाद ने महात्मा की आवाज में कई बार आवाज मिलाई। मंदिर से कुछ दूर शहर के अंदर जाकर ही सरदार पटेल की जन्मस्थली है। सरदार पटेल का इस शहर में ननिहाल है और गुजरात में परंपरागत तौर पर पहले बच्चे के जन्म के वक्त महिलाएं अपने मायके में आती है। इसीलिए वल्लभभाई पटेल की माता ने अपने पिता जी के घर में थी। बाद में किसानों के लिए लड़ाई लड़ते हुए सरदार ने इस इलाके में काफी काम किया था। 1918 के बाद गांधी जी के लिए भी ये इलाका जाना पहचाना था। दांडी यात्रा को मिल रहे जन समर्थन के बाद महात्मा को इस जिले से अपार सहयोग मिलने में कोई संदेह नहीं था। मातर से आगे की ओर पहले दभाण और फिर नाडियाद ही पड़ाव था। महात्मा गांधी के मार्च में शामिल हर आदमी का नाम और काम तमाम लोग जानते थे। लेकिन इसी दस्ते में एक शख्स को लेकर मीडिया और आम आदमी जो भी इस दस्तें के लोगों से परिचित थे उनमें काफी उत्सुकता थी और वो नाम था खड्गबहादुर गिरि। खड्गबहादुर को लेकर मीडिया की उत्सुकता देखते हुए महात्मा ने खुद लिखा है कि खड्गबहादुर को शामिल करने को लेकर कई चीजें थी। खड्ग बहादुर का परिचय देते हुए कहा कि एक व्याभिचारी के व्याभिचार को सहन न करते हुए उन्होंने उसका खून किया है और फिर कानून को समर्पण किया है। गिरि इससे पहले भी आश्रम में रहे है आश्रम के तमाम नियमों का पालन करने किया है। इस मार्च में शामिल होने के लिए उन्होंने कई चिट्टिय़ां लिखी है मैंने उनका जवाब नहीं दिया था। वो अपनी गाड़ी छूट जाने की वजह से पहले शामिल नहीं हो पाएं थे और एक दिन देरी से आश्रम पहुंचे, फिर मेरी अनुमति न मिलने से वो आश्रम में इंतजार कर रहे थे और अब वो इस दस्ते में शामिल हो रहे है। क्योंकि मैंने लिखा है कि अगर आपको आश्रम के सब नियम मंजूर हो तो आ जाएँ। ये सब बातें सिर्फ खड्गबहादुर के बारे में बताने के लिए लिखी है, खड्गबहादुर का नाम देने का अर्थ सिर्फ ये है कि वो भी दूसरों का प्रायश्चित करने के लिए शामिल हुए है। संभव है कि इन कारणों से पाठक इस युद्ध के बारे में और समझ पाएं कि सत्याग्रह क्या चीज है ये भलीभांति जान सकेगे। यह पूरी कल्पना अंहिसा की अमोघ शक्ति पर रची गई है।
इस मार्च में गिरि के शामिल होने की चर्चा ने शायद बहुत दूर का सफर तय किया था। कत्ल करने के बाद सजा काट कर अपनी जिंदगी गांधीवादी रास्ते पर नाम करने वाले खड्ग बहादुर को लेकर उस वक्त मीडिया में शायद आज जितनी ही सनसनी रही होगी। लेकिन ये शायद एक भुला दी गई कहानी है। हम लोग मातर से चलते हुए आगे की ओर आएं लेकिन हाईवे ने रास्ता भुला दिया। हमारे साथ आशुतोष भी था। हमारे चैनल के संवाददाता आशुतोष की इलाके के बारे में काफी जानकारी थी। साक्षर नगरी कही जाने वाली नडियाद के ज्यादातर इतिहास को लेकर उनको काफी जानकारी थी। हम लोग चुनाव की कवरेज करने आए है इस लिहाज से उनकी तैयारी भी पूरी थी। कई स्टोरी आईडियाज पर चर्चा हुई, लेकिन मैंने आशुतोष जी से कहा कि मुझे