Monday, March 26, 2018

रानी पद्मावति और इतिहास का रिश्ता। कौन सा देश बिना मिथक, किस्सों और कहानियों के बना है ये भी बताना चाहिए। 2

"सोना सभी का रक्त बहाता और फिर भी अपने स्थान पर रहता है
कोई ऐसा नहीं जो कि सोने से सबके रक्त का बदला ले।" बरनी
रानी पद्मावति का इतिहास में कोई जिक्र नहीं आता ये लाईनें आजकल अभिव्यक्ति की आजादी का नाम जपने वालों की पहली पसंदीदा लाईंने है। और ये जायसी की उपज है। उनके मासूमियत भरे इस तर्क में उनकी मक्कारी छिपी हुई है। दरअसल वो इतिहास को कभी ढाल बना लेते है और कभी इसका तलवार की तरह इस्तेमाल कर रहे है। और इसकी वजह सिर्फ एक देश से नफरत और उसको खत्म करने की हद तक जाकर आत्मलीनता। ऐसा नहीं है कि उनको इतिहास की जानकारी नहीं है बल्कि इससे उलट उनको इतिहास की आम आदमी से ज्यादा जानकारी है। और वो जानते है कि पद्मावति इतिहास की किताबों से भी आगे गांव-गांव देहात और भाषाओं के दरियाओं को पार कर लगभग देश के हर इलाकों में किस्सों में गाई जाती है। ऐसे स्वांग और लोकगीतों में सती पद्मावति के किस्से है और आजादी की जिस लड़ाई के दम पर देश को गालियां देने में जुटे अभिव्यक्ति के ये व्यापारी मस्त है उसकी लड़ाई में महिलाओं को शामिल करने के लिए जो लोकगीत गाएं जाते रहे उनमें भी पद्मावति का बड़ा उल्लेख होता रहा। और अगर इन विद्वानों की बातों को इसी तरह स्वीकार किया जाएं तो आजादी की पूरी लड़ाई और मध्यकाल के उस अंधेरे काल के दौरान गांव गांव में धार्मिक अत्याचारों के सामने थोड़ा बहुत साहस बचाने में लगी स्त्रियों के गीतों को भी झूठ मान लेना चाहिए। और बात अगर सिर्फ इतिहास में रखे तो फिर ये भी देखना चाहिए कि इन अभिव्यक्ति के दीवानों ने इतिहास को सही से रखा या नहीं । उसको पवित्र मानने की जिस जिद का हवाला आजकल दे रहे है उस इतिहास को आम जनता से बचा कर रखने की कोशिश क्यों की गई। उस इतिहास को सीधा साझा किया जाना चाहिए। अभी एक जेहादी मानसिकता के साथ अभिव्यक्ति में लीन एक महिला पत्रकार का ट्वाीट देख रहा था कि अलाउद्दीन एक ऐसा बादशाह हुआ है जिसने हिंदुस्तान को एक किया है। ये हैरान कर देने वाला ट्वीट था। राणा सरनेम लगाने के बाद उनको अपने इतिहास के बारे में शायद कुछ ज्यादा याद होना चाहिए था। क्योंकि उनके अलाउद्दीन ने हिंदुस्तान के साथ क्या किया था ये सीधा उनके पूर्वजों के साथ जरूर जुड़ता है। खैर बात वही से शुरू करते है कि भंसाली का नायक अलाउद्दीन डर के शाहरूख खान की तरह से नायक बन कर निकलेगा लेकिन मैं इतिहास के पन्नों से कुछ लाईंने निकाल कर शेयर कर रहा हूं ये पद्मावति को इतिहास में खोजने वाले शातिरों को पहले से मालूम होगी बस उनको दबाने की कोशिशे ज्यादा करते रहे होगे।
"सुल्तान ने बुद्धिमानों को उन अधिनियमों तथा कानूनों के तैयार करने के विषय में आज्ञा दी जिनके द्वारा हिंदुओं को दबाया जा सके और धन संपत्ति. जो कि विद्रोह तथा उपद्रव की जड़ है , उनके घरों में शेष न रहने पाएं। खूत तथा बलाहर, खिराज (भूमिकर) अदा करने में एक नियम का पालन करे और निर्बल लोगों को धनधान्य वाले लोगों के जगह पर खिराज न देना पड़े। हिंदुओं के पास इतना शेष न रह जाएं कि वे घोड़ों पर सवार हो सके, हथियार लगा सकें, अच्छे वस्त्र पहन सकें तथा निश्चित होकर आराम से जीवन व्यतीत कर सके"। ( तारीख फिरोजशाही- बरनी पेज 68 )
