Monday, March 26, 2018

गुजरात का चुनाव एक उलटबांसी है। शो का फैसला जनता को एक्टिंग के आधार पर करना है।गुजरात का डिकरा बनाम जय भवानी, भाजप जवा -णी।


लोग मोदी को पसंद करते है। लोग मोदी के लोगों से नाराज है। लोग राहुल को पसंद कर रहे है राहुल के लोग गायब है। राहुल बड़े से छोटे होने का और मोदी छोटे से बड़े होने का अभिनय कर रहे है और शो का फैसला एक्टिंग के आधार पर जनता को करना है।
गुजरात का चुनाव अपने आखिरी चरण में है। मैं भी इस प्रयोगशाला मेे कुछ दिन गुजार कर बौंनेपन की मिसाल कायम करने में जुटा हूं। कुछ समझता हूं कुछ समझने का अभिनय करता हुआ बौंनों की उस बारात का हिस्सा हूं जो गुजरात मेें जींमणें आई है। राजनीतिक जमीन पर किसी भी बात को लिखना ऐसे गुजरना है जैसे काजल की कोठरी से निकलना क्योंकि जिस तरह से लोगों ने इस वक्त अपनी आंख पर चश्में लगाएं है उसमें अपनी बात को कहने से पहले इतनी बार सोचना होता है कि आप अपनी बात भी कहे वो न केवल निष्पक्ष हो बल्कि सामने वाले को लगे भी नहीं तो उसके चश्में का रंग आपको रंगा हुआ सियार बोलने में देर नहीं करेगा। ( और ये सही भी है बौंनों की बारात में शामिल लोगों के साथ बातकरने पर लगेगा कि ये लोग शायद सुपारी लिए घूम रहेे है या फिर हवा के बाद सिर्फ इन्होंने ही दुनिया इतनी देखी है लिहाजा ज्ञान दे रहे है)
गुजरात में गांधी जी की दांडी यात्रा की उत्सुकता में चला आया। चुनाव कवर करना मुझ नौसिखिये के लिए एक मेला होता है जिसमें बच्चा खो जाता है। उसको हर चीज अपनी ओर आकर्षित करती है खींचती है क्योंकि रंगीन फिरकियां, ऊंचे झूले, मिठाईंयों की दुकानें, अजब-गजब लोग और इतनी भीड़ एक साथ उसकी बुद्धि को, समझ को चकरा देती है। ऐसा ही चुनाव मेरे साथ करता है। (लेकिन फिर भी मैं बौंना अपनी समझ आपसे शेयर कर लेता हूं अपनी वॉल पर सिर्फ ये समझते हुए कि आप मुझ पर हंसेंगे और चले जाएंगे, गालियों से नहीं नवाजेंगे।)
गुजरात चुनाव की शुरूआत में लग रहा था कि मोदी ये मान कर बैठे थे कि दिल्ली में उनकी पारी से रणजी ट्राफी का ये मैच ऐसे ही जीता जाएंगा। दिल्ली की टर्फ पर उनकी बैटिंग्स से रणजी के मैदान में खेल रहे विपक्षी बिलकुल फॉलोआन खेलेंगे। गुजरात का डिकरा इस बात का अहसास लोगो के दिलों पर राज करता रहेगा और वो जीत कर वापस दिल्ली के अगले मैच की तैयारी में जुट जाएंगे। लेकिन जैसे जैसे दिन चढ़े लोगों ने मैच पर तालियां बजानी बंद कर दी। मोदी ब्रिग्रेड के लोगों की हूंटिग शुरू हो गई। हम लोग भी घूमते घूमते देख रहे थे कि लोगों में मोदी की टीम को लेकर बेहद नाराजगी है। बौंनों के गैंग्स जिसको चाणक्य के नाम से नवाजते है वो बीजेपी के लिए बोझ दिखने लगा। गांव-गांव, शहर शहर की धूल फांकतें हुए ( मुझे धूल पंसद है) लोगों से बातचीत में दिख कहा था कि जीत का अहंकार बीजेपी के लोगों के सिर चढ़ कर इतना बोल रहा था कि वो लोग मानने को तैयार ही नहीं थे कि लोकतंत्र में नीचे से सत्ता ऊपर जाती है उनको लग रहा था कि सत्ता ऊपर से आ रही है यानि बाबा की सदियों पहले की चौपाई ". जाको प्रभु दारुण दुख देही, ताकी मति पहिले हरि लेही " यहां चरितार्थ हो रही है। किसी भी नेता से मिलो उसको करोड़ों के कमलम में बैठकर बाहर करोड़ों ही दिख रहे है। उसको जनता दिख ही नहीं रही है। साहेब साहेब बस यही शब्द कमलम में गूंजता दिखता है। और धीरे धीरे उनको भी लगने लगा कि यहां तो पिच तक ही खिलाड़ी जाने नहीं दे रहे है खेलना तो बाद की बाद है। और फिर सबने दरबार में जाकर गुहार लगानी शुरू कर दी। साहेब आओं साहेब आओ।