दांडी यात्रा के दौरान महात्मा गांधी के पद् चिन्हों की खोज में जाना है इस पर उन्होंने कहा कि हां यहां संतराम मंदिर में है। मैंने कहा कि मैं मातर के अगले विश्राम स्थल दभाण जाना चाहता हूं तो उन्होंने कहा कि सर गांधी जी दभाण में गए थे और वहां रूके थे,ये तो पूछना पड़ेगा। उन्होंने एक दो सीनियर साथियों से पूछा लेकिन कुछ ठोस पता नहीं चला और हम फिर खुद ही दभाण के लिए निकल गए। दभाण गांव जाने के रास्ते के ऊपर से चमचमाता हाईवे गुजरता है। 260 किलोमीटर नई सड़के हाल फिलहाल में नडियाद से नई बनाई गई हैय़ ऐसे में दभाण गांव जाने के लिए मुख्य मार्ग के नीचे उतर कर हाईवे के अंडरपास से गुजरकर जाना पड़ता है। गांव में घुसते ही एक मंदिर दिखा और बरगद का एक बड़ा पेड़। बरगद के पेड़ के नीचे एक जगत बनी हुई थी और उस पर कुछ लोग बैठे हुए आपस में चर्चा कर रहे थे। हम लोगों ने पूछा कि गांधी जी की जगह कहां है। इस पर उन्होंने कहा कि यही कही आए थे गांधी लेकिन एक दम सही बता नहीं सकते है कहां रूके थे। बरगद के पेड के सामने एक नया एटीएम खुला हुआ था। एक गांव वाला अभी अपने कार्ड से पैसे निकाल कर निकल रहा था और कुछ लोग लाईन में लगे हुए थे। लाईन ठीक इसी तरह से जैसे किसी महानगर में किसी व्यस्त पॉश इलाके में होती है, अचानक ख्याल आया कि ये बदलाव व्यक्तिगत जिंदगी के अनुशासन में आया हुआ बदलाव है या फिर पैसा हर जगह ये तय कर देता है कि किस तरह से लाईन में लगकर लेना है। खैर वहां से भी कई लोगों से पूछा तो उन्होंने किसी कुएं की जानकारी होने से भी इंकार किया और फिर मैंने दलित ( हरिजन या मूलवंशी) बस्ती के बारे में जानकारी चाही। लोगों ने गांव से नाडियाद जाने वाले दूसरे रास्ते के बाहर की ओर इशारा कर दिया और मैं वहां चल दिया। गुजरात में गांव में बच्चे भी गाड़ी से आकर्षित नहीं होते है और गाडी के पीछे दौड़ने वाले फोटो आपको शायद ही कही किसी गांव में मिले। इसका कारण ये भी है कि ये तमाम गांव आर्थिक समृद्धि में उत्तरभारत के गांवों से काफी आगे है और गांव के घरों में खड़ी कीमती गाड़ियों के सामने बाकि तमाम गाड़ियां आकर्षणविहीन हो जाती है। हालांकि गांव वाले अजनबियों को देखकर पहचान जरूर जाते है। हम लोग गांव के दूसरे हिस्से की ओर बनी दलित बस्ती पर जा पहुंचे। दर्जन से कुछ ही ज्यादा घर थे। कुछ महिलाएँ अपने घर के सामने बैठकर सब्जियां काट रही थी। शाम हो चुकी थी। ऐसे में मैंने कुछ लोगों से पूछा तो महिलाओं ने अनभिज्ञता प्रकट की। एक आदमी बनियान पहने अपने घर से निकला। सडक पर टाईल्स बिछी थी और सरकारी पाईपलाईन से पानी आ रहा था। मैंने उस अधेड़ व्यक्ति से पूछा कि क्या महात्मा गांधी ने इसी बस्ती में किसी कुएं पर अपने कपड़े धोएं थे और दिन का विश्राम कर लोगों को संबोधित किया था वो शख्स भी इस तमाम वाक्ये से अनजान था। और कहा कि बस्ती अब तो कोई कुआं नहीं है। मैंने एक दो लोगों से ओर पूछने की कोशिश की लेकिन निराशा