लखनऊ के शपथ ग्रहण के समय लाईव पर बैठ कर देख रहा था कि प्रदेश भर में बदलाव के लिए वोट करने वाले लाखों-करोड़ों मतदाता एक राहत की सांस ले रहे थे। लग रहा था कि लूट और जातिवाद का एक अंखड़ साम्राज्य ढह गया है। जिस तरह से जाति को एक खास धर्म के अंदर घृणा को जिंदगी बनाएं हुए कट्टरपंथियों के साथ मिलाकर एक मारक औजार में तब्दील किया है उस लुटेरे तंत्र में बदलाव का सपना पूरा हुआ। मेरे साथ लाईव में बैठा कांग्रेसी अल्पसंख्यक प्रवक्ता हलकान हुआ जा रहा था उसको लग रहा था कि भगवा रंग इस देश के लिए हत्यारों का रंग है। मैं सिर्फ हंस रहा था और सोच रहा था कि ये जनता कई बार किस तरह से फैसला देती है।
भुक्खल नवाब जैसे लोगों पर कार्रवाई ही बात हो रही थी। यशवंत सिंह या फिर और भी सिंह जो गुंडई और लूट का दाग बनकर समाजवादी कुनबे की छाती पर मैडल की तरह चमक रहे थे के खिलाफ लोगों को उम्मीद हो गई थी कि कुछ कार्रवाही होगी।
खैर उम्मीद से लंबा भाषण सुना, उसके जार्गन सुने और दिमाग ने काम करना बंद कर दिया और इशारा किया की सही चेला मिला है गुरू को। गुरू दो हाथ तो ये दस हाथ। भाषण ही भाषण वही विकास की कहानियाां। लग रहा था कि ट्रंप को कटोरा दे देंगे इतना विकास करेंगे। उधर आम जनता कैराना की गुंडई, मुजफ्फरनगर में हत्यारो को संरक्षण और दादरी जैसी कहानियां न हो उनको रोकने की उम्मीद कर रही थी।
ये भी सही है कि घृणा में डूबे मोदी विरोधी और बीजेपी विरोधी इस सरकार को शुरू से ही जाने किस किस के खिलाफ साबित करने में जुटे थे। लेकिन जनता ने अपना एजेंडा तय करके इन लोगों को वोट दिया था। और उम्मीद की थी कि नौकरशाहों ने जिस तरह टके के जातिवादी नेताओं को नोटों की चाशनी मे डुबों कर जनता की उम्मीदों को खत्म करने का एक तिलिस्म रचा है वो शायद टूट जाएंगा। लेकिन जिस तरह से योगी ने बताना शुरू किया कि नौकरशाह काम करेंगे, हम फलां करेंगे और चिला करेंगे। दो दो उपमुख्यमंत्री और दूसरे मंत्रियों की शक्ल देखकर तो नहीं लग रहा था कि कोई बडडा काम हो रहा है। लेकिन उम्मीद होती है कि मरते मरते भी आंखों में बसी रहती है।
पहली बार यूपी में सड़कों पर यात्रा की तो मिर्जापुर से लेकर रीवातक जो नरक झेला लगा कि ये झूठों और बौंनों को मिलाकर नौकरशाहों की कठपुतली सरकार आ बैठी है सत्ता में। क्योंकि महान योगी जी ने बताया था कि 100 दिन में गड्ढे भर गए है। मैंने सोचा कि कितना बौना मुख्यमंत्री है कि उसको आसानी से झूठ बोल गए अफसर। आपको तीन सौ सीट मिली है नौकरियां बचाने के लिए नासूर बन चुके इन नौकशाहों की नौकरियां छीन कर इन को सलाखों के पीछे पहुंचाने के लिए।
लेकिन एक आंख में मक्खी दिखी तो लखनऊ अस्पताल में हादसा। सात लोगों की जिंदगी ऐसे लील ली गई जैसे पानी के गिलास का पानी रेत में बिखेर दिया गया हो। और जिस आदमी को जेल भेजना चाहिए था वो प्रिंसीपल बता रहा है कि किसी की गलती नहीं थी। तब भाई अस्पतला खोल क्यों रखा है जिसको भगवान को ले जाना होगा ले जाएंगे और जिसको छोड़ना होगा वो ट्रक के नीचे आएँ या फिर गोलियां खाएं बच ही जाएंगा। भूख के लिए बदन बेचती बेचारी औरतों के बदन से नुचे हुए पैसे से भी टैक्स हासिल कर अपने बच्चों की ऐय्याशियों के लिए टैक्स ले रहे हो उसी से नौकरी चल रही है। लेकिन ये बेवकूफों और बदतमीजों की सरकार तो जैसे जाग नहीं रही है।
