शैतान अलाउद्दीन के साथ स्वप्न में भी पद्मावती, शैतान की पूजा है । पद्मावती के साथ खिलवाड़ इतिहास के साथ है या नहीं लेकिन आजादी की लड़ाई से लेकर मध्ययुग में अस्मिता के लिए लड़ रहे पूरे देश के साथ द्रोह है। पावागढ़ के उस प्राचीर से हजारों औरतों के जलने की चीख सुन सकते हो। चित्तौड़ को तो कई बार भुगतना पड़ा है। औरतों और बच्चों को रौंदना उस वहशी का स्वभाव था। ---1
फिल्मी दुनिया किसी भी देश की नैतिक या ऐतिहासिक मानक नहीं होती। दुनिया भर में फिल्मी दुनिया ,फरेब, अनैतिकता और झूठ की दुनिया है। हिंदुस्तान में इस फिल्मी दुनिया के लोग जिस तरह की कहानियों में जनता के सामने आते है उससे उलट वो अंदर शैतानी दिमाग के साथ पैसे लिए के नैतिकता के फटे-पुराने कपड़े किसी भी रोशनी, अंधेरें, चौराहे या खोली के अंदर उतार सकते है। हिंदुस्तान का सिनेमा और भी गिरी हुई हालत में नुमाया हुआ है। दुनिया से कटा हुआ सिर्फ पैसे के लिए लड़ता हुआ उसके लिए देश बिना आत्मा और शरीर के सिर्फ जमीन के कुछ टुकड़े है इससे ज्यादा कुछ नहीं। इस देश की सत्तर सालों की परंपरा में अपवाद के स्वरूप ही इस तरह के नाम फिल्मों में आते है जिन्होंने बिना किसी लालच या फिर वाद के कोई फिल्म रची हो। पुरानी फिल्मों की कहानियों में ऐतिहासिकता को लोक परंपराओं से लिया गया और उसमें भी तोड़-मरोड़ कर एक देश की नसों में उतार दिया। ( फिल्मों को इतिहास मानने वालों की कमी नहीं)
बात पद्मावती की हो रही है। लिखना तो नहीं चाहता था क्योंकि हर एक शब्द का आपको जवाब देना होता है। और मुझे लगता है कि ये सब भंसाली जैसे घटिया इंसान की स्क्रिप्ट के मुताबिक ही हो सकता है कि देश इस पर बात करे ताकि फिल्म की पब्लिसिटी हो फिर भी लिखना पड़़ रहा हो। अलाउद्दीन हिंदुस्तान के इतिहास में पैदा हुए तमाम शैतानों में सबसे बढ़कर है।
यूं तो मध्यकाल में हमलावरों के बर्बर अत्याचारों और औरतों के साथ बर्ताव की रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानियों से पूरा इतिहास अटा पड़ा है। ( वामपंथियों ने एक देश को नष्ट करने के लिए पहले इतिहास को नष्ट किया उसके बावजूद) इंसानियत का कोई वजूद नहीं दिखता है। और इसके लिए फर्जी महान लोगों को इतिहास में उतार दिया। खैर ये तो सब उनके पाठ का हिस्सा है और इसके दुष्परिणाम देश को भोगने ही होते है सो इस देश को भी भोगने होगे।
अपने चाचा को जो उसका ससुर भी था कत्ल कर बादशाही हासिल करने वाला अलाउद्दीन भंसाली की फिल्म का ऐसा नायक है जिसने इतिहास के मुताबिक ऐसे ऐसे अत्याचार किए है और वहशियत की तमाम हदों को पार कर आने वाले आंक्रांताओं को औरतों पर अत्याचार करने के लिए नए मानक दिए।
सुल्तान जलालुद्दीन के दोनों पुत्रों, उसके दामाद उलगू तथा अहमद चप,नायब अमीर हाजिब की आंखों में सलाई (अंधा करना) फेर दी गई। उनकी स्त्रियां छीन ली गईं। नुसरत खां ने जो कुछ भी था उनकी धन संपत्ति, दास दासियों को तथा जो भी कुछ उनके पास था छीन लिया गया । जलालुद्दीन के बेटे को हांसी के किले में कैद कर दिया गया। अरकली खां के सभी पुत्रों की हत्या कर दी गई। मलकिए जहां उनकी स्त्रियों और अहमद चप को दिल्ली लाया गया और कैद कर लिया गया। ( औरते छीन ली गई--ये वहशियत अपने ससुर और चाचा की औरतों पर दिखाई गई) ये बादशाहत हासिल करने का पहला सबूत था। इसके बाद उन तमाम जलाली अमीरों को जिन्होंने अलाउद्दीन के चाचा से विश्वासघात कर अलाउद्दीन को मदद की थी और अलाउद्दीन ने उन्हें मनो सोना, पद, सूबेदारी दी थी शहर और लश्कर में गिरफ्तार करा लिया। कुछ को किलों में कैद किया, कुछ की आंखों में सलाई फेर दी, और कुछ की हत्या कर दी गई। उनकी संपत्ति जब्त कर ली उनके पुत्रों के पास कुछ भी नहीं छोड़ा गया। ( कुछ भी नहीं में औरतें भी होती )