हाथ लगी। महात्मा गांधी ने दभाण में गांव का मंदिर और ऊंची जातियों के स्वागत से आगे बढ़कर हरिजन बस्ती के कुएं पर विश्राम किया औरअपने वस्त्र भी वही कुए की जगत पर धोए थे। उस दिन भी तमाम ऊंची जातियों के लोगों के लिए बड़ा धर्मसंकट का क्षण था कि वो उस बस्ती में कैसे पहुंचे लेकिन महात्मा ये ही धर्मयुद्ध लड़ रहे थे। एक घुन लगे समाज में बदलाव के अंकुर उगाने की कोशिश। कोशिश में सफलता मिल रही थी और पूरा गांव उसी बस्ती में आ बैठा। ये एक चमत्कार था। महात्मा ने अपने संबोधन में स्वयंसेवक मांगे और स्वयसेवको के लिए उम्र का कोई बंधन नहीं रखा। युवा, बुजुर्ग और औरते सभी के लिए इस धर्मयुद्ध में चलने का आमंत्रण था। बुजुर्ग अपने नाम काफी संख्या में लिखा रहे थे और उनका कहना था कि वो बाहर क्या कर रहे है जेल के अंदर भी आराम से रहेंगे और महात्मा ने अपने भाषण में कहा कि वो दांडी पहुंचते ही पहले उन्हे जेल पहुंचा देंगे। महात्मा गांधी का गौप्रेम और ग्राम जीवन की समझ और इसयात्रा के लिए की गईं तैयारियां इस भाषण में साफ दिखती है।
महात्मा गांधी ने कहा कि “हम दावा तो गौ सेवा का करते है लेकिन इस गांव में तीन सौ भैंस है और तीन गाय। इसे हमें गौ सेवा से ज्यादा भैंस सेवा कहना चाहिए, इसके साथ साथ हमें पशुपालन की समझ भी नहीं है ये वो दिखाता है। मैं भले ही गाए और भैंस के दूध का अंतर नहीं बता सकता हूं लेकिन वैद्यों ने ये सिद्ध किया है कि भैंस का दूध उतना सात्विक नहीं हो सकता है जिनता गाय का दूध और घी।यूरोप के लोग तो भैंस के दूध को छूते तक तनहीं। क्या इस गांव में किसी बीमार के लिए गाय का घी या दूध उपलब्ध हो सकता है। मुसलमानों और अंग्रेजों से गाय बचा-लेना या छुड़ा लेना ही गौ सेवा नहीं है। जितनी गायों की हत्या मुसलमान करते है उससे सैंकड़ों गुना तो आस्ट्रेलिया में कटने के लिए भेज दी जाती है। अगर गाय को कटने से बचाना है तो आपको गौपालन सीखकर उस पर अमल करना होगा।“
महात्मा दभाण पार कर नाडियाद पहुंचे। और हम भी नाडियाद का पुराने शहर में पहुंच चुके थे। नाडियाद के चमचमाते हुए बाजार में कई जगह बोर्ड दिख रहे थे जो बता रहे कि ये नाडियाद का ऐतिहासिक दांडी पथ है। लेकिन बाकि किसी चीज से दांडी का रिश्ता नाडियाद से जुडता नहीं दिख रहा था यहां तक कि गांधी की कोई की कोई महक आपको नाडियाद में नहीं दिख रही थी। हम लोग घंटाघर पार कर नादियाद मंदिर जा पहुंचे। नाडियाद में संतराम मंदिर के परिसर में ही उनका रात्रि विश्राम और संबोधन था। गांधी जब संबोधन करने आएं तो उनके साथ खड़े हुए संतराम मंदिर के प्रमुख भी खादी पहने हुए थे। संतराम मंदिर में भीड़ का ये आलम था कि चारों और लोगों के सिर ही सिर नजर आ रहे थे। महात्मा गांधी ने इस जिले से अपने पुराने रिश्तों को टटोला और फिर याद दिलाया कि सरदार जेल में है तो इसका मतलब है आप सब जेल में है। नाडियाड साक्षरों की भूमि है, शिक्षितों की भूमि है, आप सब लोग मेरा या मेरे 78 लोगों का स्वागत करने यहां नहीं आएँ है बल्कि गुलामी की जंजीरों को तोड़ने की उम्मीद में यहां पहुंचे है। नाडियाद गोवर्धनराम,मणिलाल नभुभाई जैसे विद्वान लोगों का शहर है क्या यहां ऐसे लोगों की विरासत देखने को मिलेंगी।