साहेब आएँ। और फिर खेल शुरू हुआ। फैन्स ने ताली बजानी शुरू कर दी। मैच सही में शुरू हो गया। लेकिन इस बार साहेब दिल्ली के ताल में है। दिल्ली से गांधी नगर दूर है। दूर होते है तो सीन बदल जाते है, रसोईयां और खाना वही रखों तब भी पानी और हवा तो बदल ही जाते है। ट्रैफिक का सेंस भी बदल जाता है और जब इतना कुछ बदल जाता है तो थोड़ा कुछ और भी बदल जाता है। और जितने वक्त आप दिल्ली में होते हो उतने वक्त में यहां भी बहुत कुछ बदल जाता है।
हालांकि बीजेपी की सरकार गांधीनगर में चल रही थी लेकिन शायद ही किसी को यकीन हो रहा होगा कि गांधीनगर से ही चल रही है। और यही कारण है कि पूरी बीजेपी राज्य सरकार आखिर में मोदी पर आकर ही टिक गई। मोदी का लोगों के साथ रिश्ता कमाल का है। उनकी सभाओं में भीड़ कम आ रही है इससे पहले के मुकाबले। लोगों इस बार उनकी बातों को उतनी गंभीरता से नहीं सुन रहे है क्योंकि तमाम लोगों को जो उनकी सभाओं में आते है सब बातें याद है। वो ताली बजाने की लाईन भी जानते है और मोदी जी अगली लाईन क्या बोलेंगे ये भी समझते है। और मंच पर बाकि नेताओं के लिए बोलने के लिए कुछ होता नहीं है उनका घमंड उनको जमीन में घुसा चुका है। सिर को हवाओं में लहराते हुए इन नेताओं को मालूम है कि उनका मगरूर चेहरा अब जनता के लिए नाराजगी का बायस है। करोड़ोे के संसाधनों से खेलते हुए ये नेता अब आम जनता की नजर में अजनबी है। ऐसे में सब कुछ मोदी पर आ कर टिक गया।
मोदी जी के स्टेज, उनकी ड्रेस, उनके शब्द और उनकी रणनीति सब उनकी है लेकिन इस बार उनके शब्द और उनके हाव-भाव एक दूसरे से मैच करते हुए नहीं दिख रहे है। जनता उनको पसंद करती है इस बात को नकारना शायद उनसे नफरत का भाव लिए बिना तो मुश्किल होगा। कही भी चले जाईंये उनको पसंद करने वालों की भीड़ आपके आसपास होगी। बुजुर्ग, बच्चे , महिलाएं और युवा हर वर्ग में एक बड़ी तादाद में लोग उनको गुजरात का नायक मानने से गुरेज नहीं करते।
लेकिन मोदी जी का नायकत्व इस बार इस लिए सबको तय नहीं कर रहा है क्योंकि मोदी का आभामंडल उनको लोगों से दूर कर रहा है। मोदी का शो जिस तरह से मैनेज हो रहा है उससे गुजराती जुड़ नहीं पा रहा है। फिल्मी अंदाज में ड्रेस से लेकर स्टेज तक लगता है जैसे लोग भी फिल्म तरह ही उनको देख रहे है और फिर फिल्म खत्म लोग हॉल से बाहर निकल रहे है। मोदी जी मंच से गरीबों की बात कर रहे है लेकिन मोदी का मंच गरीबों से नहीं जुड़ रहा है,मोदी ने गरीबों के कल्याण की बात कर रहे है लेकिन "कमलम" में कोई गरीब आदमी नहीं दिख रहा है। मोदी जी आम आदमी की बात कर रहे है लेकिन उनका शो हर बार इससे उलट दिख रहा है।