खून तो पानी है नहीं तो इतनी सरकारों को कैसे बर्दाश्त करती है जनता। लेकिन बदवाल के लिए जिस लोकतंत्र के अल्टीमेट हथियार को इस्तेमाल करती है वही भोथरा साबित कर देते है ये बौंने।
लगता है कि नौकरशाहों ने इस देश के लोकतंत्र को ग्रस लिया है। कोई उम्मीद नहीं आती है।
एक और इन बौंने नेताओं को लग रहा है कि जनता इनकी बातों पर यकीन कर के इन को वोट दे रही है या फिर ये इतने महान नेता है कि इनका आभा मंडल लोगों को मजबूर कर रहा तो मूर्ख है ये । जनता इस वक्त बदलाव करने के मूड़ में है। जिस तरह के राजनेताओं को एक के बाद एक करके चुना वो भांड से लुटेरों में तब्दील हुए। जातियां गुंडों के कबीलों में बदली और इन सब एक परमेश्वर के तौर पर नौकरशाह विराजमान हुआ।
मैं हामिद अंसारी टाईप आदमियों की किसी टिप्पणी से बहुत परेशान महसूस नहीं करता हूं क्योंकि ज्यादातर लोगों से मिल चुका हूं, देश में इस तरह की प्रक्रिया चलती रहती है। बहुत से लोगों को देश, झंडा और मिट्टी इन सब चीजों के लिए कही से लिखा हुआ चाहिए।
लेकिन नौकरशाहों से निबटना इस देश की सबसे प्रमुख समस्या है। उससे निबटने में अभी तक जनता के वोटों से महाबली बने बौंने सोच भी नहीं पाते है। किसी तरह से जूते साफ करते हुए टिकट हासिल करते है। नंबर दो के पैसे से इलेक्शन में प्रचार करते है रात को जाकर जाति ने सामने मत्था टेकते है और जब जीत कर आते है तो नौकरशाहों के सामने नंगे नाचने लगते है। नौकरशाह जानता है कि अगर कोई मुख्यमंत्री या मंत्री कड़क हो कर मीडिया में बोल भी दिया तो ये उसके नाटक का हिस्सा होता है।
लखनऊ बीजेपी के दफ्तर में बैठे हुए उन बौंनों को देखकर किसी को भी घिन आ सकती है क्योंकि वो सिर्फ अंहकार की उल्टियां कर रहे है। उनको इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि उनको वोट क्यों मिला, जनता ने इतना बड़ा वोट दिया किस लिए दिया। उनके सामने मोदी का मंत्र है उनको लगता है कि जनता नहीं मोदी पारस पत्थर है और अब तो पारस पत्थर का जेबी संस्करण योगी भी हासिल हो गया है इसलिए जिसे चोर चोर कहकर शोर मचाया था वो भी इस पारस पत्थऱ के छिड़के हुए गंगाजल को पी कर शुद्ध सफा हो सकता है। ऐसा साफ कि सत्ता कि पंगत में बैठकर फिर से जनता के खून के गिलास पी सकता है। मुझे सरकार के बनने के एक हफ्ते बाद ही इलाकों में घूमने के बाद लगा था कि अगर कोई बदलाव सड़क पर नहीं है तो फिर वो कही नहीं है। फाईलों को रंगनेवाले अफसरों में डर की कोई बात नहीं है तो फिर किसी गुंडे को डरने की बात नहीं है।
मुझे प्रदेश भर के सबसे बड़े लुटेरे नौकरशाह के बारे में पता चला कि जब उसने फाईलों को देते हुए हंसते हुए कहा कि हमने बहुत से देखे है ये भी देख लेंगे। इनको भी जल्दी ही हमारी याद आ जाएंगी। लेकिन मुझे लगता है कि उस भ्ऱ्ष्ट नौकरशाह ने भी अंदाजा नहीं लगाया होगा कि इतनी जल्दी से उसकी याद और जरूरत इस सरकार को पड़ जाएंगी।
दुख और गुस्सा अब सिर्फ थूका हुआ बलगम है जो सड़ कर बीमारियां फैला रहा है। .ये समाज बीमार होता जा रहा है। बदलाव के लिए जो भी गोलियां दी जा रही है वो एक्सपाईरी पार कर चुकी है।
