Monday, March 26, 2018

चमचमाता भवन ग्राम पंचायत का, ऊंचा गेट गांव का, महात्मा का पुतला सड़क पर, और दांडी यात्रा की ऐतिहासिक धर्मशाला कहां गई। दांडी यात्रा ...6


चमचमाते हुए नए बने हुए हाईवे से आसान था कि गांव को भुला दिया जाएं। लेकिन 87 साल पहले इन्हीं गांवों के लिए, इन्हीं गांवों से निकलता हुआ एक पतला-दुबला इंसान कैसे भुलाया जाएँ इसकी कोशिश लगातार जारी है। 
उम्र-61 साल, कद- पांच फुट पांच ईंच, वजन- लगभग 45 किलो। बदन पर एक धोती, ऊपर से एक चादर, पैरों में सैंडिल, हाथ में एक लाठी, कंधें पर एक झोला। अगर सरकारी लफ्जों में महात्मा गांधी के बारे में लिखना चाहे तो बस इतना ही लिख सकते है। लेकिन लाखों गांवों में बसे हुए करोड़ों हिंदुस्तानियों की उम्मीदों की लौ लिए गांव गांव अलख जगाते हुए महात्मा गांधी ने बुधवार की सुबह 6.30 से अपना सफर शुरू किया था। अपने 78 सेनानियों के अटूट विश्वास और आस्था को साथ लिए महात्मा असलाली तक पहुंच चुके थे। और मैं भी महात्मा गांधी के पैरों को देखता हुआ असलाली पहुंच रहा था। अहमदाबाद की चमकती हुई ईमारतों के साथ दौड़ता हुआ हाईवे और उसी के एक कट के अंदर से घुसकर असलाली के लिए पहुंच गया। असलाली पहुंचना आसान था। क्योंकि चमकदार गांव है। गांव के अंदर घुसते ही चाय की दुकानों के साथ सटे हुए नालों में भरी हुई पन्नियां और गंदगी की कहानी महात्मा गांधी के विचारों को परास्त करती दिखती है। शायद वो मुझ पर भी मुस्कुरा देती अगर मेरी नजर सीधे सामने सिद्धनाथ महादेव के मंदिर के सामने सड़क पर बने फुटपाथ पर बने महात्मा गांधी की मूर्ति पर न जाती। काले रंग की महात्मा की इस मूर्ति की मुस्कुराहट आपको हमेशा की तरह अपनी ओर खींचती है। एक छोटे से चबूतरानुमा ऊंचाई पर बनी हुई मूर्ति पर गुजराती में लिखा हुआ है कि पूजनीय महात्मा गांधी 12 मार्च 1930 को दांडी यात्रा के दौरान यहां गांव वालों को संबोधित किए थे। मूर्ति के पास गया तो थोड़ा सा डर भी गया। मूर्ति के बेस पर एक काला कुत्ता आराम से धूप सेंक रहा था। मूर्ति को ध्यान से देखा तो होठों के पास से काला रंग उतर गया था। काले रंग की मूर्ति पर ऊभर आई ये सफेदी महात्मा गांधी की मुस्कान का सम्मोहन तो कम नहीं कर पाई थी लेकिन मूर्ति को जरूर बदरंग कर थी। लेकिन ये तो मूर्ति है लिहाजा उस धर्मशाला की ओर चलते है जिसमें महात्मा गांधी ने दांडी यात्रा का पहला रात्रि विश्राम किया था। आगे चलते ही उल्टे हाथ पर एक बड़ा ऊंचा गेट था जिस पर गांव पंचायत का नाम लिखा हुआ था और उसके ठीक सामने काले रंग की एक मूर्ति सरदार पटेल की लगी हुई थी। ये गांव पाटीदारों का गांव है। समृद्ध गांव है। उत्तरभारत के गांवों की तरह नहीं बल्कि गुजरात के बड़े समृद्ध गांवों की तरह। गेट के अंदर घुसते ही पूछा कि महात्मा गांधी कहां रूके थे। तो एक दो लोगों ने अनभिज्ञता जाहिर की। लेकिन एक बुजुर्ग मदद के लिए आएँ और कहां की सामने देखों। ग्राम पंचायत का बहुमंजिला भवन दिख रहा था। मैंने पूछा कि वो तो धर्मशाला में रूके थे इस पर उन्होंने कहा कि धर्मशाला नहीं है गांधी के नाम पर ये ही है और बाहर वो पुतला है। 
धर्मशाला को नया बना दिया गया है लेकिन गांधी या दांडी यात्रा के नाम पर नहीं बल्कि गांव पंचायत के नाम पर। अंदर चमकदार फर्श और उसके अंदर जाते ही पांच कमरों का निचला तल। सबसे सामने का कमरा ग्राम पंचायत सचिव का। आपको कही से नहीं लिखा दिख रहा है कि इस खूबसूरत ईमारत का रिश्ता गांव के गांधी से है क्या। फिर वही से एक और बुजुर्ग दिखे पूछा कि क्या महात्मा गांधी यही रूके थे। उन्होंने उत्साह से जवाब दिया कि हां साहेब यही तो रूके थे। लेकिन कहां उन्होंने नए बने कमरों में से एक कमरे की ओर इशारा कर दिया। लेकिन यहां तो कुछ लिखा नहीं इस पर उन्होंने कहा