किसी नेता के वो करीब नहीं दिखते है मंच पर सबसे अलग हैसियत में और बाकि पार्टी नेताओं से ऊपर आसमान में खड़े होने का अहसास दिलाते है ये बात उनके कार्यकर्ताओं को पसंद हो सकती है लेकिन पब्लिक ने तो आम आदमी को चुना था ये याद है। यही वो पेंच है जहां मोदी के करिश्में की परीक्षा होनी है। लोगों का असमंजस ये ही है कि वो मोदी को नहीं मोदी के लोगों को सबक सीखाना चाहते है। मोदी को देखकर लग रहा है कि उनका सफर जिस आर्थिक विपन्नता से शुरू हुआ था और उसको भुनाने की एक लंबी सफर पारी के बाद वो अब बड़े आदमी दिखना चाहते है एक ऐसा आदमी जो छोटे से बडा हुआ। ऐसे आदमी जिसकी भाषा में बिताई गई गरीबी का गर्व से बड़े जूते में गुणगान किया जाएं। लेकिन कई बार लगता है कि वो उस भाषा के आदमी दिख नहीं रहे है। और सबसे बड़ी बात कि लोग मोदी के नारे लगाने के साथ बीजेपी के नेताओं के घमंड को इस बार नीचा दिखाने के लिए वोट करने की बात साथ साथ करते है। इस बार बीजेपी का एक बड़ा धड़ा भी इस बात को कह रहा है कि सरकार तो बने लेकिन पहले से कम सीटों पर पार्टी के सत्ताधीशों का अहंकार मिटना चाहिए
राहुल गांधी हम बौंनों की बारात में इस बार नए दुल्हे के तौर पर दिख रहे है। राहुल गांधी की सभाओं में भीड़ दिख रही है लोग नारे लगा रहे है लोग आगे बढ़ने की बात कर रहे है। कार्यकर्ता मंदिर मंदिर घूम रहे राहुल की भाषा के परिपक्व होने की बात कर रहे है। और चुनाम में राहुल ने एक दम उलट अंदाज में शुरूआत की। प्रधानमंत्री के शाही शो के उलट इस बार उन्होंने जैसे रास्ता ही बदल दिया। वो एक दम आम आदमी की तरह दिखने में जुटे है। ऐसा आम आदमी जो आपके पास है। राहुल गांधी की कई पीढ़ियां इस देश में किस हैसियत से है और राहुल गांधी पब्लिक से किस हैसियत में मिल रहे है ये इस चुनाव की एक बडी़ शानदार तस्वीर है। सभा में राहुल गांधी ने गिनवाया कि कैसे एक एक राज्य से उनकी सरकार चली गई ( मोदी जी इस बात को लेकर कांग्रेस पर व्यंग्य किया था कि किस किस राज्य में वो सत्ता गंवा बैठी और इसको राहुल ने अपने अंदाज में बदल दिया) अब उनके पास पैसा नहीं बस ईमानदारी है। स्टेज पर वो अपनी पार्टी के नेताओं के बेहद करीब दिखते है, मंच पर रखे हुए स्पीकर को सीधा कराने में अपने से उठ कर उसमें जुट जाना। मंच पर अलग रखे हुए माईक को हटा कर अपने नेताओं से सीधे उसी माईक पर बोलने के लिए इशारा करना जिस पर राहुल को बोलना है और फिर सीधे आम आदमी से अपने रिश्ते का जिक्र करना। राहुल गांधी मंच से उद्योगपतियों पर हमला बोल रहे है। मंच से मोदी और उद्योगपतियों के रिश्तों की बात कर रहे है। मोदी पर हमला बोलने के लिए अमित शाह के बेटे की कंपनी की हवाई तरक्की का जिक्र कर रहे है और ये बात लोगों की तालियों के लिए बहुत मुफीद बैठ रही है। किसानों और जवानों की बात कर रहे राहुल गांधी ने इस बार कांग्रेस का एंटी हिंदु होने का टैग (गुजरात में कुछ दिन पहले तक कांग्रेस को धोने के लिए इतना ही काफी था) काफी हद हटा दिया। लोगों अब बीजेपी के कार्यकर्ताओं की इस बात को सुन नहीं रहे है क्योंकि हर बार कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की बैठक में पहला नारा जो इस बार लग रहा है वो है " जय भवानी, भाजप जवा णी" । पहले तो इस नारे को मैं समझ ही नहीं पाया था कि आखिर जय भवानी के बाद ये भाजप की जवानी का नारा क्यों लग रहा है तब बताया कि भाई बौंने ये भाजप के जाने का नारा है कि जय भवानी और भाजप जवाणी मतलब भाजप जा रही है। ये नारा आपको हर रैली में कार्यकर्ताओं की ओर से लगता दिखता है हर गली नुक्कड़ और सम्मेलन में दिखता है। भीड़ को लेकर की आंकलन चल रहे है। आप गांव में जाते है तो किसानों के मुंह से कांग्रेस के लिए सुकून भरी बातें सुन सकते है। ऐसा हर तरफ दिखता है। लेकिन ये दिखने की कहानी है। राहुल गांधी देश के जनतांत्रिक राजव्यवस्था के राजकुमार है, वो जन्मजात बड़े है लेकिन मंच पर वो छोटे दिखने में जुटे है। लोगों के बीच उनका जाना ऐसे ही होता है कि वो उनके अपने है हालांकि कार्यकर्ता ये जानते है और आम जनता को बताते है कि वो देश के इतने बड़े आदमी है लेकिन कैसे आम आदमी की तरह से रहते है ये इस चुनाव में बड़े से छोटे आदमी के तौर पर स्वीकार्यता की उपलब्धि को कांग्रेस वोट में बदलने में जुटी है। लेकिन आप जब मंच से हटते है, गांवों की उस जातिवादी भीड़ से हटते है जो जाति के गणित से इस बार बीजेपी को खलनायक और कांग्रेस को मसीहा मान रही है तो सच्चाई से रूबरू होते है। कांग्रेस के नेता कहां है, कांग्रेस के वो कार्यकर्ता कहां जिन्होंने बाईस साल से कब्र में पड़ी कांग्रेस को मंच पर बैठा दिया तो आपको दिखता है कि वो तो कही नहीं है। कांग्रेस ने मेहनत नहीं की। कांग्रेस ने कोई नेता पैदा नहीं किया, कांग्रेस चमत्कार के सहारे खड़ी है, वो इंतजार कर रही थी कि कोई चमत्कार हो और बीजेपी का अवसान हो जाएं। ऐसा चमत्कार हुआ और तीन विरोधी स्वर तीन जवां चेहरों के तौर पर उभर आएं। कांग्रेस की अपनी उम्मीदें कुछ नहीं है उसकी उम्मीदों का पूरा का पूरा बोझ जिग्नेश, अल्पेश ( अब कांग्रेस में) और हार्दिक पटेल की तिकड़ी उठा रही है। राहुल बोलते हुए दिख रहे है लोगों से रिश्ता जुड़ता हुआ दिख रहा है लेकिन नेताओं को लोग खोज रहे है। पाटीदार समाज, ठाकोर समाज और दलित समाज (मूलवंशी - कुछ लोगों ने कहा कि अब यही लिखा जाना चाहिये) के दम पर कांग्रेस की नाव टिकी है। पार्टी के पास रेत ही रेत है लेकिन तिकड़ी इस पर नाव चला रही है। उसका दम है कि वो पार्टी को खींच रही है। मोदी से नाराज लोगों की भीड़ और बीजेपी के घंमड से ऊबे हुए लोगों की भीड़ आपको हर रैली में नारे लगाती हुई मिल जाएंगी। लेकिन इस भीड़ के अलावा कितने लोग है जो इस नारे की आवाज में वोट मिलाएंगे ये कहानी मोदी और राहुल के अभिनय की वास्तविकता को बता देंगी। चुनाव खत्म हो जाएंगा पार्टी सत्ता में आ जाएंगी और लोग वापस दोनों की भूमिकाओं के बारीकियां को बताते हुए अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में खटने के लिए निकल जाएंगे। और मैं भी अपनी बिरादरी यानि बौंनों की बारात के साथ इस पर अपनी मीमांशा करते हुए फ्लाईट पकड़ लूंगा।

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