पहले ही साल गुजरात और नहरवाला के तमाम प्रदेशों का विनाश कर दिया गया। गुजरात का कर्ण राय नहरवाले से भागकर देवगीर में रामदेव के पास गया। रायकर्ण की स्त्रियों, पुत्रियों, खजाने तथा हाथियों पर इस्लामी सेना ने अपना अधिकार जमा लिया। गुजरात प्रदेश का सब धन लूट लिया गया। वह मूर्ति, जिसे सुल्तान महमूद की विजय तथा मनात के खंडन के उपरांत सोमनाथ के नाम से प्रसिद्ध कर दिया गया था, और जिसे हिंदु अपना भगवान मानते थे वहां से देहली भेज दी गई। देहली में वह लोगों के पैरों के नीचे रौंदने के लिए डाल दी गई। सुल्तान अलाउद्दीन ने उस निरंकुशता के कारण जो कि उसके मस्तिष्क में उत्पन्न हो गई थी, आदेश दिया कि विशेष तथा साधारण विद्रोहियों की स्त्रियों और बालको को बंदी बनाकर बंदीगृह में डाल दिया जाएं। पुरूषों के अपराध के रआमर उनकी स्त्रियों और बालकों को बंदी बनाया जाना उसी तिथि से आरंभ हुआ। उससे पहले दिल्ली में पुरूषों के अपराध के कारण उनकी स्त्रियों और बालकों को कोई दंड़ नहीं दिया जाता और उन्हें बंदी नहीं बनाया जाता था।
बंदी बनाए जाने से भी बड़ा अत्याचार उस दिल्ली ने उस वक्त देखा। नुसरत खां ने (सेनापति ) ने अपने भाई का रक्त का बदला लेने के लिए उन लोगों की स्त्रियों को अपमानित और लज्जित किया जिन्होंने उनके भाई की हत्या की थी। उन्हें व्याभिचारियों ( बलात्कारियो) को दे दिया गया कि उन अभागी स्त्रियों से बलात्कार कराएं तथा उनके बच्चों के बारे में ये आदेश दिया कि उन्हें उनकी माताओं के सामने मार दिया जाएं। ऐसा अत्याचार किसी भी धर्म अथवा महजब में न हुआ होगा। वह इस विषय में जो भी कुछ करता उसे देखकर देहली वाले निवासी स्तब्ध हो जाते थे और प्रत्येक का हृदय कांप उठता था। ( तारीख़ फ़िरोज़ शाही--ज़ियाउद्दीन बरनी -पेज नंबर 46,47,48)
( ये सिर्फ एक इतिहासकार के अलाउद्दीन के पहले साल के कुछ कारनामे है। पूरे कार्यकाल की कहानी एक शैतान को मात देने की कहानी है) ----1
फिल्मी दुनिया किसी भी देश की नैतिक या ऐतिहासिक मानक नहीं होती। दुनिया भर में फिल्मी दुनिया ,फरेब, अनैतिकता और झूठ की दुनिया है। हिंदुस्तान में इस फिल्मी दुनिया के लोग जिस तरह की कहानियों में जनता के सामने आते है उससे उलट वो अंदर शैतानी दिमाग के साथ पैसे लिए के नैतिकता के फटे-पुराने कपड़े किसी भी रोशनी, अंधेरें, चौराहे या खोली के अंदर उतार सकते है। हिंदुस्तान का सिनेमा और भी गिरी हुई हालत में नुमाया हुआ है। दुनिया से कटा हुआ सिर्फ पैसे के लिए लड़ता हुआ उसके लिए देश बिना आत्मा और शरीर के सिर्फ जमीन के कुछ टुकड़े है इससे ज्यादा कुछ नहीं। इस देश की सत्तर सालों की परंपरा में अपवाद के स्वरूप ही इस तरह के नाम फिल्मों में आते है जिन्होंने बिना किसी लालच या फिर वाद के कोई फिल्म रची हो। पुरानी फिल्मों की कहानियों में ऐतिहासिकता को लोक परंपराओं से लिया गया और उसमें भी तोड़-मरोड़ कर एक देश की नसों में उतार दिया। ( फिल्मों को इतिहास मानने वालों की कमी नहीं)
बात पद्मावती की हो रही है। लिखना तो नहीं चाहता था क्योंकि हर एक शब्द का आपको जवाब देना होता है। और मुझे लगता है कि ये सब भंसाली जैसे घटिया इंसान की स्क्रिप्ट के मुताबिक ही हो सकता है कि देश इस पर बात करे ताकि फिल्म की पब्लिसिटी हो फिर भी लिखना पड़़ रहा हो। अलाउद्दीन हिंदुस्तान के इतिहास में पैदा हुए तमाम शैतानों में सबसे बढ़कर है।
