Monday, March 26, 2018

शैतानों के वंशज होने पर भी गर्व कीजिए । बात सिर्फ पद्मावति की नहीं है बात एक रास्तें की हो रही है।

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“कारी कनीज (साधारण काम करने वाली दासियां) का भाव 5 तनके से 12 तनकों के बीच में निश्चित किया गया। किनारी ( रूपवान दासी) का भाव 20 से 30 तनके निश्चित किया गया। दास का भाव 100 से 200 रूपये तनके तक बहुत कम निश्चित होता । यदि कोई ऐसा दास आ जाता जिसका मूल्य उस समय हजार से दो हजार तनके होता तो उसे गुप्चरों के भय के कारण कोई नहीं खरीद सकता था। रूपवान दासों के पुत्र तथा इमरदों का भाव 20 से 30 तनके था। कारकरदा दासों (साधारण काम करने वाले दासों) का भाव 10 से 15 तनके तक का था , नौकरी (अनुभवशून्य) गुलाम बच्चों का भाव 7 से 8 तनके था।“
“कई हजार मुगलों को, गले में रस्सियां डलवा कर , नरानिया के किले में भिजवा दिया गया। उनके स्त्री बच्चों को देहली लाया गया। वे देहली के दासों के बाजार में हिंदुस्तानी दासियों तथा गुलाम बच्चों की भांति बेच डाले गए।“
“प्रजा को इतना आज्ञाकारी बना लिया गया था कि वे अपनी स्त्रियों और बालकों को बेच डालते थे, किंतु खिराज अदा करते थे।“
“राय की रानियां तथा हाथी एवं खजाना शाही सेना को प्राप्त हुआ। करण की रानी कमलादी बड़ी रूपवान थी। खान ने विजय के उपरांत वापस आकर समस्त धन-संपत्ति तथा हाथी घोड़ों के साथ साथ गुप्त रूप से कमलादी को पेश किया। सुल्तान ने उसे अपनी रानी बना लिया।“ ( तारीखे फिराज शाही)
वह इस प्रकार है कि कि हिंदु अपनी भक्ति के कारण तलवार तथा अग्निद्वारा जल कर मरने से बिलकुल नहीं डरते । हिंदु स्त्री अपने पुरूष के लिए अपने आप को अग्नि में जला देती है। पुरूष किसी मूर्ति अथवा अपने स्वामी के लिए अपने प्राण त्याग देता है। (खुसरो—नुह सिपेहर)
जब उलुग खा को ये ज्ञात हुआ कि मुगलों में से दो व्यक्ति राय हमीर की शरण में पहुंच गए है तो उसने एक दूत भेजा और कहा कि कमीजी मुहम्मद शाह तथा काभरू दो विद्रोही तेरी शरण में आ गए है य़ तू हमारे दुश्मनों की हत्या कर दे अन्यथा युद्ध के लिए तैयार हो जा। हमीर ने अपने मंत्रियों से परामर्श किया । उन्होंने उसे राय दी कि में युद्ध न करना चाहिए तथा उन दोनों को उनके सुपुर्द करन देना चाहिए। हमीर नेउत्तर दिया कि जो मेरी शरण में आ चुका है उसे मैं किसी तरह की हानि नहीं पहुंचा सकता चाहे प्रत्येक दिशा से इस किले पर अधिकार जमाने के लिए तुर्क एकत्रित क्यों न होजाएं। राय हमीर ने इस तरह का उत्तर लिखकर भेजा
जो लोग मेरी शरण में आ गए हैउन्हें मैं किसी तरह से तुझे नहीं सकता हूं यदि तू युद्ध करना चाहता है तो मैं तैयार हूं। ..........................राय महीन ने जौहर का आयोजन किया य़ अपनी समस्त बहुमूल्य वस्तुएं जला डाली। इसके उपरांत सबसे विदा होकर युद्ध के लिए निकला। फीरोजी मुहम्मद शाह तथा काभरू भी युद्द के लिए उसके साथ निकले । राय हमीर युद्द करते हुए मारा गया। (फूतहुस्सालातीन...अमीर खुसरो)
शहर तबाह कर दिया गया।
अंत में वह तिंलग की ओर भागा। रूद्र ने उसे शऱण दी। जब मलिक अहमद पटन पहुंचा तो उसने करण की समस्त धन संपत्ति पर अधिकार जमा लिया। उसकी एक रूपवान पुत्री दिवल तथा अन्य रानियां गिरफ्तार हुई।। फूतूहस्सलातीन
पद्मावति देश के हिंदी मानस या फिर ऐसे प्रदेशों में जहां हिंदी फिल्मे देश को इतिहास पढ़ाती है आज का सबसे बड़ा मसला है। सोशल मीडिया पर लोग अभिव्यक्ति की दुहाई दे रहे है, कुछ लोगों ने इसे आजादी का मसला भी माना है एक दो टिप्पणियां दिलचस्प है, मैं ऐसी लोगों पर शर्म करता हूं जो जौहर को गर्व मानते है, कुछ विद्वान लोगों को लग रहा है कि राजपूत इतने कायर थे कि हारते क्यों रहे और कुछ लोगों को अकबर से रिश्तेदारियों पर भी काफी दिलचस्प सवाल है। ये सवाल करने वाले इतने पाकसाफ हो गए कि उनके पुरखे सीधे दिल्ली की गद्दी से इनको पैदा कर हवा में पाल कर बडे कर गए है और इतिहास के किसी भी दौर का इनसे रिश्ता नहीं रहा है। और सीधा इन्होंने फैसला करने वाली कलम पकड़ ली है और फिर इतिहास के नाम पर किसी मूर्ख के लेख को ( जो बिना किसी रैफरेंस के होता है ) बाईबल बना कर डाल देते है। कुछ आजकल शिजरा भी देख रहे है राजपूतों का ( कोई जातिवादी कहानी नहीं बस उन लोगों की प्रतिक्रियाओं का जिक्र कर रहा हूं जो आजादी की लड़ाई का इतिहास शायद चार किताबों तो दूर की बात है चार अध्याय से ज्यादा नहीं पढ़े होगे। मैने उपर जो भी उदाहरण दिये है वो अलाउद्दीन के लिए उस वक्त के इतिहासकारों की किताबों से है। किताबे अरबी और फारसी की है उनका अनुवाद है कुछ हिस्सों का। अनुवादक ने साफ लिखा था कि वो अतिश्योक्तियों का अनुवाद नहीं कर रहा है यानि जो किस्से हिंसा और अत्याचारों के है उनको नहीं लिख रहा है इसके बावजूद जो ऊपर की कहानी है उसमें से काफी कुछ पता चलता है।
माले गनीमत के तौर पर हासिल औरतों के साथ जो किया जाता है उसका नमूना भर है। पद्मावति राजपूत थी या नहीं ये सवाल ही नहीं है सवाल है कि क्या उस वक्त की अंधी वासना और धर्म के नायक अलाउद्दीन को नायक साबित करके क्या हासिल करना चाहता है समाज।
यात्रा में हूं सो इस विषय पर अभी समय नहीं मिल पा रहा है लेकिन अपने विचार साझा करने की कोशिश करूंगा जहां भी समय मिलेगा

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