मैं जेल चला जाऊंगा, आप सब लोग स्वंयसेवक बनिये जैसे ही कांग्रेस का आदेश आएं आप तमाम लोग जेल जाने के लिए तैयार रहे तभी मैं समझूंगा कि नाडियाद ने कुछ किया है। नाडियाद की जनसंख्या 31 हजार है आप लोग 3 लाख दस हजार रूपया कपड़े पर खर्च करते है ये विदेश चला जाता है मैं मणिलाल, नभुभाई और गोवर्धनराम जी के वारिसोंसे सीधा हिसाब लगाने को कहता हूं कि ये पैसा अगर अपने घर में रहे तो कितना फायदा हो सकता है। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो नाडियाद की ईज्जत चली जाएंगी, नाडियाद जो गुजरात की नाक है क्या इतना भी नहीं करेगा। भगवान आपको ऐसा करने की शक्ति दे। “
गांधी जी के इस रिश्ते को देखते-देखते मैं ये भूल गया कि नाडियाद मेरी याद में एक ऐसा शहर था जहां देश के सबसे पहले और सबसे बड़े किड़नी रैकेट की कहानी का पर्दाफाश हुआ था। मंगलपुर गांव की कहानी याद आ गई कि ऐसा गांव जिसमें घर गेल किड़नी बेचने वाले मजदूरों की एक पूरी पीढ़ी उग आई थी। नाडियाद के कई किड़नी बेचने वालों के एजेंटों की जमात दक्षिण भारत के बड़े हॉस्पीटल के में घूमते नजर आती थी। मैं मंगलपुर भी गया और उस हॉस्पीटल भी जहां से इसखेल की शुरूआत हुई थी। लेकिन इस बार तो सिर्फ गांधी का विश्वास दिख रहा था, और मैं महात्मा के चमत्कार का पीछा करते हुए खुद चमत्कृत होते हुए आगे ऐसे रास्ते की ओर बढ़ रहा था जिनसे महात्मा की खुशबू आ रही थी। ........(फोटो--सौमित्र घोष)
लेकिन गांधी के लिए नादियाद में क्या है ? यही से कत्ल की सजा काट चुका सत्याग्राही भी दस्ते में शामिल हो गया। दांडी यात्रा ....11
संतराम मंदिर नादियाड की आस्था का केन्द्र। मंदिर के दरवाजे सबके लिए खुले है। हर रोज हजारों श्रद्धालु पहुंचते है। राम गेट और नारायन गेट से होते हुए अंदर भगवान के दर्शन करने पहुंचते है और प्रसाद चढ़ाते है और मन्नत मांगते हुए निकल जाते है। कई बार किसी को टॉयलेट जाने की जरूरत भी होती है तो एक तीसरे दरवाजे के सामने से गुजरते है। खूबसूरत सा दो मंजिला बिल्डिंग थोड़ा सा अलग दिखती है। नीचे एक चबूतरा, एक मंजिल ऊपर एक छज्जा। जो अपनी ओर खींचता है। लकड़ी का ये पुराना दरवाजा बंद था। इसके बाहर दीवार एक सफेद पत्थर की छोटी सी पट्टिका और उस पर काले अक्षर, मंदिर से आशीर्वाद मांगने आएं हुए लोगों की नजर में शायद ही आते होगें। बाथरूम से लगी हुई इस दीवार से हर कोई गुजर जाता है बिना ये जाने हुए कि आखिर इस पर क्या लिखा है। लेकिन हम को इस रास्ते से जाना था, हमारा इस पट्टिका से ही रिश्ता था।