यूं तो मध्यकाल में हमलावरों के बर्बर अत्याचारों और औरतों के साथ बर्ताव की रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानियों से पूरा इतिहास अटा पड़ा है। ( वामपंथियों ने एक देश को नष्ट करने के लिए पहले इतिहास को नष्ट किया उसके बावजूद) इंसानियत का कोई वजूद नहीं दिखता है। और इसके लिए फर्जी महान लोगों को इतिहास में उतार दिया। खैर ये तो सब उनके पाठ का हिस्सा है और इसके दुष्परिणाम देश को भोगने ही होते है सो इस देश को भी भोगने होगे।
अपने चाचा को जो उसका ससुर भी था कत्ल कर बादशाही हासिल करने वाला अलाउद्दीन भंसाली की फिल्म का ऐसा नायक है जिसने इतिहास के मुताबिक ऐसे ऐसे अत्याचार किए है और वहशियत की तमाम हदों को पार कर आने वाले आंक्रांताओं को औरतों पर अत्याचार करने के लिए नए मानक दिए।
सुल्तान जलालुद्दीन के दोनों पुत्रों, उसके दामाद उलगू तथा अहमद चप,नायब अमीर हाजिब की आंखों में सलाई (अंधा करना) फेर दी गई। उनकी स्त्रियां छीन ली गईं। नुसरत खां ने जो कुछ भी था उनकी धन संपत्ति, दास दासियों को तथा जो भी कुछ उनके पास था छीन लिया गया । जलालुद्दीन के बेटे को हांसी के किले में कैद कर दिया गया। अरकली खां के सभी पुत्रों की हत्या कर दी गई। मलकिए जहां उनकी स्त्रियों और अहमद चप को दिल्ली लाया गया और कैद कर लिया गया। ( औरते छीन ली गई--ये वहशियत अपने ससुर और चाचा की औरतों पर दिखाई गई) ये बादशाहत हासिल करने का पहला सबूत था। इसके बाद उन तमाम जलाली अमीरों को जिन्होंने अलाउद्दीन के चाचा से विश्वासघात कर अलाउद्दीन को मदद की थी और अलाउद्दीन ने उन्हें मनो सोना, पद, सूबेदारी दी थी शहर और लश्कर में गिरफ्तार करा लिया। कुछ को किलों में कैद किया, कुछ की आंखों में सलाई फेर दी, और कुछ की हत्या कर दी गई। उनकी संपत्ति जब्त कर ली उनके पुत्रों के पास कुछ भी नहीं छोड़ा गया। ( कुछ भी नहीं में औरतें भी होती )
पहले ही साल गुजरात और नहरवाला के तमाम प्रदेशों का विनाश कर दिया गया। गुजरात का कर्ण राय नहरवाले से भागकर देवगीर में रामदेव के पास गया। रायकर्ण की स्त्रियों, पुत्रियों, खजाने तथा हाथियों पर इस्लामी सेना ने अपना अधिकार जमा लिया। गुजरात प्रदेश का सब धन लूट लिया गया। वह मूर्ति, जिसे सुल्तान महमूद की विजय तथा मनात के खंडन के उपरांत सोमनाथ के नाम से प्रसिद्ध कर दिया गया था, और जिसे हिंदु अपना भगवान मानते थे वहां से देहली भेज दी गई। देहली में वह लोगों के पैरों के नीचे रौंदने के लिए डाल दी गई। सुल्तान अलाउद्दीन ने उस निरंकुशता के कारण जो कि उसके मस्तिष्क में उत्पन्न हो गई थी, आदेश दिया कि विशेष तथा साधारण विद्रोहियों की स्त्रियों और बालको को बंदी बनाकर बंदीगृह में डाल दिया जाएं। पुरूषों के अपराध के रआमर उनकी स्त्रियों और बालकों को बंदी बनाया जाना उसी तिथि से आरंभ हुआ। उससे पहले दिल्ली में पुरूषों के अपराध के कारण उनकी स्त्रियों और बालकों को कोई दंड़ नहीं दिया जाता और उन्हें बंदी नहीं बनाया जाता था।
बंदी बनाए जाने से भी बड़ा अत्याचार उस दिल्ली ने उस वक्त देखा। नुसरत खां ने (सेनापति ) ने अपने भाई का रक्त का बदला लेने के लिए उन लोगों की स्त्रियों को अपमानित और लज्जित किया जिन्होंने उनके भाई की हत्या की थी। उन्हें व्याभिचारियों ( बलात्कारियो) को दे दिया गया कि उन अभागी स्त्रियों से बलात्कार कराएं तथा उनके बच्चों के बारे में ये आदेश दिया कि उन्हें उनकी माताओं के सामने मार दिया जाएं। ऐसा अत्याचार किसी भी धर्म अथवा महजब में न हुआ होगा। वह इस विषय में जो भी कुछ करता उसे देखकर देहली वाले निवासी स्तब्ध हो जाते थे और प्रत्येक का हृदय कांप उठता था। ( तारीख़ फ़िरोज़ शाही--ज़ियाउद्दीन बरनी -पेज नंबर 46,47,48)
( ये सिर्फ एक इतिहासकार के अलाउद्दीन के पहले साल के कुछ कारनामे है। पूरे कार्यकाल की कहानी एक शैतान को मात देने की कहानी है) ----1
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