साबरमति आश्रम अहमदाबाद आने वालों के लिए एक तीर्थ स्थल के जैसा है। लोग अहमदाबाद आते है उनको बाकि कुछ मालूम हो न हो लेकिन ये मालूम हो जाता है कि यहां महात्मा गांधी का आश्रम है। आश्रम के बाहर चर्खे को देख कर अहसास होता है कि गांधी जी के आश्रम में है। आश्रम के पहले दरवाजे से अंदर जाते ही आपको एक छोटा सा आश्रम सा ही दिखता है बस उसमें झोंपड़ीनुमा इमारत बना दी गई है। अंदर घुसते ही काले बोर्ड पर लिखी हुई सुनहरी जानकारी महात्मा के बारे में एक कहानी सुना देती है हालांकि कम लोग ही उस बोर्ड पर रूकते है। अहमदाबाद में महात्मा के आश्रम में आना एक कर्म जैसा है जो करना है।लेकिन कोई भी ये देख सकता है कि बच्चों और युवा उस बोर्ड को पढ़कर ही आगे कदम बढ़ाना चाहते है। फिर अंदर घुसते ही उल्टे हाथ की तरफ जिस गैलरी में आप जाते है उसमें रखे हुए चित्रों से आप इस आश्रम और महात्मा की कहानी पढ़ने लगते हो लोग चित्र देखते है और आगे बढ़ते है। उस से निकल के पार्क में एक गांधी जी की मूर्ति दिखाई देती है। शांत बैठे हुए गांधी जी प्रतिमा और फिर सामने एक दम प्रार्थना भूमि। मिट्टी बची हुई है। चारों ओर से घिरे हुए इस टुकड़े के बाहर लिखा है कि जूते चप्पल उतार कर अंदर प्रवेश करे। उससे आगे साबरमति का फ्रंट। फिर साबरमति और दूसरी ओर चमचमाता साबरमति फ्रंट और उससे झांकती हुई ऊंची ऊंची ईमारतें। वापस आश्रम के अंदर । हृद्य कुंज। महात्मा और बार के रहने की जगह। बाहर एक कमरा जिसमें गांधी जी आने वालों से मिलते थे। और फिर अंदर जाकर बा का कमरा आता है। इतनी सब चीजों के अलावा भी आश्रम में बताने के लिए बहुत सी बाते है लेकिन हम इस वक्त दांडी यात्रा की बात कर रहे है। ये हर आंख को दिखाई देता है। लोग पहुंचते है और महात्मा की यात्रा में झांक कर अपने सफर को पूर्णाहुति देते हुए निकलते है।
गुजरात की चुनाव यात्रा के लिए सफर की तैयारी में था। महात्मा गांधी जी कुछ भाषण पढ़ रहा था और फिर 9 मार्च के भाषण में उस बदलाव की तस्वीर देखने की कोशिश की जिसमें उन्होंने बदलाव के लिए गुजरात से पहल करने की बात की और विश्वास जताया कि गुजरात के बदलाव से देश में बदलाव निश्चित है। साबरमति में अपने प्रयोगों में जुटे हुए महात्मा गांधी ने देश में बदलाव के लिए 61 साल की उम्र में मुट्ठी भर नमक से ही देश को बदलने की यात्रा शुरू की। यात्रा के लिए चुने गए यात्रियों में महात्मा गांधी की उम्र सबसे ज्यादा थी और यात्रा के लिए सबसे कम उम्र का यात्री गांधी जी की उम्र के अंकों के बिलकुल उलट यानि 16 वर्ष का था। 78 यात्रियों के जत्थे में भारत के अलग अलग हिस्सों का रंग दिख रहा था।
