Monday, March 26, 2018

सत्ता के किले मेंं दरारेंं दिख रही है लेकिन उन पर निशाना साधने के लिए विपक्ष को जो सेनापति चाहिए वो मिल नहीं रहा है। और लंपट बौंने (पत्रकार) जनता को गाली दे रहे है।


मनोहर लाल खट्टर हरियाणा में क्या कर रहे है सबको स्पष्ट है, बाबा से राजनीतिक फायदा उठाने वालों की कतार में शायद सबसे आखिर ख़ड़े हुए मनोहर को ये समझ में नहीं आ रहा है कि जनता को वो अब खट्टे लग रहे है। पंचकूला में उस भीड़ के बाद मारे गए लोगों को लेकर खट्टर की प्रतिक्रिया समझ से परे है। लेकिन खट्टर एक के बाद एक मौके पर ये साबित कर चुके है कि वो खांटी है जिसको खूंट पर टंगी हुई सत्ता मिल गई है। और वो ये साबित करने में जुटे है कि जनता का अपना महती प्रयोग फिर से विफल हो गया। जनता ने प्रोपर्टी डीलर में बदल चुकी सरकार को बदला था लेकिन ये किस तरह के चूके हुए लोगों को सत्ता में लाकर बैठा दिया।
बाबा गुरमीत सिंह के खिलाफ कार्रवाही करने में जिस तरह की हीलाहवाली की और फिर उसे ढ़कने के लिए जिस तरह से कार्रवाही हुई उसमें 38 जानें चली गई। आज भले ही किसी की अदालत में बैठकर हवा हवाई सफाई देते रहो लेकिन जिन लोगों को देखने की आदत है वो देख चुके है कि क्या हुआ। भीड़ में पत्थर फेंकती हुई जनता को गोलियों से ही भून दिया। लोगों के डर को और हाईकोर्ट के ऑर्डर को मौत के वारंट में बदल डाला सरकार ने। इसके बाद स्कूल वाले हादसे में जिस तरह से मंत्रियों की बयानबाजी है और उसके बाद जिस तरह से कार्रवाही है वो जनता को डरा रही है किस के हाथ में अपना मुस्तकबिल दिया है। उम्मीद है रास्ता खोज रही होगी।
इसके बाद दूसरा सबसे बड़ा विफल प्रयोग उत्तरप्रदेश में होने जा रहा है। योगी के चुने जाने पर मैंने सिर्फ एक पत्रकार के तौर पर जनता के मत के आधार पर पार्टी की अपनी प्रक्रिया के तौर पर देखा था। लेकिन दस दिन बाद ही सड़क पर अपने अनुभवों से यह महसूस किया था कि ये योगी भी बीजेपी पार्टी को वोट देने वाले लाखों-करोड़ों लोगों को अपमानित करा कर ही सांस लेंगे। नौकरशाहों के गैंग से संचालित योगी सिर्फ एक चीज में बाकि सबसे आगे है और वो है भाषण देने की इच्छा। इसमें वो मोदी को टक्कर देने में जुटे है। कभी सालों बाद जब किसी को रिकॉर्ड चैक करने की बारी आएंगी तो मोदी से बहुत कम मार्जिन से पीछे रहेगे योगी जी और वो भी इसलिए क्योंकि उनको शायद बीच में ही सत्ता से हटाना पड़े।
मैं कल ही घर से लौटा हूं, गांव में उन युवाओं से भी मिला जिनके उत्साही समर्थन को मैंने चुनाव के दौरान देखा था। सड़कों की हालत तो रास्ते में ही दिख रही थी। जिन गडढ़ों को भरने का दावा किया था वो दावे के साथ ही उखड़ गए थे।
मैंने रीवा तक जाने के लिए जिस मिर्जापुर से रास्ता लिया था, वो पूरा रास्ता मेरे लिए एक कभी न भूलने वाला एक दर्दनाक अनुभव है। इतने लंबा रास्ता किस तरह से बिना सड़क के है और योगी जी ये दावा कर बैठे कि सड़कों की हालत ठीक है।
फिर बच्चों के मरने की खबर। एक के बाद एक गलतियों के साथ अपने आप को पाक साफ दिखाने की कोशिश विनम्रता से ज्यादा धृष्टता में ज्यादा बदलती दिख रही है। मंत्रियों की बयान बाजी जो पहले किसी और
पार्टी से आयात किये हुए है। एक के बाद एक ऐसे मसले है जिस पर ये सरकार लगातार कठघरे में दिख रही है।
लेकिन सबसे ज्यादा निराशा सड़कों पर जाते ही हो जाती है। अपने घर से निकलते ही ऑटो स्टैंड पर वसूली करने वाले जिस लड़के को ऑटो वालों से पैसा वसूलते देखता था वो बदस्तूर जारी है। जिस तरह से आटो स्टैंड वाले पूरी सड़क कोक
