Monday, March 26, 2018

विकल्प नहीं रहा।

 
एक उलझे से बालों वाला लड़का। जिसकी ऊर्जा और गर्मजोशी आठवें फ्लोर के उस रूम में सबको महसूस होती थी। मेरी सीट के ठीक सामने दरवाजे के किनारे वाली पहली कतार का पहला कंप्यूटर और उसपर बैठने की जिद करता सा वो लड़का मुझे हमेशा कुछ न कुछ कहता हुआ दिखता था। अपनी ओर से मैं बहुत कम पहल करता हूं लेकिन उस लड़के के आवाज से गूंजते हुए उस कमरे में लगता था कि मैं उससे बात करूं। लेकिन शूट पर ज्यादातर दिन बाहर रहने से मुझे कभी उसके साथ बात करने का मौका बहुत तक नहीं आया। फिर एक दिन वो सीधे मेरे सामने आ कर बैठ गया। कहने लगा कि सर हम लोगों से घर नहीं छूटता है ना। मुझे समझ नहीं आया कि वो लड़का क्या कहना चाहता है। मेरी प्रश्नवाचक निगाहों को उसने पढ़ते हुए कहा कि पश्चिमी उत्तरप्रदेश की मिट्टी की यही खूबी है कि आपको हमेशा अपने से जोड़े रखती है। मैंने पूछा कि कहां से हो तो उससे पहले ही पीछे खड़े हुए रंजीत जी बोल उठे, अरे इसको नहीं जानते ये तो आपका ही है। मुजफ्फरनगर का ही है। मेरी उत्सुकता बढ गई और फिर मैंने उसका नाम पूछा तो पता चला कि ये विकल्प है। और विकल्प से एक बार बात करने का मतलब एक ऐसी महफिल में जाना था जिसमें सहर नहीं होती थी। बातों ही बातों में पता चला कि उसको फिल्मों का बहुत शौंक है। देसी और विदेशी फिल्में। और फिर मुझे पता लगने लगा कि ये लड़का पढ़ा लिखा पत्रकार है जिसके पास बात करने के लिए " अॉल क्वाईट ऑन वेस्टर्न फ्रंट से लेकर बंदिनी की कहानी और उनके ट्रीटमेंट पर बातें करने के लिए बहुत कुछ है। कभी वो किसी भी विदेशी फिल्म की स्टोरी बताने लगता। मैं हमेशा हंसता रहता था कि मेरे शहर का लड़का होकर तू कैसे हॉलीवुड की फिल्मों पर बात करने लगा चल गांव में इस बार तेरे पर टिकट लगवाता हूं। और वो हंस कर चला जाता था। लेकिन मुस्कुराते हुए चेहरे में एक किस्म की आवारगी भी थी। बेफिक्री का आलम अपने कदमों में लपेटे हुए वो कई बार गायब हो जाता था। फिर एक दिन लगान पर बात होते होते मैंने एक पुरानी विदेशी फिल्म के बारे में बात की जिसका प्रिंट मुझे मिल नहीं रहा था टू हॉफ टाईम इन ए हैल के बारे में उसको बताया और अगले दिन मैं हैरान था जब रात को दो बजे विकल्प के मैसेज में उस फिल्म का लिंक मुझे मिला। विकल्प ने दिन का काम निबटाया और फिर देर तक इंटरनेट पर इस फिल्म को मेरे लिए खोज दिया। फिर मैं कई दिन बाद वापस आया तो वो कुर्सी तो थी लेकिन विकल्प नहीं। विकल्प चैनल से जा चुका था। फिर बहुत दिन तक कोई बात नहीं हुई। और एक दो बार उसकी वॉल से निकली टिप्पणियों से मैं खफा भी हुआ लेकिन वो अपनी धन में चल रहा था। और त्रिपुरा के एक शूट से वापस लौटकर मैं कुछ लिख रहा था कि मनीष की वॉल पर पढ़ा कि विकल्प नहीं रहा। ये बात मुझे सदमा देने के लिए काफी थी। क्योंकि ऐसा कुछ नहीं दिखा कि गर्मजोशी से भऱा हुआ वो नौजवान और उसका सफर इस तरह के मोड़ पर खत्म हो। मनीष को फोन किया तो पता चला कि वाकई अब हमारा विकल्प नहीं रहा। ऑफिस में सभी के पास उसकी कहानियां है किस्से है और उससे जु़ड़ी यादें है । मुझे विकल्प पर लिखने में काफी समय लगना था क्योंकि विकल्प तो मेरा अपना था। ऑफिस में घुसते ही उसकी किसी भी बात पर मुझसे बतियाते हुए दोस्त कहते थे कि लीजिए मुजफ्फरनगर के दूसरे आ गए है। विकल्प भले ही नहीं रहा लेकिन उसकी बातें हमेशा याद रहेगी। उसकी वॉल पर एक नज्म कभी उसने शेयर की थी और मुझे लगता है कि इस वक्त सिर्फ यही याद है।

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