दीवार की इस पट्टिका पर लिखा था कि महात्मा गांधी ने 15 मार्च 1930 को इसी जगह पर दांडी यात्रा के दौरान संबोधन किया था। आज यहां वो मंच दिखता है, दरवाजा दिखता है, कुछ पुताई हुई चीज भी दिखती है लेकिन उस पर संतराम मंदिर ट्रस्ट के समाजसेवी कार्योंका विवरण दिखता है और महात्मा से रिश्ते के तौर पर सिर्फ ये पट्टिका दिखती है। बाथरूम के बगल में खड़े होकर गांधी की इसपट्टिका पर नाडियाद का रिश्ता कुछ सीधे तौर पर समझ में नहीं आता है। हालांकि हमसे बात करते हुए समाजसेवी भाई ने कहा कि हम लोग तो बहुत खुशनसीब है कि जिस रास्ते से महात्मा गुजरे थे उसी रास्ते से हम लोग गुजर रहे है। लेकिन मुझे दिखा कि ये बात सिर्फ इतनी सी ही है और इसको सिर्फ बोर्ड पर पढ़ा जा सकता है लोगों की जिंदगी से नहीं। कई बार लगता है कि अगर ये बोर्ड न हो तो किसी तरह से कोई नाडियाद में गांधी को कैसे खोंजेगा। लेकिन बाते तो और भी है।
नाडियाद को लेकर महात्मा गांधी जी का एक खास लगाव भी था। 1918 में खेड़ा सत्याग्रह के दौरान एक रिश्ता यहां से जुड़ गया था। गांव, खेती-किसानी को लेकर महात्मा अगर किसी की बात पर सबसे ज्यादा यकीन करते थे तो वो सरदार पटेल थे। और सरदार को सरदार खेड़ा सत्याग्रह ने ही बनाया था। सरदार पटेल की जन्मस्थली नडियाद ने महात्मा की आवाज में कई बार आवाज मिलाई। मंदिर से कुछ दूर शहर के अंदर जाकर ही सरदार पटेल की जन्मस्थली है। सरदार पटेल का इस शहर में ननिहाल है और गुजरात में परंपरागत तौर पर पहले बच्चे के जन्म के वक्त महिलाएं अपने मायके में आती है। इसीलिए वल्लभभाई पटेल की माता ने अपने पिता जी के घर में थी। बाद में किसानों के लिए लड़ाई लड़ते हुए सरदार ने इस इलाके में काफी काम किया था। 1918 के बाद गांधी जी के लिए भी ये इलाका जाना पहचाना था। दांडी यात्रा को मिल रहे जन समर्थन के बाद महात्मा को इस जिले से अपार सहयोग मिलने में कोई संदेह नहीं था। मातर से आगे की ओर पहले दभाण और फिर नाडियाद ही पड़ाव था। महात्मा गांधी के मार्च में शामिल हर आदमी का नाम और काम तमाम लोग जानते थे। लेकिन इसी दस्ते में एक शख्स को लेकर मीडिया और आम आदमी जो भी इस दस्तें के लोगों से परिचित थे उनमें काफी उत्सुकता थी और वो नाम था खड्गबहादुर गिरि। खड्गबहादुर को लेकर मीडिया की उत्सुकता देखते हुए महात्मा ने खुद लिखा है कि खड्गबहादुर को शामिल करने को लेकर कई चीजें थी। खड्ग बहादुर का परिचय देते हुए कहा कि एक व्याभिचारी के व्याभिचार को सहन न करते हुए उन्होंने उसका खून किया है और फिर कानून को समर्पण किया है। गिरि इससे पहले भी आश्रम में रहे है आश्रम के तमाम नियमों का पालन करने किया है। इस मार्च में शामिल होने के लिए उन्होंने कई चिट्टिय़ां लिखी है मैंने उनका जवाब नहीं दिया था। वो अपनी गाड़ी छूट जाने की वजह से पहले शामिल नहीं हो पाएं थे और एक दिन देरी से आश्रम पहुंचे, फिर मेरी अनुमति न मिलने से वो आश्रम में इंतजार कर रहे थे और अब वो इस दस्ते में शामिल हो रहे है। क्योंकि मैंने लिखा है कि अगर आपको आश्रम के सब नियम मंजूर हो तो आ जाएँ। ये सब बातें सिर्फ खड्गबहादुर के बारे में बताने के लिए लिखी है, खड्गबहादुर का नाम देने का अर्थ सिर्फ ये है कि वो भी दूसरों का प्रायश्चित करने के लिए शामिल हुए है। संभव है कि इन कारणों से पाठक इस युद्ध के बारे में और समझ पाएं कि सत्याग्रह क्या चीज है ये भलीभांति जान सकेगे। यह पूरी कल्पना अंहिसा की अमोघ शक्ति पर रची गई है।
