“चलो पलटाई” मंच पर राजनाथ सिंह दहाड़ ( मुहावरा लिख रहा हूं भाई, ऐसे ही जैसे कड़ी निंदा होता है) रहे है। रात की शुरूआत हो चुकी थी। और रोशनियों में उस छोटे से मैदान में सिर ही सिर चमक रहे है। राजनाथ सिंह ने पहले बजट पर बताया फिर कश्मीर में ( राजनाथ सिंह के लिए कश्मीर शायद दो किरदार हो गए—एक वो जिसको राजनाथ सिंह सभा में बताते है जिसमें वो कहते है कि अब हमने सुरक्षा बलों को कह दिया कि पहली गोली अपनी नहीं चलनी चाहिए लेकिन जब उधर से पहली गोली चल जाएं तो अपनी गिननी नहीं चाहिए। और पाकिस्तान की कपकंपी छुड़ाने की बात बहुत जोर से कहते है, और दूसरा वो जिसमें आतंकी सेना पर भी हमले कर रहे है और उसके लिए राजनाथ सिंह भरोसा रखने की बात करते है।) खैर ये अवांतर है वो भी इसलिए कि राजनाथ सिंह ने भाषण देकर दिल्ली प्रस्थान कर विश्राम किया होगा कि बड़ा हमला फिर कश्मीर में हो गया।
मैं दिल्ली से राजनाथ सिंह के साथ आए हुए पत्रकारों से मिलता हूं और फिर भीड़ में इंटरव्यू लेने में जुट जाता हूं। रैली की भीड़ से पूछता हूं कि क्या माहौल है तो भीड़ चिल्लाती है चलो पलटाई ( जाहिर बात है भीड़ बीजेपी की है तो यही नारा जोश से दोहराएंगी) फिर मैं पूछता हूं कि बीजेपी के किस नेता को वो हीरो मानते है और जवाब है नरेन्द्र मोदी। एक दो तीन चार या दस बार अलग-अलग नेताओं से पूछ रहा हूं तो जवाब यही मिल रहा है। ये हाल राजनाथ सिंह की रैली में है और यही हाल बीजेपी का त्रिपुरा ईकाई के नेताओं के बीच में भी है। त्रिपुरा में बिप्लव देव बीजेपी का युवा चेहरा है। उसको प्रदेश की कमान देने के साथ इस बात का इशारा भी होता है कि वो मुख्यमंत्री कैंडीडेट है। भीड़ भी बिप्लव के भाषण का उत्साह से जवाब देती है। लेकिन वो बस एक जवाब तक है। पूरी बीजेपी त्रिपुरा में भी नरेन्द्र मोदी के कंधों पर सवार है। 2014 से चुनाव की कैंपेन से लेकर अब तक बीजेपी के पास कोई दूसरा चेहरा खड़ा होने की बात तो दूर है चेहरा जेहन में भी नहीं आता है। क्योंकि अगर त्रिपुरा चुनाव की बात करे तो पहली बार बीजेपी इस हालात में दिख रही है कि लोग सीधी टक्कर बीजेपी और सत्तारूढ़ वाम मोर्चे में मान रहे है। कांग्रेस की भूमिका अपने झंडे बचाए रखने की हो गयी है। आम वोटर अब उसको दो अंकों में जाने से लाचार मान रहा है। कांग्रेस के नेताओं ने माईक के सामने काफी बातें की मुद्दे गिनवाये और कहा कि हम को जनता वापस ला रही है । और फिर माईक के बाद कहा कि वाम मोर्चा सरकार बना रहा है बीजेपी का कोई चांस ही नहीं। ये सत्ता के युद्ध में बेमानी हो जाने की स्वीकारोक्ति ज्यादा लगी। चुनाव प्रचार में वहां प्रेस करने आएं हुए नेताओं के नाम बता देते है कि कांग्रेस को क्या उम्मीदें इस चुनाव से अपने लिए है। तरूण गोगोई की प्रेस में चेहरे गिन रहे कांग्रेसियों को ये बड़ी बात लगती है कि अगले दिन प्रेस कवर हो जाएं।
अपने को जीत के करीब मान रही बीजेपी के लिए स्थिति काफी अजीब सी है। अपने 51 कैंडीडेट में से सिर्फ चार कैंडीडेट के बारे में बीजेपी ये कह सकती है कि ये उसके अपने कॉडर के है बाकि ज्यादातर कांग्रेस या फिर इधर-उधर से इकट्ठे किये हुए है। एक बात जो बीजेपी के पत्रकार और पत्रकार के बीच धुंधली सी रेखा पर खड़े हुए बौंनों की पसंदीदा लाईन है कि चाणक्यों ने इस बार बूथ मैंनेजमेंट पर बहुत काम किया है और जीत इसीलिए उनके पाले में जा रही है। ये एक ऐसी कहानी है जिसपर इस वक्त सभी यकीन कर रहे होगे क्योंकि सत्ता लगातार मिल रही है। हालांकि चेतावनी के तौर पर फीलर भी मिल रहे है लेकिन जो सत्ता की अनिवार्य बुराई के तौर पर साथ आती है यानि ऐरोंगेंस वो आप आसानी ये यहां देख सकते है। रणनीति को जनता के समर्थन से ऊपर मान रहे है बीजेपी के नेता इस वक्त। उनको लगता है कि जनता के समर्थन से कीमती है जोड़-तोड़ की राजनीति ।