Monday, March 26, 2018

नमक मीठा हो गया।सदियों में बदला इस ज़मीन का भाग्य।

रेगिस्तान का नाम और रेत ही रेत दिमाग में । लेकिन कच्छ में रेगिस्तान का मतलब ज़मीन पर बिछी सफेद चादर। दूर दूर तक बस आपकी आंखों को बर्फ से ढकी सी ज़मीन नज़र आती है और चांदनी रात में यह ज़मीन जैसे चांद का दर्पण बन जाती है। लेकिन यह खूबसूरती सदियों से भूख, बेबसी, गरीबी और लाचारी का दूसरा नाम थी। यह कच्छ का रण है जाने कब यह कछुए जैसी दिखी और ज़िंदगी से युद्ध को रण में बदल कच्छ का रण बन गई और भाषिक बदलाव में रन बन गयी। लेकिन 10 साल पहले अचानक किसी को खयाल आया कि यह तो दुनिया को प्रकृति का नायाब तोहफा है बस दुनिया को बताना चाहिये। काम शुरू हुआ और 10 साल बाद वहां के निवासी अपनी जिंदगी के बदलाव पर आज भी यकीन नही कर पा रहे है। कभी गधों पर घर के लिये बस नमक देने वाली ज़मीन आज सोना उगल रहीं है। गांव के बाहर खड़े सलिम भाई ने कहा कि कभी किसी ने ख़्वाब में भी सोचा नहीं था कि यह ज़मीन इस तरह बदल जायेगी 12 पीढियां इस गांव की मिट्टी में गल गई , हर साल रोटी के लिये दर बदर भटकते हुए। लेकिन अब यहीं बाहर से आये लोगो को भी रोटी और रोजगार दे रही है यह नमक से ढकी ज़मीन। उनका कहना है नमक मीठा है हमारे लिये।
और मैं सोच रहा था कि हर जगह की अपनी किस्मत होती है अपना वक़्त होता है और कब जाने उसकी किस्मत उससे आकर मिल जाये।
अलविदा सफेद धरती रोशनी बिखेरती रहो रात पूर्णिमा हो या अमावस।

No comments: