Monday, March 26, 2018

वो एक क्लब है, प्रेस नाम का नशा फ्री। पत्रकार को गेट आउट तो नारा है।


पत्रकारों की आज़ादी के लिए , पत्रकारों की सुरक्षा के लिये और आखिर में जाम की आज़ादी और किफायती होने के लिये नारे वही से लगने चाहिये। सरकारी सब्सिडी पर दारू पीने का रिकॉर्ड पता नहीं कोई बराबरी कर पायेगा। अब वहां दारू पीकर डर भगाने वालों ने आसमान को ज़मीन में मिला दिया। मैं हमेशा इस क्लब लेकर गलत ही सोचता था क्योंकि इनके लोग जो भी बोलते थे जनता में उसका कोई वजूद ही नहीं मिलता था।
ज़्यादातर लोगों को जिनको प्याले में क्रांति का इतना अनुभवहैं कि किसी भी वक़्त देश को गाली दे सकते थे। सरकारी सब्सिडी की ज़मीन सरकारी सब्सिडी की सुविधाएं और सरकार को गाली। भाषाई पत्रकार वहाँ दोयम से दिखते है। पत्रकार वही जो लेफ्ट को नाम की संस्था को सपोर्ट कर सके और इतना डेडिकेशन कि दारू भी लेफ्ट हैंड से पीनी पड़ती है।
बहुत साल पहले अपने ब्यूरो चीफ के कहने पर वहाँ गया। सुना था कि सत्ता की उथल पुथल वहाँ से तय होती है। अंदर घुसते ही जैसे दारू की बदबू ने पूरे मानस पर कब्ज़ा कर लिया हो। वो आज तक दिमाग से नहीं निकलती लगता है कि उस दिन लेफ्ट के पैर छूने में भी वही ज़्यादा कारगर थी।
फ़ोन एप्पल , गाड़ी बाहर , इच्छा लूट की और नारा लेफ्ट का।
( मेरे बहुत से दोस्त है जो वहां के सदस्य है और अच्छे आदमी है। मेरा किसी से व्यक्तिगत कोई दुराग्रह नहीं है बस वहां की फ़ितरत थोड़ा अजनबी सी दिखती है आज भी देश को तोड़ने की इच्छा रखने वालों के साथ रहने वालों का सम्मान वहीं होता ह

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