कहते है कि गोरखपुर में पत्ता भी योगी के आदमियों की मर्जी से हिलता है ऐसे में ये मौत के पर्दे हिले है तो किसी ने इनकी डोरो को हिलाया होगा। कोई तो होगा जो ठेकेदारी के इस धंधें के मठ से जुड़ा होगा। कोई तो होग जिसने इस अस्पताल के हेड को चुना होगा । डीएम और एसएसपी से लेकर डीआईजी और कमिश्नर सब योगी जी विशाल आईने से गुजर कर आएं होगे। ऐसे में ये कत्ल किसकी वर्दी पर दिखते है लोगों को समझ लेना चाहिएय़
भुक्खल नवाब जैसे लोगों पर कार्रवाई ही बात हो रही थी। यशवंत सिंह या फिर और भी सिंह जो गुंडई और लूट का दाग बनकर समाजवादी कुनबे की छाती पर मैडल की तरह चमक रहे थे के खिलाफ लोगों को उम्मीद हो गई थी कि कुछ कार्रवाही होगी।
खैर उम्मीद से लंबा भाषण सुना, उसके जार्गन सुने और दिमाग ने काम करना बंद कर दिया और इशारा किया की सही चेला मिला है गुरू को। गुरू दो हाथ तो ये दस हाथ। भाषण ही भाषण वही विकास की कहानियाां। लग रहा था कि ट्रंप को कटोरा दे देंगे इतना विकास करेंगे। उधर आम जनता कैराना की गुंडई, मुजफ्फरनगर में हत्यारो को संरक्षण और दादरी जैसी कहानियां न हो उनको रोकने की उम्मीद कर रही थी।
ये भी सही है कि घृणा में डूबे मोदी विरोधी और बीजेपी विरोधी इस सरकार को शुरू से ही जाने किस किस के खिलाफ साबित करने में जुटे थे। लेकिन जनता ने अपना एजेंडा तय करके इन लोगों को वोट दिया था। और उम्मीद की थी कि नौकरशाहों ने जिस तरह टके के जातिवादी नेताओं को नोटों की चाशनी मे डुबों कर जनता की उम्मीदों को खत्म करने का एक तिलिस्म रचा है वो शायद टूट जाएंगा। लेकिन जिस तरह से योगी ने बताना शुरू किया कि नौकरशाह काम करेंगे, हम फलां करेंगे और चिला करेंगे। दो दो उपमुख्यमंत्री और दूसरे मंत्रियों की शक्ल देखकर तो नहीं लग रहा था कि कोई बडडा काम हो रहा है। लेकिन उम्मीद होती है कि मरते मरते भी आंखों में बसी रहती है।
पहली बार यूपी में सड़कों पर यात्रा की तो मिर्जापुर से लेकर रीवातक जो नरक झेला लगा कि ये झूठों और बौंनों को मिलाकर नौकरशाहों की कठपुतली सरकार आ बैठी है सत्ता में। क्योंकि महान योगी जी ने बताया था कि 100 दिन में गड्ढे भर गए है। मैंने सोचा कि कितना बौना मुख्यमंत्री है कि उसको आसानी से झूठ बोल गए अफसर। आपको तीन सौ सीट मिली है नौकरियां बचाने के लिए नासूर बन चुके इन नौकशाहों की नौकरियां छीन कर इन को सलाखों के पीछे पहुंचाने के लिए।
लेकिन एक आंख में मक्खी दिखी तो लखनऊ अस्पताल में हादसा। सात लोगों की जिंदगी ऐसे लील ली गई जैसे पानी के गिलास का पानी रेत में बिखेर दिया गया हो। और जिस आदमी को जेल भेजना चाहिए था वो प्रिंसीपल बता रहा है कि किसी की गलती नहीं थी। तब भाई अस्पतला खोल क्यों रखा है जिसको भगवान को ले जाना होगा ले जाएंगे और जिसको छोड़ना होगा वो ट्रक के नीचे आएँ या फिर गोलियां खाएं बच ही जाएंगा। भूख के लिए बदन बेचती बेचारी औरतों के बदन से नुचे हुए पैसे से भी टैक्स हासिल कर अपने बच्चों की ऐय्याशियों के लिए टैक्स ले रहे हो उसी से नौकरी चल रही है। लेकिन ये बेवकूफों और बदतमीजों की सरकार तो जैसे जाग नहीं रही है।
खून तो पानी है नहीं तो इतनी सरकारों को कैसे बर्दाश्त करती है जनता। लेकिन बदवाल के लिए जिस लोकतंत्र के अल्टीमेट हथियार को इस्तेमाल करती है वही भोथरा साबित कर देते है ये बौंने।
लगता है कि नौकरशाहों ने इस देश के लोकतंत्र को ग्रस लिया है। कोई उम्मीद नहीं आती है।