इस मार्च में गिरि के शामिल होने की चर्चा ने शायद बहुत दूर का सफर तय किया था। कत्ल करने के बाद सजा काट कर अपनी जिंदगी गांधीवादी रास्ते पर नाम करने वाले खड्ग बहादुर को लेकर उस वक्त मीडिया में शायद आज जितनी ही सनसनी रही होगी। लेकिन ये शायद एक भुला दी गई कहानी है। हम लोग मातर से चलते हुए आगे की ओर आएं लेकिन हाईवे ने रास्ता भुला दिया। हमारे साथ आशुतोष भी था। हमारे चैनल के संवाददाता आशुतोष की इलाके के बारे में काफी जानकारी थी। साक्षर नगरी कही जाने वाली नडियाद के ज्यादातर इतिहास को लेकर उनको काफी जानकारी थी। हम लोग चुनाव की कवरेज करने आए है इस लिहाज से उनकी तैयारी भी पूरी थी। कई स्टोरी आईडियाज पर चर्चा हुई, लेकिन मैंने आशुतोष जी से कहा कि मुझे दांडी यात्रा के दौरान महात्मा गांधी के पद् चिन्हों की खोज में जाना है इस पर उन्होंने कहा कि हां यहां संतराम मंदिर में है। मैंने कहा कि मैं मातर के अगले विश्राम स्थल दभाण जाना चाहता हूं तो उन्होंने कहा कि सर गांधी जी दभाण में गए थे और वहां रूके थे,ये तो पूछना पड़ेगा। उन्होंने एक दो सीनियर साथियों से पूछा लेकिन कुछ ठोस पता नहीं चला और हम फिर खुद ही दभाण के लिए निकल गए। दभाण गांव जाने के रास्ते के ऊपर से चमचमाता हाईवे गुजरता है। 260 किलोमीटर नई सड़के हाल फिलहाल में नडियाद से नई बनाई गई हैय़ ऐसे में दभाण गांव जाने के लिए मुख्य मार्ग के नीचे उतर कर हाईवे के अंडरपास से गुजरकर जाना पड़ता है। गांव में घुसते ही एक मंदिर दिखा और बरगद का एक बड़ा पेड़। बरगद के पेड़ के नीचे एक जगत बनी हुई थी और उस पर कुछ लोग बैठे हुए आपस में चर्चा कर रहे थे। हम लोगों ने पूछा कि गांधी जी की जगह कहां है। इस पर उन्होंने कहा कि यही कही आए थे गांधी लेकिन एक दम सही बता नहीं सकते है कहां रूके थे। बरगद के पेड के सामने एक नया एटीएम खुला हुआ था। एक गांव वाला अभी अपने कार्ड से पैसे निकाल कर निकल रहा था और कुछ लोग लाईन में लगे हुए थे। लाईन ठीक इसी तरह से जैसे किसी महानगर में किसी व्यस्त पॉश इलाके में होती है, अचानक ख्याल आया कि ये बदलाव व्यक्तिगत जिंदगी के अनुशासन में आया हुआ बदलाव है या फिर पैसा हर जगह ये तय कर देता है कि किस तरह से लाईन में लगकर लेना है। खैर वहां से भी कई लोगों से पूछा तो उन्होंने किसी कुएं की जानकारी होने से भी इंकार किया और फिर मैंने दलित ( हरिजन या मूलवंशी) बस्ती के बारे में जानकारी चाही। लोगों ने गांव से नाडियाद जाने वाले दूसरे रास्ते के बाहर की ओर इशारा कर दिया और मैं वहां चल दिया। गुजरात में