सभी गांवों से करही तथा चराई वसूल होने लगी। इस कार्य को इतने सुव्यवस्थित ढंग से किया कि चौधरियों, खूतों और मुकद्मों में विरोध, विद्रोह, घोड़े पर सवाल होना, हथियार लगाना, अच्छे वस्त्र पहनना, तथा पान खाना पूर्णतया बंद हो गया। खिराज अदा करने के विषय में सभी एक आदेश का पालन करते थे। वे इतने आज्ञाकारी हो गये कि दीवान का एक चपरासी कस्बो के बीसयों खूतों मुक्द्मों और चौधरियों को एक रस्सी में बांधकर खिराज अदा करने के लिए मारता पीटता था। हिंदुओं के लिए सिर उठाना संभव न था। हिंदुओं के घरों में सोने चांदी , तनके और जीतल तथा जन संपत्ति का जिसके कारण लोग षड़यंत्र और विद्रोह करते है चिन्ह भी न रह गया था। दरिद्रता के कारण खूतों और मुकद्मों की स्त्रियां मुसलमानों के घर जाकर काम करने लगीं और मजदूरी पाने लगी। ( पेज 69
अब काजी मुगीसुद्दीन के साथ एक संवाद भी है जो काफी विवादित रहा था लेकिन बर्नी ने इसको बाकायदा अपनी किताब में दर्ज किया है।
सुल्तान अलाउद्दीन ने काजी मुगीस से पहला मसला ये पूछा कि "हिंदु खिराज गुजार और खिराज देह के विषय में शरा कि क्या आज्ञा है।" ?
काजी ने उत्तर दिया कि "हिंदु खिराजगुजार के विषय में शरा की यह आज्ञा है कि जब दीवान का कर वूसल करने वाला उससे चांदी मांगे तो वह बिना सोचे विचारे और बड़े आदर-सम्मान तथा नम्रता से सोना अदा कर दे।
यदि कर वसूलने वाला उसके मुंह में थूकना चाहे तो वह बिना किसी आपत्ति के मुंह खोल दे जिससे वह मुंह में थूक सके। उस दशा में भी वह कर वसूलने वाले की आज्ञाओं का पालन करता रहे। इस प्रकार अपमानित करने, कठोरता प्रकट करने तथा थूकने का ध्येय यह कि इससे जिम्मी का अत्याधिक आज्ञाकारी होना सिद्ध होता रहे। इस्लाम का सम्मान बढ़ाना बहुत आवश्यक है। दीन को अपमानित करना बहुत बुरा है। खुदा उनको अपमानित करने के लिए इसी तरह से कहता है विशेषकर हिंदुओं को अपमानित करना दीन के के लिए अत्यावश्यक है कारण कि वे मुस्तफा के दुश्मनों में सबसे बड़े दुश्मन है। मुस्तफा अलैहिस्सलाम ने हिंदुओं के विषय में ये आदेश दिया है कि उनकी हत्या करा दी जाऐं। उनकी धन संपत्ति लूट ली जाएं या उनको बंदी बना दिया जाए या तो उनसे इस्लाम स्वीकार कराया जाएं या फिर उनकी हत्या करा दी जाएं और उनकी धन संपत्ति छीन ली जाएं। "
और ये कारनामें भी दया का हिस्सा है क्योंकि बाकि सब फिरकों के बारे में भी काजी मुगीस ने इस संवाद में बताया कि क्यों ये हिंदुओं के लिए दया है।
"इमामें आजम अबू हनीफा के अतिरिक्त जिनके हम अनुयायी है (बाकि तीन शाफईस मालिकी और हमबली ) अलावा किसी ने भी हिंदुओं से जजिया वसूल करने की आज्ञा नहीं दी है। दूसरों ने इस प्रकार की कोई रवायत नहीं लिखी है। उनके आलिम हिंंदुओं के विषय में केवल ये आदेश देते है कि या उनकी हत्या कर दी जाए या फिर उनसे इस्लाम स्वीकार कराया जाएं।"
अब उन मोहतरमा और अभिव्यक्ति के दीवानों के नायक का जवाब भी सुन लेना चाहिए।
"ए मौलाए मुगीस , तू बड़ा बुद्धिमान है किंतु तुझे कोी अनुभव नहीं। मैं पढा़ लिखा नहीं किंतु मुझे अनुभव प्राप्त है। तू समझ ले कि हिंदु उस वक्त तक मुसलमान का आज्ञाकारी नहीं होता जबतक कि वह पूर्णतया निर्धन या दरिद्र नहीं जाता। मैंने यह आदेश दे दिया है कि प्रजा के पास केवल इतना धन रहने दिया जाए कि वह प्रत्येक वर्ष कृषि तथा दूध और मट्ठे के लिए प्रर्याप्त हो और वे धन संपत्ति एकत्रित न कर पाएं। "
ये सिर्फ शुरूआती संवाद है। शैतान अलाउद्दीन की कहानी में इतनी नफरत है वहशियत है कि उसको किसी से प्रेम करने का स्वप्न भी उसकी औलाद का ही सपना लगता है। .......................2
ये सिर्फ बरनी का किस्सा है अभी दूसरे इतिहासकारों का वर्णन भी है , मैं इसको पद्मावति के नाम देश की आत्मा से बलात्कार करने की छूट का नाम अभिव्यक्ति नहीं मान सकता इसलिए लिख रहा हूं। बाकि सब की राय अलग हो सकती है। रैंफरेस पर किसी को शक हो तो लिख सकता है।

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