हां लाईट.लाईट ..स्विच कहां है। वो खिड़की से आ रही दम तोड़ती रोशनी में ट्यूब लाईट्स का स्विच खोज रहा था क्योंकि मुझे एक छोटा सा इंटरव्यू लेना था। मैं सिर्फ देख रहा था उस युवा को, जो छह महीने बाद अपने ही घर में लाईट का स्विच खोज रहा था और खोज नहीं पा रहा था। ये वही घर था जिसमें हर स्विच और उसकी जगह खुद उसी की पसंद से तय हुई थी। लेकिन छह महीने तक इस घर से दूर दर- बदर की ठोकरें खाते हुए घूम रहा था और साथ में घूम रहे थे उसके पिता। वही पिता जो इसी युवा को गोद में खिला कर इस शानदार कोठी को अपनी खुशनसीबी मानते थे। लगभग 2005-6 की बात थी। रिसेप्शन से फोन आया था कि दो लोग आप से मिलना चाहते है। मै्ं आया तो देखा एक बुजुर्ग सरदार जी और उनका युवा बेटा मेरा इंतजार कर रहे थे। मैंने पूछा कि हां कहिए। बुजुर्ग ने पहले मेरा नाम पूछा और फिर मेरा हाथ पकड़ कर कहा कि आप बस भगवान को याद कर इतना कह दीजिए कि हम लोग आप पर भरोसा कर सकते है । उनके हाथ कांप रहे थे। मेरे लिए ये थोडा सा अलग बात थी ,हालांकि मैं ऐसे बहुत से लोगों से मिलता था ( उस वक्त हम बौंने नहीं थे ) और उनकी परेशानियों को भी जानता था लेकिन इतने डरे हुए लोगों से कम ही साबका पड़ा था। मैंने कहा कि आप बेफ्रिक रहिए मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा कि आपका विश्वास टूट जाएं। बुजुर्ग ने कहा कि सर हम जिस जगह से विश्वास खो कर लौटे है वो आप सुनेंगे तो हमारी हालत का अंदाज लगा सकते है। क्या हम बाहर चल सकते है। मैंने कहा कि जहां आपकी मर्जी मैं वही जा सकता हूं, जहां आपको यकीन आ जाएं। तो फिर चलिए। मैंने तब ध्यान दिरया कि वो बैग्स लिए हुए थे। साथ में बैठा हुआ खूबसूरत युवा बेहद चुप था। खैर हमारे पराने ऑफिस के ठीक सामने एक पार्क था। उसी में एक कोने में जहां युवक बार बार इधर-उधर देख रहा था। मैंने कहा कि आप यहां निश्चित रहिए। अब बताईयें। तब उन्होंने कहा कि वो छह महीने से अपने घर से भागे हुए है और उसकी वजह है सीबीआई। सुनते ही मैं चौंक गया क्योंकि अभी तक सीबीआई की बिल्डिंग्स की ईंटों से बात नहीं हो पाई थी। बस ऑफिसरों से मिलता था। वो अफसर बेहद अच्छे थे, मुस्कुराते थे और चाय भी पिलाते भी थे। ऐसे में किसी अविश्वास का कोई मतलब नहीं था। कहानी तो बहुत लंबी है। लेकिन मुख्तसर में इतनी सी है कि वो बुजुर्ग एक बिजनेसमैन थे बिजनेस में घाटा हुआ तो उन्होंने एक बडी चैन से कुछ पैसा उधार लिया लेकिन वक्त पर चुका नहीं पाएं। ऐसे में उस बिजनेसग्रुप ने कहा कि आप मेरा एक काम कीजिए मेरा कुछ पैसा यहां से बाहर भेज दीजिए। सरदार जी ने परेशानियों से बचने की राह सोचते हुए मान लिया और जैसे ही उसका एकाउंट घूमना शुरू हुआ तो एक दो-तीन महीने में ही उनके एकाऊंट ने 65 करोड़ रूपए का की राउंड ट्रिपिंग हो गई। इस पर उस आदमी ने घबरा कर बिजनेसग्रुप से कहा कि आप इसको बंद कीजिए। तब उस ग्रुप ने कहा कि ये काम पूरा कर दो तब भी मुक्ति होगी क्योंकि आप इसमें शामिल है। इसपर उस आदमी ने घबरा कर अपने आप को घर में बंद कर लिया और फिर लगा कि जितनी सजा होगी वो तो होगी क्यों नहीं इस काले कारनामे की खबर ऐसी एजेंसी को दे जाएं जो इसकी जांच करे। इसीलिए बहुत सोच-विचार कर उस शख्स ने खुद जाकर सीबीआई को पूरी कहानी बताने की सोची और सारे कागजों के साथ जिसमें उनके अपने बैंक रिकॉर्ड शामिल थे और उसका अपना बयान भी कि उसने इसमें कितना हिस्सा था सीबीआई पुहंचा आएँ। वो निश्चित थे क्योंकि उन्होंने सबूत दिए थे।