गांव में बच्चे भी गाड़ी से आकर्षित नहीं होते है और गाडी के पीछे दौड़ने वाले फोटो आपको शायद ही कही किसी गांव में मिले। इसका कारण ये भी है कि ये तमाम गांव आर्थिक समृद्धि में उत्तरभारत के गांवों से काफी आगे है और गांव के घरों में खड़ी कीमती गाड़ियों के सामने बाकि तमाम गाड़ियां आकर्षणविहीन हो जाती है। हालांकि गांव वाले अजनबियों को देखकर पहचान जरूर जाते है। हम लोग गांव के दूसरे हिस्से की ओर बनी दलित बस्ती पर जा पहुंचे। दर्जन से कुछ ही ज्यादा घर थे। कुछ महिलाएँ अपने घर के सामने बैठकर सब्जियां काट रही थी। शाम हो चुकी थी। ऐसे में मैंने कुछ लोगों से पूछा तो महिलाओं ने अनभिज्ञता प्रकट की। एक आदमी बनियान पहने अपने घर से निकला। सडक पर टाईल्स बिछी थी और सरकारी पाईपलाईन से पानी आ रहा था। मैंने उस अधेड़ व्यक्ति से पूछा कि क्या महात्मा गांधी ने इसी बस्ती में किसी कुएं पर अपने कपड़े धोएं थे और दिन का विश्राम कर लोगों को संबोधित किया था वो शख्स भी इस तमाम वाक्ये से अनजान था। और कहा कि बस्ती अब तो कोई कुआं नहीं है। मैंने एक दो लोगों से ओर पूछने की कोशिश की लेकिन निराशा हाथ लगी। महात्मा गांधी ने दभाण में गांव का मंदिर और ऊंची जातियों के स्वागत से आगे बढ़कर हरिजन बस्ती के कुएं पर विश्राम किया औरअपने वस्त्र भी वही कुए की जगत पर धोए थे। उस दिन भी तमाम ऊंची जातियों के लोगों के लिए बड़ा धर्मसंकट का क्षण था कि वो उस बस्ती में कैसे पहुंचे लेकिन महात्मा ये ही धर्मयुद्ध लड़ रहे थे। एक घुन लगे समाज में बदलाव के अंकुर उगाने की कोशिश। कोशिश में सफलता मिल रही थी और पूरा गांव उसी बस्ती में आ बैठा। ये एक चमत्कार था। महात्मा ने अपने संबोधन में स्वयंसेवक मांगे और स्वयसेवको के लिए उम्र का कोई बंधन नहीं रखा। युवा, बुजुर्ग और औरते सभी के लिए इस धर्मयुद्ध में चलने का आमंत्रण था। बुजुर्ग अपने नाम काफी संख्या में लिखा रहे थे और उनका कहना था कि वो बाहर क्या कर रहे है जेल के अंदर भी आराम से रहेंगे और महात्मा ने अपने भाषण में कहा कि वो दांडी पहुंचते ही पहले उन्हे जेल पहुंचा देंगे। महात्मा गांधी का गौप्रेम और ग्राम जीवन की समझ और इसयात्रा के लिए की गईं तैयारियां इस भाषण में साफ दिखती है।
महात्मा गांधी ने कहा कि “हम दावा तो गौ सेवा का करते है लेकिन इस गांव में तीन सौ भैंस है और तीन गाय। इसे हमें गौ सेवा से ज्यादा भैंस सेवा कहना चाहिए, इसके साथ साथ हमें पशुपालन की समझ भी नहीं है ये वो दिखाता है। मैं भले ही गाए और भैंस के दूध का अंतर नहीं बता सकता हूं लेकिन वैद्यों ने ये सिद्ध किया है कि भैंस का दूध उतना सात्विक नहीं हो सकता है जिनता गाय का दूध और घी।यूरोप के लोग तो भैंस के दूध को छूते तक तनहीं। क्या इस गांव में किसी बीमार के लिए गाय का घी या दूध उपलब्ध हो सकता है। मुसलमानों और अंग्रेजों से गाय बचा-लेना या छुड़ा लेना ही गौ सेवा नहीं है। जितनी गायों की हत्या मुसलमान करते है उससे सैंकड़ों गुना तो आस्ट्रेलिया में कटने के लिए भेज दी जाती है। अगर गाय को कटने से बचाना है तो आपको गौपालन सीखकर उस पर अमल करना होगा।“