एक और इन बौंने नेताओं को लग रहा है कि जनता इनकी बातों पर यकीन कर के इन को वोट दे रही है या फिर ये इतने महान नेता है कि इनका आभा मंडल लोगों को मजबूर कर रहा तो मूर्ख है ये । जनता इस वक्त बदलाव करने के मूड़ में है। जिस तरह के राजनेताओं को एक के बाद एक करके चुना वो भांड से लुटेरों में तब्दील हुए। जातियां गुंडों के कबीलों में बदली और इन सब एक परमेश्वर के तौर पर नौकरशाह विराजमान हुआ।
मैं हामिद अंसारी टाईप आदमियों की किसी टिप्पणी से बहुत परेशान महसूस नहीं करता हूं क्योंकि ज्यादातर लोगों से मिल चुका हूं, देश में इस तरह की प्रक्रिया चलती रहती है। बहुत से लोगों को देश, झंडा और मिट्टी इन सब चीजों के लिए कही से लिखा हुआ चाहिए।
लेकिन नौकरशाहों से निबटना इस देश की सबसे प्रमुख समस्या है। उससे निबटने में अभी तक जनता के वोटों से महाबली बने बौंने सोच भी नहीं पाते है। किसी तरह से जूते साफ करते हुए टिकट हासिल करते है। नंबर दो के पैसे से इलेक्शन में प्रचार करते है रात को जाकर जाति ने सामने मत्था टेकते है और जब जीत कर आते है तो नौकरशाहों के सामने नंगे नाचने लगते है। नौकरशाह जानता है कि अगर कोई मुख्यमंत्री या मंत्री कड़क हो कर मीडिया में बोल भी दिया तो ये उसके नाटक का हिस्सा होता है।
लखनऊ बीजेपी के दफ्तर में बैठे हुए उन बौंनों को देखकर किसी को भी घिन आ सकती है क्योंकि वो सिर्फ अंहकार की उल्टियां कर रहे है। उनको इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि उनको वोट क्यों मिला, जनता ने इतना बड़ा वोट दिया किस लिए दिया। उनके सामने मोदी का मंत्र है उनको लगता है कि जनता नहीं मोदी पारस पत्थर है और अब तो पारस पत्थर का जेबी संस्करण योगी भी हासिल हो गया है इसलिए जिसे चोर चोर कहकर शोर मचाया था वो भी इस पारस पत्थऱ के छिड़के हुए गंगाजल को पी कर शुद्ध सफा हो सकता है। ऐसा साफ कि सत्ता कि पंगत में बैठकर फिर से जनता के खून के गिलास पी सकता है। मुझे सरकार के बनने के एक हफ्ते बाद ही इलाकों में घूमने के बाद लगा था कि अगर कोई बदलाव सड़क पर नहीं है तो फिर वो कही नहीं है। फाईलों को रंगनेवाले अफसरों में डर की कोई बात नहीं है तो फिर किसी गुंडे को डरने की बात नहीं है।
मुझे प्रदेश भर के सबसे बड़े लुटेरे नौकरशाह के बारे में पता चला कि जब उसने फाईलों को देते हुए हंसते हुए कहा कि हमने बहुत से देखे है ये भी देख लेंगे। इनको भी जल्दी ही हमारी याद आ जाएंगी। लेकिन मुझे लगता है कि उस भ्ऱ्ष्ट नौकरशाह ने भी अंदाजा नहीं लगाया होगा कि इतनी जल्दी से उसकी याद और जरूरत इस सरकार को पड़ जाएंगी।
दुख और गुस्सा अब सिर्फ थूका हुआ बलगम है जो सड़ कर बीमारियां फैला रहा है। .ये समाज बीमार होता जा रहा है। बदलाव के लिए जो भी गोलियां दी जा रही है वो एक्सपाईरी पार कर चुकी है।
कहते है कि गोरखपुर में पत्ता भी योगी के आदमियों की मर्जी से हिलता है ऐसे में ये मौत के पर्दे हिले है तो किसी ने इनकी डोरो को हिलाया होगा। कोई तो होगा जो ठेकेदारी के इस धंधें के मठ से जुड़ा होगा। कोई तो होग जिसने इस अस्पताल के हेड को चुना होगा । डीएम और एसएसपी से लेकर डीआईजी और कमिश्नर सब योगी जी विशाल आईने से गुजर कर आएं होगे। ऐसे में ये कत्ल किसकी वर्दी पर दिखते है लोगों को समझ लेना चाहिएय़
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