Monday, March 26, 2018

लोकतंत्र की सड़क और अगस्त का महीना। ऐसे ही एक सड़क के साथ।


सड़क बहुत लंबी नहीं है। इस तरफ के गोल चक्कर से लेकर दूसरे गोल चक्कर के बीच लगभग एक किलोमीटर का फासला हो सकता है। चौड़ी सड़क के दोनो और घने और पुराने पेड़ लगे है। ज्यादार पेड़ अपनी उम्र की गवाही देते है। कभी इस सड़क के दोनो और की ईमारते राजाओं के दिल्ली प्रवास के वक्त के लिए उनकी रियासत की जनता का खून पसीना छीन कर बनवाई हुई थी।विलासिता के तमाम साधन दुनिया भर से इकट्ठा किए गये। अय्याशियों की मिसाल मिलना मुश्किल है। हिंदुस्तान के सदियों के सफर में इस देश के पास अभिमान करने के लिए अत्याचारी राजाओं और धर्मांध बादशाहों के बनवाएं हुए महल और उन महलों की नींव में दबी हुई है उनके अत्याचारों और ऐय्याशियों की कहानियां। लेकिन सदियों के बाद भी और लंबी गुलामी के बाद भी जनता इन महलों से कभी नफरत करना नहीं सीख पाई। हमेशा अपने राजा की तारीफ में कशीदें पढ़ने से अपने आप को ऊंचा महसूस करते हुए लोग आजादी के नायकों और खलनायकों में भेद करना ही भूल चुके है। आजादी हासिल करने के दशकों बाद भी लोगो को मयस्यर हुई है तो लोकतंत्र को कोसने की ताकत। उसी लोकतंत्र को जिससे उन्हें ये बात कहने का अधिकार मिला। अक्सर इन ईमारतों में बैठे हुए लोगो से बात करने पर या फिर दूर दराज गांव में बैठे हुए आदमी से बात करने पर एक बात उलझन में डा देती है कि कैसे सत्ता का उपभोग कर रहे लोगों ने हजारों किलोमीटर दूर बैठे इस इंसान के दिमाग में भी ये बात बो दी है कि आज के माहौल से तो गुलामी का शासन यानि अंग्रेजों का शासन ही बेहतर था। लाखों लाख लोग इस बात को अपना मुहावरा बनाएं हुए बैठे है कि कैसे अंग्रेजों के राज में इंसाफ मिल जाता था। हालांकि इंसाफ के क्या मायने है ये पूछोंगें तो घाघ नौकरशाह इस बार हंसने लगते है और गांव वाले की समझ में कुछ आता नहीं। सड़क के दोनो और की ईमारतों का नाम उनकी पुरानी रियासत के नाम है। पूरी सड़क ही ऐसे नाम पर है जिसका इतिहास अपनी कौम और देश से गद्दारी के लिए कहावतों में शुमार किया जाता है। मानसिंह को लेकर देश के इतिहासकारों की राय क्या है इससे उलट लोक कथाओं में ये शख्स एक ऐसे गद्दार के तौर पर याद किया जाता है जिसने मुगल बादशाह अकबर की गुलामी करने में कौम की सारी मर्यादाओ को धता बता दी थी।

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