क्रांत्रि अपने सृजकों को खा जाती है एक बार फिर साबित हुआ,(भक्तगणों ने इसे क्रांत्रि ही कहा और आशुतोष और बुद्दि के अवतार एक और ऐंकर भी इसे कांत्रि भी कहते है) लोकपाल लोकपाल चिल्ला कर सत्ता के पालने में झूल रहे केजरीवाल खा गए अपना ही लोकपाल। सत्ता की एकछत्र ताकत हासिल करने की हवस अभी खत्म नहीं हुई है। केजरीवाल जिस पारदर्शिता का नारा बुलंद कर रहे थे उसकी हवा इस बार 42 दिन में ही निकल गई। हालांकि केजरीवाल शुरू से ही ये सब साबित करते रहे थे कि वही एक मात्र नेता है लेकिन कुछ लोगों को लग रहा था कि नहीं उनको भी नेता माना जाएं। केजरीवाल ने उनको लात मारकर बाहर निकाल दिया। इससे किसी को दुख नहीं होना चाहिएं क्योंकि सब लोकपाल-लोकपाल ही तो खेल रहे थे। बेचारे अऩ्ना को झुनझुना बना कर लाएं थे। अन्ना की हालत उस बच्चें जैसी थी जिसे रामलीला में राम बना दिया गया था, रामलीला चली तो सबने आरती उतारी, रात में जब पैसे का हिसाब हुआ तो उसके हाथ में चवन्नी भी नहीं आई सारा पैसा तो आयोजकों को मिलता है सो मिल गया। लेकिन अन्ना को ये याद ही नहीं रहा कि उसके मुकुट और लकड़ी की पन्नी चढ़ी तलवार से उसकी पूजा नहीं हो रही है और वो तलवार और मुकुट सहित गायब होकर घर-घर घूमने लगे तो उनकी समझ में हीं आया कि लोग उनकी आरती उतारने की बजाया उन पर हंस क्यों रहे है। अब तो उनको भी एम्नीसिया हो गया होगा लोकपाल के नाम पर। दोस्तों एक खबर और है जो गवैये से संबंधित है। लेकिन उसमें उतरना तो गटर में उतरना होगा। फिलहाल हम लोग यही तक रहे क्योंकि चंपूओं की तादाद काफी लंबी होने वाली है। संजय सिंह, और मनीष सिसौदिया आरती उतार रहे है। आशीष खेतान और आशुतोष विरूदावली गा रहे है।
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