, लेकिन कई दिन गुजर गए सीबीआई से उनको कोई जवाब नहीं मिला। वो खुद गेट पर जाकर रिसीव करा कर आएँ तब भी कुछ नहीं हुआ। और फिर एक दिन उनके घर की घंटी बजी तो देखा कि बिजनेस ग्रुप का एक आदमी उनके घर आ धमका और सीधे कहा कि हमारे खिलाफ साजिश करते हो। सीबीआई को बताते हो। बुजुर्ग ने प्रतिवाद किया तो उन आदमी ने बैग से सारे कागज निकाले और कहा कि ये ही वो शिकायत है जो सीबीआई को दे कर आए थे। इस पर उस परिवार के होश उड़ गए वो वाकई में वहीं कागज थे जो उन्होंने सीबीआई को दिए थे। धमकियां देते हुए वो शख्स वापस चला गया और इधर इन सरदार जी ने अपने एकलौते बेटे को साथ लिया, जो भी पैसा और जरूरी सामान लिया और घर से निकल भागे। घर में बस दो जवान बेटियां रह गई थी जो घर को खाली कर जाने को तैयार नहीं हुई। खैर मैंने इसपर सीबीआई से भी बात की थी कोई जवाब नहीं मिला था। मैंने खबर भी की थी कि एक शख्स खुद के खिलाफ सबूत दे रहा है लेकिन जांच नहीं हो रही है। इसके बाद उस शख्स की बिजनेसग्रुप से बात हुई। और तय हुआ कि वो अब कही शिकायत नहीं करेंगे और अपना कर्जा कुछ समय बाद वापस कर देंगे और तथाकथित जांच (अगर कोई हुई तो उसको बिजनेसग्रुप संभालेगा) इस तरह से छह महीने के बाद वो शख्स पहली बार अपने घर आया था अपने ही बेटे को लेकर। ये मेरा पहला एनकाउंटर था सीबीआई की विश्वसनीयता से। हालांकि मैं इस बात को वक्त के साथ भूल चुका था क्योंकि चाय इतनी बार पी चुका हूं सीबीआई के मीडिया रूम में। लेकिन आज फिर ये कहानी याद आ गई।
क्योंकि
आज 2जी पर फैसला आया। और सब लोग बरी हो गए। लोअर कोर्ट का फैसला इसलिए चौंका रहा है क्योंकि देश की सबसे बड़ी अदालत ने सारे लाईसेंस कैंसिल कर दिए। सुप्रीम कोर्ट ने लगातार सुनवाई की। बहस हुई। जीरो लॉस थ्योरी भी सामने थी। और एक पेशी के लाखों रूपए लेकर काफी बड़े वकीलों ने उस वक्त बहस की। लेकिन देश में न्याय के सबसे बड़े मंदिर को लगा कि दाल काली है, लिहाजा पूरी डील ही कैंसिल हो गई। लेकिन अब इस पूरे मामले की छानबीन कर आरोपियों को अपराधियों में तब्दील करने के लिए सबूतों की जांच की जिम्मेदारी जांच एजेंसियों की सरताज सीबीआई को दे दी गई। जांच एजेंसियों पर देश की जनता की उम्मीदें हमेशा टिकती है और घायल होकर लौट आती है। इस बार भी ऐसा ही हुआ। इस मामले में क्या हुआ क्या नहीं इस पर मैं टैक्नीकल डिटेल्स में नहीं जाना चाहता क्योंकि इस मामले में सीबीआई के गौरवशाली डायरेक्टर अमर प्रताप सिंह साहब ने भी तीस हजार करोड़ रूपये का घोटाला माना था। उस दौरान सुप्रीम कोर्ट एक कमेटी इनके ऊपर बैठाना चाहता था ताकि जांच की दिशा पर नजर रखी जा सके लेकिन सीबीआई ने इस बात से बच निकली। और जांच चली। मुझे नहीं लगता कि सीधे तौर पर आप सीबीआई डॉयरेक्टर साहबों के शाहाना लाईफस्टाईल और उनकी तनख्वाह, निवेश का रिश्ता समझ सकते है। लेकिन ये सभी जांच एजेंसियों का हाल है। सब इस तरीके से ही रहते है। एक दूसरे को पानी देते हुए और जनता को पानी पिलाते हुए।
एक कविता याद आ रही है आलोक धन्वा की ,,
"सवाल ज्यादा है"................
पुराने शहर उड़ना
चाहते हैं
लेकिन पंख उनके डूबते हैं
अक्सर ख़ून के कीचड़ में !
मैं अभी भी
उनके चौराहों पर कभी
भाषण देता हूँ
जैसा कि मेरा काम रहा
वर्षों से
लेकिन मेरी अपनी ही आवाज़
अब
अजनबी लगती है
मैं अपने भीतर घिरता जा रहा हूँ
सवाल ज़्यादा हैं
और बात करने वाला
कोई-कोई ही मिलता है
हार बड़ी है मनुष्य होने की
फिर भी इतना सामान्य क्यों है जीवन ?
चाहते हैं
लेकिन पंख उनके डूबते हैं
अक्सर ख़ून के कीचड़ में !
मैं अभी भी
उनके चौराहों पर कभी
भाषण देता हूँ
जैसा कि मेरा काम रहा
वर्षों से
लेकिन मेरी अपनी ही आवाज़
अब
अजनबी लगती है
मैं अपने भीतर घिरता जा रहा हूँ
सवाल ज़्यादा हैं
और बात करने वाला
कोई-कोई ही मिलता है
हार बड़ी है मनुष्य होने की
फिर भी इतना सामान्य क्यों है जीवन ?
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