यूपी और उत्तराखंड और फिर हिमाचल में इस फार्मूलें से सत्ता में ईआई बीजेपी इस बात को भूल रही है कि मन बदलने के लिए मंच पर उनके नेता नारे लगाते थे लेकिन यहां बस कमीज बदल कर ही संतुष्ट हो रहे है। त्रिपुरा में भी चुनाव की कमान हेमंत विश्वशर्मा ही संभाल रहे है। पार्टी के पत्रकारों से बात करो तो उऩको विश्वशर्मा में नए प्रमोद महाजन के दर्शन हो रहे है। मेघालय और नागालैंड में भी चुनाव में कवर कर रहा हूं तो वहां भी ये भूमिका दिखी। लेकिन इस रणनीति के उलट त्रिपुरा के लोग हेमंत विश्वशर्मा के कांग्रेस सरकार में आरोपों के दागों की याद भी दिलाते है। त्रिपुरा में लोगों को लग रहा है कि मोदी जी चमत्कारिक कार्य कर रहे है। इसी बीच गोहाटी में हुई सम्मिट में अंबानी और अडानी के शामिल होने से भी काफी वोटर प्रभावित दिख रहे है। गांव गांव में इस बार बीजेपी का वोटर दिख रहा है। उदयपुर की रैली के लिए गांवों से निकल रही भीड़ में भी माईक लगाकर पूछा तो ज्यादातर का एक ही जवाब वो मोदी को सुनने जा रहे है और उनके पास मोदी के मास्क भी थे। ऐसे में पूरी त्रिपुरा की बीजेपी कांग्रेस पार्टी का बी संस्करण दिख रही है और सिर्फ मोदी ही तारण हार के तौर पर अपनी ऊर्जा को लगातार लगा रहे है। ऐसे में अपनी त्रिपुरा यात्रा में एक बात तो साफ देख रहा हूं कि मानिक सरकार और मोदी के बीच मुकाबला है। चलो पलटाई का नारा आपको हर हिस्से में सुन जाएंगा लेकिन मानिक के पास भी अपनी छवि का कवच है और फिर तीर कमान जनता के हाथ में ।
अपने को जीत के करीब मान रही बीजेपी के लिए स्थिति काफी अजीब सी है। अपने 51 कैंडीडेट में से सिर्फ चार कैंडीडेट के बारे में बीजेपी ये कह सकती है कि ये उसके अपने कॉडर के है बाकि ज्यादातर कांग्रेस या फिर इधर-उधर से इकट्ठे किये हुए है। एक बात जो बीजेपी के पत्रकार और पत्रकार के बीच धुंधली सी रेखा पर खड़े हुए बौंनों की पसंदीदा लाईन है कि चाणक्यों ने इस बार बूथ मैंनेजमेंट पर बहुत काम किया है और जीत इसीलिए उनके पाले में जा रही है। ये एक ऐसी कहानी है जिसपर इस वक्त सभी यकीन कर रहे होगे क्योंकि सत्ता लगातार मिल रही है। हालांकि चेतावनी के तौर पर फीलर भी मिल रहे है लेकिन जो सत्ता की अनिवार्य बुराई के तौर पर साथ आती है यानि ऐरोंगेंस वो आप आसानी ये यहां देख सकते है। रणनीति को जनता के समर्थन से ऊपर मान रहे है बीजेपी के नेता इस वक्त। उनको लगता है कि जनता के समर्थन से कीमती है जोड़-तोड़ की राजनीति ।यूपी और उत्तराखंड और फिर हिमाचल में इस फार्मूलें से सत्ता में ईआई बीजेपी इस बात को भूल रही है कि मन बदलने के लिए मंच पर उनके नेता नारे लगाते थे लेकिन यहां बस कमीज बदल कर ही संतुष्ट हो रहे है। त्रिपुरा में भी चुनाव की कमान हेमंत विश्वशर्मा ही संभाल रहे है। पार्टी के पत्रकारों से बात करो तो उऩको विश्वशर्मा में नए प्रमोद महाजन के दर्शन हो रहे है। मेघालय और नागालैंड में भी चुनाव में कवर कर रहा हूं तो वहां भी ये भूमिका दिखी। लेकिन इस रणनीति के उलट त्रिपुरा के लोग हेमंत विश्वशर्मा के कांग्रेस सरकार में आरोपों के दागों की याद भी दिलाते है। त्रिपुरा में लोगों को लग रहा है कि मोदी जी चमत्कारिक कार्य कर रहे है। इसी बीच गोहाटी में हुई सम्मिट में अंबानी और अडानी के शामिल होने से भी काफी वोटर प्रभावित दिख रहे है। गांव गांव में इस बार बीजेपी का वोटर दिख रहा है। उदयपुर की रैली के लिए गांवों से निकल रही भीड़ में भी माईक लगाकर पूछा तो ज्यादातर का एक ही जवाब वो मोदी को सुनने जा रहे है और उनके पास मोदी के मास्क भी थे। ऐसे में पूरी त्रिपुरा की बीजेपी कांग्रेस पार्टी का बी संस्करण दिख रही है और सिर्फ मोदी ही तारण हार के तौर पर अपनी ऊर्जा को लगातार लगा रहे है। ऐसे में अपनी त्रिपुरा यात्रा में एक बात तो साफ देख रहा हूं कि मानिक सरकार और मोदी के बीच मुकाबला है। चलो पलटाई का नारा आपको हर हिस्से में सुन जाएंगा लेकिन मानिक के पास भी अपनी छवि का कवच है और फिर तीर कमान जनता के हाथ में ।
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