गांधी जी के बारे में इतना लिखा गया कि जिंदगी की हर हिस्से की कहानी लोगों के लिए उपलब्ध है। मैं ऐसा ही मानता था। दुनिया भर से आने वाले पर्यटकों का बड़ा हिस्सा महात्मा गांधी के लिए अहमदाबाद आता है। आश्रम में किसी भी वक्त आप पहुंचिए आप को वहां कोई न कोई विदेशी सैलानियों का ग्रुप महात्मा को खोजता हुआ पहुंच जाता है। ( दुनिया के लिए महात्मा आज भी एक पहेली है, चमत्कार है और आश्चर्य है।) ऐसे में मुझे लगा था कि दांडी के लिए किताब मिलना बेहद आसान सी बात है। आश्रम में एक बड़ी सी दुकान है। उसमें काफी सारा सामान मिलता है उसी में महात्मा जी से जुड़ी यादगार चीजों की अनुकृतियों की बिक्री होती है। और किताबों की दुकान भी है। मैंने पूछा दांडी यात्रा के बारे में क्या क्या उपलब्ध है। उनका कहना था सामने महात्मा गांधी का सेक्शन है उसमें चैक कर लीजिए। मैंने खोजना शुरू किया। हिंदी में तलाश कर रहा था। एक किताब दिखी जो बच्चों के लिए थी। उसमें गांधी की कहानी के साथ बहुत ही संक्षेप में महात्मा गांधी की यात्रा की कहानी थी। फिर दूसरी तमाम किताबों को देखा तो वहां भी नहीं मिली। फिर इंग्लिश सेक्शन को तलाश किया उसमें भी कोई हिंदुस्तानी लेखक की किताब नहीं दिखी। फिर एक आस्ट्रेलियन लेखन थॉमस बेवर की एक किताब दिखाई दी। "ON THE SALT MARCH , THE HISTORIOGRAPHY OF MAHATMAGANDHI'S MARCH TO DANDI"
किताब तो यही दिखी तो इसी का सहारा लेना होगा। रूट के लिए मैप अलग अलग साईट्स पर देख चुका था इसलिए रूट्स के लिए कोई परेशानी नहीं थी वो तो मिल ही जाता। लेकिन दांड़ी के उस दौरान के लोगों के बारे में और उसके बाद बदलाव के बाद की जानकारी के लिए कोई किताब नहीं दिखी। इस पर आश्रम में बात की तो जवाब मिला कि आती तो थी एक किताब लेकिन अभी अर्से से छप नहीं रही है। खैर हमको तो टीवी पत्रकारिता करनी है कौन सा ज्ञान हासिल करना है लिहाजा अपने स्वाभिक बौंनेपन को ओढ़ा और एक विदेशी लेखक के सहारे देसी आत्मा वाले महात्मा को तलाश करने की खोज शुरू कर दी।
इस यात्रा की शुरूआत अगर साबरमति से है तो आपके चेहरे पर मुस्कुराहट इसलिए तैरती है क्योंकि साबरमति ने जिस तरह का चोला ओढ़ा हुआ है और जिस तरह का शालीनता के अंदर उद्दात्ता का भाव है कि वो गांधी को जिंदा रखे हुए वो आपको यात्रा के स्मृति स्थलों का पता नहीं देती है।
मुझे भी लगा कि यात्रा ऐसी ही होगी ऐसी यादगार कि मुस्कुराते हुए गांधी के यात्रा पथ को देख मुस्कुराते हुए हम भी वापस लौट आंएगे।
साबरमति के आश्रम से निकलने का सत्याग्राहियों का समय तय था। उनकी तैयारियों पर लिखा जा सकता है उनको कैसे तैयार किया गया इस पर लिखा जा सकता है काफी कुछ लेकिन वो आपको कही से मिल सकता है अगर आप पढ़ना चाहे लेकिन मैं सिर्फ एक रिपोर्टर के तरीके से इस यात्रा पर लिख रहा हूं। जो लोग गांधी जी के इस पथ की हालत जानना चाहते है वो पढ़ सकते है। मैंने सिर्फ अपनी स्मृति के लिए ये लिखा है क्योंकि मैं बौंना हूं यात्रा तो मेरी रोजी है कल फिर कही और चल दूंगा और फिर नई कहानी सोचने लगूंगा। बीस साल से यही चलता रहा लेकिन इस बार गांधी जी की दाड़ी यात्रा का ये अवसर मुझे मिला है।
दुर्दशा की यात्रा की कहानी अगले लेख से शुरू करता हूं और ये सफर दांड़ी तक जारी रहेगा। .....................