लेकिन निराशा तो सबसे ज्यादा आपको भ्रष्ट्राचार के मोर्चे पर दिख रही है। जो लोग पैसा वसूलते थे वो आपको अभी सड़कों पर निकलते ही दिख जाएंगे। कम से कम तरीका तो बदल जाना चाहिए था वो भी नहीं बदला। लोग तो कह रहे है कि पहले से ज्यादा पैसा देना पड़ रहा है। एक युवा ठेकेदार ने हंसते हुए बताया कि आप मंडी और पीडब्लूडी के पेंमेंट और ऑर्डर रिलीज का डाटा देख लीजिए और खुद से समझ लीजिए । साहब को पांच परसेंट पहले ही चाहिए। मैं जानता हूं इस तरह की खबर में कभी भी साहब तक तो पहुंच ही नहीं पाएंगे क्योंकि साहब तक बहुत सी सीढ़ियों को पार करके जाना है। ऐसे दरवाजे जिनसे कोई भी अनजान आदमी जा ही नहीं सकता है।
ऐसे बहुत से उदाहरण आपको दिल्ली में दिख सकते है। जनता को मंहगाईं से निजात नहीं मिलती दिख रही है। पेट्रोल और डीजल पर रोज भाषण देने वाले विपक्षी और अब सत्ता के कर्णधार दोनो को देख कर पब्लिक बस माथा ठोंक रही है। लेकिन सवाल खड़ा हो रहा है कि इसके बावजूद भी राज्यों में बीजेपी को चुनौती मिलती नहीं दिख रही है ऐसा क्यों हो रहा है। क्या कारण है तो इसके लिए आपको विपक्षियों की ओर देखने की जरूरत है। पूरा विपक्ष बस जनता के ऊब जाने का इंतजार कर रहा है। अपनी ओर से कोई कदम नहीं उठाना चाहता। उसको इतिहास पर पूरा यकीन है कि जैसे ही जनता इन लोगों से ऊब जाएंगी तो वो उनको गद्दी दे देंगी। ल
ऐसे बहुत से उदाहरण आपको दिल्ली में दिख सकते है। जनता को मंहगाईं से निजात नहीं मिलती दिख रही है। पेट्रोल और डीजल पर रोज भाष्ण देने वाले विपक्षी और अब सत्ता के कर्णधार दोनो को देख कर पब्लिक बस माथा ठोंक रही है। लेकिन सवाल खड़ा हो रहा है कि इसके बावजूद भी राज्यों में बीजेपी को चुनौती मिलती नहीं दिख रही हैर ऐसा क्यों हो रहा है। क्या कारण है तो इसके लिए आपको विपक्षियों की ओर देखने की जरूरत है। पूरा विपक्ष बस जनता के ऊब जाने का इंतजार कर रहा है। अपनी ओर से कोई कदम नहीं उठाना चाहता। उसको इतिहास पर पूरा यकीन है कि जैसे ही जनता इन लोगों से ऊब जाएंगी तो वो उनको गद्दी दे देंगी।
लेकिन विपक्ष से ज्यादा एक्टिव आजकल बौंने हो गए। ये सही है कि बौंनों का काम सरकार की पॉलिसियों को परखना और उनमें खामियां है तो सवाल उठाना है लेकिन यहां ये पॉलिसी नहीं जनता से निबट रहे है। जिस जनता ने वोट दिया उस जनता को गाली दे रहे है। खबर नहीं कर रहे है बल्कि खबर न होने देने का रोना रो रहे है।
खबर क्या हो रही है वो जनता खुद से देख रही है। खासतौर से मोदी सरकार ने जिस तरह से तुर्रम खां बौंनों की हालत कर दी है कि वो जो भी बोलते है उससे उलट होता है इस बात से खार खाएं हुए बौंने नया घायल विपक्ष बन गया है। पत्रकारिता गई तेल लेने पहले इनसे निबटे।
मोदी का मंत्रिमंडल हर बार इन तुर्रम खां पत्रकारों की पैंट उतार देता है पब्लिक में। हर मौके पर सूत्रों के सहारे एक ऐसा मंत्रिमंडल बना देते है जो बाद में शपथ लेते वक्त नहीं दिखाई देता।
पूरी सरकार के खिलाफ गालियां बांटते हुए कोई घोटाला नहीं दिखाते बस वामपंथी कदमों के सहारे कदमताल करते दिखते है। वामपंथ का उजला इतिहास नहीं है इस देश में भी नहीं और दुुनिया में भी नहीं। किसी को हअभिव्यक्ति की आाजादी आजतक नहीं दी है। साईबेरिया से लेकर पोलपॉट की कहानी कोई भी देख सुन सकता है लेकिन इस देश में बौंनों ने ऐसी हवा बनाई हुई है कि जैसे मानवीय अधिकारों के लिए ये बलिदानी दिवस मनाते है। इसी कारण से जनता से इन लोगों की बातचीत उतनी देर भी नहीं हो पाती जितनी देर कोई वार्ड का नेता कर लेता है।
और सारी जड़ यही है। जनता को हमेशा सत्ता के मंदाधों को उतारने के लिए नेता चाहिए होते है इस तरह के जोकर नहीं जो क्लब की सड़कों से बाहर निकल देश बदलने का का प्लॉन फिर से क्लब में घुसकर बनाते है।
आप सिर्फ खबरों में सरकारों की पोल खोलिए नेताओं को जनता खोज लेंगी। लेकिन अपनी कमी छिपाने के लिए जनता को गाली मत दीजिए लेकिन शायद ये आपकी नहीं वामपंथी साथ की गलती है जो जनता को ही बदल देते है।

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