महात्मा दभाण पार कर नाडियाद पहुंचे। और हम भी नाडियाद का पुराने शहर में पहुंच चुके थे। नाडियाद के चमचमाते हुए बाजार में कई जगह बोर्ड दिख रहे थे जो बता रहे कि ये नाडियाद का ऐतिहासिक दांडी पथ है। लेकिन बाकि किसी चीज से दांडी का रिश्ता नाडियाद से जुडता नहीं दिख रहा था यहां तक कि गांधी की कोई की कोई महक आपको नाडियाद में नहीं दिख रही थी। हम लोग घंटाघर पार कर नादियाद मंदिर जा पहुंचे। नाडियाद में संतराम मंदिर के परिसर में ही उनका रात्रि विश्राम और संबोधन था। गांधी जब संबोधन करने आएं तो उनके साथ खड़े हुए संतराम मंदिर के प्रमुख भी खादी पहने हुए थे। संतराम मंदिर में भीड़ का ये आलम था कि चारों और लोगों के सिर ही सिर नजर आ रहे थे। महात्मा गांधी ने इस जिले से अपने पुराने रिश्तों को टटोला और फिर याद दिलाया कि सरदार जेल में है तो इसका मतलब है आप सब जेल में है। नाडियाड साक्षरों की भूमि है, शिक्षितों की भूमि है, आप सब लोग मेरा या मेरे 78 लोगों का स्वागत करने यहां नहीं आएँ है बल्कि गुलामी की जंजीरों को तोड़ने की उम्मीद में यहां पहुंचे है। नाडियाद गोवर्धनराम,मणिलाल नभुभाई जैसे विद्वान लोगों का शहर है क्या यहां ऐसे लोगों की विरासत देखने को मिलेंगी।मैं जेल चला जाऊंगा, आप सब लोग स्वंयसेवक बनिये जैसे ही कांग्रेस का आदेश आएं आप तमाम लोग जेल जाने के लिए तैयार रहे तभी मैं समझूंगा कि नाडियाद ने कुछ किया है। नाडियाद की जनसंख्या 31 हजार है आप लोग 3 लाख दस हजार रूपया कपड़े पर खर्च करते है ये विदेश चला जाता है मैं मणिलाल, नभुभाई और गोवर्धनराम जी के वारिसोंसे सीधा हिसाब लगाने को कहता हूं कि ये पैसा अगर अपने घर में रहे तो कितना फायदा हो सकता है। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो नाडियाद की ईज्जत चली जाएंगी, नाडियाद जो गुजरात की नाक है क्या इतना भी नहीं करेगा। भगवान आपको ऐसा करने की शक्ति दे। “
गांधी जी के इस रिश्ते को देखते-देखते मैं ये भूल गया कि नाडियाद मेरी याद में एक ऐसा शहर था जहां देश के सबसे पहले और सबसे बड़े किड़नी रैकेट की कहानी का पर्दाफाश हुआ था। मंगलपुर गांव की कहानी याद आ गई कि ऐसा गांव जिसमें घर गेल किड़नी बेचने वाले मजदूरों की एक पूरी पीढ़ी उग आई थी। नाडियाद के कई किड़नी बेचने वालों के एजेंटों की जमात दक्षिण भारत के बड़े हॉस्पीटल के में घूमते नजर आती थी। मैं मंगलपुर भी गया और उस हॉस्पीटल भी जहां से इसखेल की शुरूआत हुई थी। लेकिन इस बार तो सिर्फ गांधी का विश्वास दिख रहा था, और मैं महात्मा के चमत्कार का पीछा करते हुए खुद चमत्कृत होते हुए आगे ऐसे रास्ते की ओर बढ़ रहा था जिनसे महात्मा की खुशबू आ रही थी। ........(फोटो--सौमित्र घोष)
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