गुजरात की चुनाव यात्रा के लिए सफर की तैयारी में था। महात्मा गांधी जी कुछ भाषण पढ़ रहा था और फिर 9 मार्च के भाषण में उस बदलाव की तस्वीर देखने की कोशिश की जिसमें उन्होंने बदलाव के लिए गुजरात से पहल करने की बात की और विश्वास जताया कि गुजरात के बदलाव से देश में बदलाव निश्चित है। साबरमति में अपने प्रयोगों में जुटे हुए महात्मा गांधी ने देश में बदलाव के लिए 61 साल की उम्र में मुट्ठी भर नमक से ही देश को बदलने की यात्रा शुरू की। यात्रा के लिए चुने गए यात्रियों में महात्मा गांधी की उम्र सबसे ज्यादा थी और यात्रा के लिए सबसे कम उम्र का यात्री गांधी जी की उम्र के अंकों के बिलकुल उलट यानि 16 वर्ष का था। 78 यात्रियों के जत्थे में भारत के अलग अलग हिस्सों का रंग दिख रहा था।
गांधी जी के बारे में इतना लिखा गया कि जिंदगी की हर हिस्से की कहानी लोगों के लिए उपलब्ध है। मैं ऐसा ही मानता था। दुनिया भर से आने वाले पर्यटकों का बड़ा हिस्सा महात्मा गांधी के लिए अहमदाबाद आता है। आश्रम में किसी भी वक्त आप पहुंचिए आप को वहां कोई न कोई विदेशी सैलानियों का ग्रुप महात्मा को खोजता हुआ पहुंच जाता है। ( दुनिया के लिए महात्मा आज भी एक पहेली है, चमत्कार है और आश्चर्य है।) ऐसे में मुझे लगा था कि दांडी के लिए किताब मिलना बेहद आसान सी बात है। आश्रम में एक बड़ी सी दुकान है। उसमें काफी सारा सामान मिलता है उसी में महात्मा जी से जुड़ी यादगार चीजों की अनुकृतियों की बिक्री होती है। और किताबों की दुकान भी है। मैंने पूछा दांडी यात्रा के बारे में क्या क्या उपलब्ध है। उनका कहना था सामने महात्मा गांधी का सेक्शन है उसमें चैक कर लीजिए। मैंने खोजना शुरू किया। हिंदी में तलाश कर रहा था। एक किताब दिखी जो बच्चों के लिए थी। उसमें गांधी की कहानी के साथ बहुत ही संक्षेप में महात्मा गांधी की यात्रा की कहानी थी। फिर दूसरी तमाम किताबों को देखा तो वहां भी नहीं मिली। फिर इंग्लिश सेक्शन को तलाश किया उसमें भी कोई हिंदुस्तानी लेखक की किताब नहीं दिखी। फिर एक आस्ट्रेलियन लेखन थॉमस बेवर की एक किताब दिखाई दी। "ON THE SALT MARCH , THE HISTORIOGRAPHY OF MAHATMAGANDHI'S MARCH TO DANDI"
किताब तो यही दिखी तो इसी का सहारा लेना होगा। रूट के लिए मैप अलग अलग साईट्स पर देख चुका था इसलिए रूट्स के लिए कोई परेशानी नहीं थी वो तो मिल ही जाता। लेकिन दांड़ी के उस दौरान के लोगों के बारे में और उसके बाद बदलाव के बाद की जानकारी के लिए कोई किताब नहीं दिखी। इस पर आश्रम में बात की तो जवाब मिला कि आती तो थी एक किताब लेकिन अभी अर्से से छप नहीं रही है। खैर हमको तो टीवी पत्रकारिता करनी है कौन सा ज्ञान हासिल करना है लिहाजा अपने स्वाभिक बौंनेपन को ओढ़ा और एक विदेशी लेखक के सहारे देसी आत्मा वाले महात्मा को तलाश करने की खोज शुरू कर दी।
इस यात्रा की शुरूआत अगर साबरमति से है तो आपके चेहरे पर मुस्कुराहट इसलिए तैरती है क्योंकि साबरमति ने जिस तरह का चोला ओढ़ा हुआ है और जिस तरह का शालीनता के अंदर उद्दात्ता का भाव है कि वो गांधी को जिंदा रखे हुए वो आपको यात्रा के स्मृति स्थलों का पता नहीं देती है।
मुझे भी लगा कि यात्रा ऐसी ही होगी ऐसी यादगार कि मुस्कुराते हुए गांधी के यात्रा पथ को देख मुस्कुराते हुए हम भी वापस लौट आंएगे।
साबरमति के आश्रम से निकलने का सत्याग्राहियों का समय तय था। उनकी तैयारियों पर लिखा जा सकता है उनको कैसे तैयार किया गया इस पर लिखा जा सकता है काफी कुछ लेकिन वो आपको कही से मिल सकता है अगर आप पढ़ना चाहे लेकिन मैं सिर्फ एक रिपोर्टर के तरीके से इस यात्रा पर लिख रहा हूं। जो लोग गांधी जी के इस पथ की हालत जानना चाहते है वो पढ़ सकते है। मैंने सिर्फ अपनी स्मृति के लिए ये लिखा है क्योंकि मैं बौंना हूं यात्रा तो मेरी रोजी है कल फिर कही और चल दूंगा और फिर नई कहानी सोचने लगूंगा। बीस साल से यही चलता रहा लेकिन इस बार गांधी जी की दाड़ी यात्रा का ये अवसर मुझे मिला है।
दुर्दशा की यात्रा की कहानी अगले लेख से शुरू करता हूं और ये सफर दांड़ी तक जारी रहेगा। .....................
No comments:
Post a Comment