Monday, March 26, 2018

87 साल बाद डांडी।


"इसमें कोई संदेह नहीं कि अगर गुजरात पहल करेगा तो भारत जाग उठेगा" (गांधी जी डांडी मार्च की तैयारी पर)। 87 साल बाद यह शब्द फिर गुजरात की फ़िज़ा में तैर रहे है। महात्मा का चुटकी भर नमक बनाना और हिंदुस्तान का अपने खून का नमक दिखाना अब इतिहास के पन्नों में है। यह बात अलग है कि अब हमें इतिहास की फ़िक्र है न अपने नमक की। लेकिन बात गुजरात की 2 पैसे के नमक पर 6 पैसे टेक्स की सरकारी अय्याशी के ख़िलाफ़ एक आवाज़ उठी थी और फिर वो ब्रह्मनाद बन काF आसमान में गूंज बन गयी थी।
आज डांडी मार्च की कहानी कहाँ है , गुजरात की ज़िंदगी से डांडी कैसे गायब हुआ। सिर्फ आज़ादी की लड़ाई की एक रणनीतिक कोशिश भर नहीं था डांडी मार्च । देश के आखिरी आदमी के घर तक आर्थिक स्वराज की लड़ाई का एक बड़ा सपना था यात्रा में। छुआछूत से मुक्ति की कामना लिये चले उन यात्रियों ने कभी नहीं सोचा होगा कि आज़ादी के 70 साल बाद भी देश में नहीं गांधी की ज़मीन पर ही यह मसला वही का वही या पहले से भी विकराल रूप ले चुका होगा।
गुजरात चुनाव के लिये अहमदाबाद पहुँचा तो मन किया देखे गुजरात क्या देखता है डांडी यात्रा में। गुजरात मे 87 साल बाद के चुनावों के मुद्दे है आर्थिक हालात, छुआछूत और टैक्स से बढ़ती मंहगाई। बस अंतर कुछ है तो यहीं कि गांधी अब किताबों में भुला दिये पाठ की तरह बस नारों में कभी कभी दिखते है ज़िंदगी में तो जैसै गुजरात गांधी से पल्ला झाड़ चुका है।
तो चलिये शुरू करता हH एक और सफ़र की किस्सागोई। यह भी मेरी समझ के मुताबिक ही होगी हो सकता है आपको पसंद आए या नहीं। रोज़ शाम को देख सकते है मुझे ठीक भी कर सकते है न्यूज़ नेशन पर6.30 पर।

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