Monday, March 26, 2018

बौंनों की जिंदगी अब वामपंथी बचाएँगें।

 
इस तरह से लोकतंत्र खत्म हो चुका है कि बौंनों की आजादी बचाने की बात दूर चली गई है। हम बौंने अपनी जिंदगी के लिए वामपंथ के झंडें तले जल्दी पहूंचे नहीं तो फासिस्ट ताकतें हमें लील जाएंगी। हाथ-पैर ठंडें हो रहे थे। हर तरफ लग रहा था कि कही से गोली न चल जाएं। इतनी बुरी तरह से डरा रही है फासीस्ट ताकते की रात में नींद नहीं आती है। कई बार तो बौंनों के क्लब में ही रात गुजारनी पड़ती है। 
हालात इतने खराब है कॉमरेड कि दूर दराज कस्बों में और ऐसे शहरों में जहां अंग्रेजी नहीं मिलती है रिपोर्टिंग करने वालों के भेष में घूम रहे और मरने का ड्रामा कर रहे बौंने हमको दिल्ली में डरा रहे है।
वैसे तो कई रिपोर्ट पढ़नी थी ऐसी खबरें भी दिखानी थी जिन्होंने इन फॉसिस्ट ताकतों के तिलिस्म तो तार तार कर दिया था और उन्होंने निहत्थी पत्रकार को गोलियां का निशाना बना दिया।
बीजेपी विरोधी पत्रकार। ये नये किस्म की पत्रकारिता है। सरकार विऱोधी पत्रकारिता ये भी नयी किस्म की पत्रकारिता है। अरे इसकों पत्रकारिता के स्कूल में नहीं पढाय़ा गया तो ये पत्रकारिता पढ़ाने वालों की गलती है। ये तो पढ़ कर आएं है भाई।
बौंने के सबसे बडे शक्तिस्थल पर धरने और प्रदर्शन में पूरी दुनिया में क्रांत्रि की आवाज पहंची है। हर तरफ से फॉसिस्ट ताकते बड़़ी बुरी तरह से लज्जित हो गई है।
वैसे कॉमरेड जिस तरह से भारत विरोधी नारों में आपकी जांच के बाद ही आपको कुछ कहा जाना था और उसको लेकर भी इस शक्तिस्थल पर कपो में क्रांत्रिया हुई थी उसी तरह से इस मामले में भी किसी को जांच तो करने दी गई होती।
और हैरानी होती है इस बात की पत्रकारों की आजादी की बात लाल झंडे तले हो रही है। गजब का विरोधाभास है।
बौंनों जनता को जनतंत्र तुम जैसे टुच्चों से नहीं सीखना है। इतनी कहानियां बिखरी हुई है तुम्हारी अलमारियों की दुर्गंध से भन्ना जाएँ जो भी इन आलमारियों में गलती से झांक ले।
ये झूठ में जिंदा लोगों का ऐसा समाज था जिसको मसखरे से ज्याादा कुछ नहीं माना जाता और जिसका लोकतंत्र टके के भाव रोज बिकता है।

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