बाहर लिखा है ना। मैं बाहर की ओर गया तो दीवार के एक कोने पर सफेद पत्थर की एक छोटी सी प्लेट पर काले अक्षरों में लिखा था 12 मार्च 1930 की रात महात्मा गांधी ने यही रात्रि विश्राम किया था। मैंने उन शख्स से पूछा कि आप कौन है तो उन्होंने बताया कि वो यहां चपरासी का काम करते है। और ज्यादा दरयाफ्त करने पता चला कि दस-बारह साल पहले उस टूटी-फूटी धर्मशाला को इस शानदार ईमारत में बदल दिया गया था। बस अंतर इतना आया कि उस टूटी फूटी धर्मशाला में देश का चमकते हुए हीरे की याद दिखती थी, औऱ इस चमकती इमारत से महात्मा का रिश्ता यादों की तरह धुंधली होती एक प्लेट भर जितना दिखता है। मणिलाल भाई यही नाम था उन सज्जन का मैंने पूछा कि जब ये ईमारत बनी तो क्या ये नहीं सोचा गया कि महात्मा की याद बनाएं रखने के लिए कुछ अंदर बनाया जाएं तो उन्होंने हिचकते हुए जवाब दिया कि याद के तौर पर बाहर वो पुतला तो है ना। यहां तो सिर्फ रूके थे जहां संबोधन किया था वहां लगा ही है ना। मेरे पास आगे कोई सवाल उनके लिए नहीं था क्योंकि वो सरकार नाम के तिलिस्म के एक ऐसे पायदान से जिससे अफसर अपने पांव साफ कर सकते थे और आम आदमी जिसके पास बैठकर अपना गुस्सा निकाल सकता था। मैं अपने आपको अगले हिस्सों में मिलने वाले अचरज के लिए तैयार कर रहा था। और याद कर रहा था इतिहास के पन्नों में असलाली का उस दिन का महात्मा के साथ संवाद। 
महात्मा गांधी बीस किलोमीटर की दूरी तय कर लगभग 11.30 तक असलाली पहुंच गए थे। गांव से एक किलोमीटर पहले ही बाजे-गाजे का इंतजाम किया गया था। नाचते-गाते गांव वालों की भारी भीड़ महात्मा के कारवां का इंतजार कर रही थी । गांव की औरतों ने सिर पर कलश और नारियल रख कर शुभ गीतों के साथ इन आजादी के दीवानों का स्वागत किया था। धूलभरे जिस्मों पर चमकते और महकते हुए फूलों की मालाएं डाली थी। शंखध्वनि के साथ गांव वाले महात्मा को गांधी को धर्मशाला तक ले गए थे। पूरा गांव को सजाया गया था हर तरफ ध्वजाएं फहराई गई थी।
इससे पहले महात्मा गांधी ने अपने ही भतीजे कांति गांधी को और उनके साथ सबको एक बात समझा दी थी कि इस यात्रा के नियमों में कोई ढिलाई नहीं दी जा सकती है। महात्मा का खादी का झोला कांति गांधी ने लिया हुआ था लेकिन रास्ते में महात्मा गांधी ने ध्यान दिया तो देखा कि कांति से वो झोला एक गांव वाले ने भार हल्का करने के लिए अपने कांधें पर रख लिया था तो महात्मा गांधी नाराज हो गए और उन्होंने वो झोला फिर से अपने कंधें पर डाल लिया और पूरी यात्रा तक खुद ही उठाए रखा। नियम था कि कोई परिवार का सदस्य तो अपने साथी का बोझ हल्का कर सकता है लेकिन किसी और को मजदूर के तौर पर इस्तेमाल नहीं कर सकता। गांव में महात्मा गांधी ने अपने भाषण में साफ किया था कि अगर सब लोग नमक बनाएं, इस्तेमाल करे और बेचे और जरूरत पड़े तो जेल जाएं। उन्होंने सरकार को चुनौती का गणित भी आम आदमी को उसकी भाषा में ही समझाया था कि गुजरात की आबादी 90 लाख है अगर औरतों और बच्चों को छोड़ दिया जाएं तो तीस लाख पुरूष आबादी बचती है और वो सब के सब इसकानून को तोड़ने पर आ जाएं तो कोई सरकार इतनी आबादी को जेल नहीं भेज सकती है। हां सरकार पीट सकती है , गोली मार सकती है लेकिन आज सरकार इतनी आगे तक जाने में असमर्थ है। लेकिन हम लोगों को इतना दृड़ प्रतिज्ञ होना चाहिए कि अगर वो चाहती है तो हमें मार भी डाले लेकिन हम नहीं हटे।
गांव ने गांधी जी को 101 रूपया, युवा दल ने 21 रूपया, और वाटवा गांव के लोगों ने 37 रूपया दिया। और सबसे बड़ी शुरूआत के तौर पर गांव के पुलिस पटेल और उसके चपरासी ने सरकारी पद से इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया। ........आगे के लिए तैयार रहे....(फोटो-सौमित्र घोष)

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