Monday, March 26, 2018

"काश भगवान उसको आंख देकर नहीं भेजता तो वो कुछ नहीं देखता और ज़िंदा रहता।उसके हाथ तोड़ देता पैर तोड़ देता पर ज़िंदा छोड़ देता। " प्रधुम्न की माँ।

रोती-बिलखती एक माँ अपने बेटे के लिये इसको भी दुआ मान लेती अगर उसका बेटा अंधा होता या फिर हमला करने वाला उसके हाथ पैर पर चोट करता तो भी वो ज़िंदा तो होता। प्रद्युम्न की माँ की यह चीख हर उस आदमी को अंदर तक चीर रहीं है जो भी इंसानी दिल रखता है। स्कूल के अंदर छह साल का मासूम तो उस दर्द को देखसुन भी नहीं सकता जो मरने से पहले उसको इंसानी भेड़िये से मिला। हर माँ-बाप ने डर कर अपने बच्चों को सीने से लगा लिया होगा। लेकिन सिस्टम को यह चीख सुनाई नहीं देती। क्योंकि वो सुरक्षित है किसी को सज़ा नहीं होगी। वो कंडक्टर बस निशाने पर आ जायेगा। यह स्कूल के हत्यारे चेहरे पर एक नकाब का काम करेगा
एक बाप के दर्द को समझने वाले बहुत होंगे जो इस तरह के लूट की मशीन बन चुके पब्लिक स्कूल की चक्की में अपने बच्चों के भविष्य को चमकदार बनाने में पिस रहे है।
कोई ऐसा शब्द दुनिया की किसी भाषा में नहीं है जो उस माँ और बाप के दर्द को राहत दे। ताउम्र उस स्कूल की इमारत उनको सिर्फ अपने बेटे की याद दिलाती रहेंगी और उस स्कूल के प्रबंधन के लिये सिर्फ कुछ लाख की रिश्वत जो वो बाकि बच्चों के माँ बाप से वसूल चुके होंगे। कुत्तों की तरह बोटियां नोंचते सिस्टम को और कुछ बोटियां मिल जाती हैं प्रबंधन से।
सचमुच क्या हम ज़िंदा है क्या हम लोगो में खून दौड़ रहा है।

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