Thursday, March 26, 2015

नौकरशाही के बोझ तले दम तोड़ रहा है देश।

गांव से कई बार शहर लौटते वक्त देर हो जाती थी। गाड़ी की लाईट जलाने लाईक अंंधेरा सड़कों पर फैल जाया करता था। गन्नों के बड़े बड़ें खेतों में गाड़ी चलाते वक्त काफी ख्याल रखना पडता था कि कही कोई नीलगाय या फिर कोई मस्त बच्चा अचानक खेत से या फिर गलियों से निकल कर सड़क पर ना जाएं। ऐसा कभी नहीं हुआ। लेकिन हर बार निक्कर, बनियान और किसी लोकल ब्रांड के कैनवस शू पहने, पसीने से भीगे नौजवान हमेशा मिलते थे जो लगातार सड़क के किनारे शाम से ही भागने-दौड़ने, उछल और कूद की प्रैक्टिस करते रहते थे। पहली बार तो लगा क्या देश में खेलकूद की परंपरा जड़़ जमा गई है। क्या ये लोग किसी प्रतियोगिता की तैयारी कर रहे है लेकिन गांव दर गांव यानि मेरे गांव से शहर तक के बीच पड़ने वाले दर्जनों गांव का यही हाल दिखता था तो एक दिन मैंने पूछ लिया था कि भाई ये क्या चल रहा है तो पता चला कि ये नौजवान पुलिस और फौंज की भर्ती के लिए पसीना बहा रहे है ताकि मेडीकली अनफिट न हो। मां-बाप, बहनों और भाईयों के सपनों की पतवार बनने के लिए जीतो़ड मेहनत करते नौजवान रोज दिखते थे। और आज यूपी में सड़कों पर एक गुस्सा तारी है। जिला दर जिला नौजवान सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करते दिख रहे है। पुलिस की भर्ती चल रही है और नौजवान सड़कों पर है। हजारों नौजवान विरोध प्रदर्शन करते और उन पर लाठी चलाती पुलिस के सीन आपको टीवी से लेकर अखबारों सब में दिख रहे है। आपके जेहन में आ रहा है कि ये क्यों हो रहा है। जवाब है कि भारी धांधली हुई है ये सब आरोप लगे है। पांच जिले और एक खास जाति के नौजवानों पर विशेष कृपा की जा रही है। पांच सांसद एक ही परिवार से ताल्लुक रखते है और जाति समाजवादी है। मुलायम सिंह यादव के समाजवाद की लहर में गोते खा रहे लोगों को समाजवाद की चाशनी से निकली मलाई मिल रही है। और हजारों नौजवान जिंदगी को दांव पर लगाने को तैयार है। इस पर आपको अखबारों में कही कही रीजनल टीवी में भी खबर दिख रही है। लेकिन ये खबर का सिर्फ एक सिरा है। और दूसरा सिरा दबा हुआ है ब्यूरोक्रेशी के नीचे। पिछली बार भी मुलायम सिंह समाजवादी थे। उनकी पार्टी की सरकार थी और भर्ती में समाजवाद का अवतार हुआ था। अलग अलग अधिकारियों ने बोर्ड में किस तरह की धांधली की थी ये सब नुमाया हुई थी। अचानक सरकार बदल गई थी। और समाजवादी प्रदेश अचानक नीले रंग में रंग गया। पुलिस अधिकारी बदले गए। पुलिस के नए मुखिया बने विक्रम सिंह। दिल्ली में एडीजी थे सीआईएसएफ में। मुलाकात थी। एक दिन खबर आई कि 25 पुलिस अधिकारियों पर मुकदमा कायम कर दिया गया। ये सभी अधिकारी एसपी ओर एसएसपी स्तर के थे। सभी उन बोर्डों के चैयरमेन थे जिन्होंने जम कर हिंदुस्तान के संविधान को जूते तले रौंदा था यानि जिस से ताकत पाई थी उसी की धोती खोल दी थी। उन तमाम के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। सब तरफ से निराश होते हुए भी हमेशा लोगों पर उम्मीद रखता था तो लगा कि शायद ये एक चमत्कारी काम है। मैंने पहली बार किसी डीजीपी को फोन किया और बधाई दी कि अगर आप ये इन पर चार्जशीट फाईल कर पाएँ और इनको बाहर कर पाएं तो शायद इस देश की आपसे ज्यादा सेवा बस देश के लिए जान देने वालों ने ही की होगी। लेकिन मुझे यकीन नहीं है कि ऐसा होगा। और वही हुआ। आज वो 25 पुलिसअधिकारी इस देश का कानून बचा रहे है। कैसा कानू बचा होगा ये सबको मालूम है उस पर कुछ भी लिखना रूदाली गाना है। क्योंकि पिछले 14 साल की पत्रकारिता के दौरान हासिल की गई जानकारी से ये मालूम था कि इस देश को नौकरशाह चला रहे है जो नेताओं को बेवकूफ बना रहे है। लूट की हिस्सेदारी हो रही है। और अपना ये मानना है कि नेताओं के पास बेहद कम पैसा जाता है ज्यादातर हिस्सा नौकरशाहों की जेंब में आ रहा है। मध्यप्रदेश के टीनू जोशी और उनकी पत्नी से मिले 350 करोड़ से ज्यादा की अवैध संपत्ति का पता चला था। लेकिन मैं यूपी की बात कर रहा हूं यहां ऐसे जाने कितने उदाहरण होंगे जिन पर अगर जांच हो जाएं तो मध्यप्रदेश की नौकरशाह दंपत्ति की संपत्ति किसी फकीर की संपत्ति लगे। ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि विपक्ष में रहते जिन घोटालों और धाधंलियों के नाम पर नेता वोट बटोरते है सत्ता में बैठते ही वो सब हवा में गायब हो जाते है। किसी को याद नहीं रहता है कि आप तो विपक्ष में थे तो ये कह रहे थे। अखबार, टीवी और आदमी कहता है कि नेताओं की यही आदत है लेकिन कोई ये नहीं जानता कि नेता जी को ये नौकरशाह समझा चुके हुोते है कि यदि आपने घोटाले की ईमानदारी से जांच की तो आरोप तो साबित हो जाएंगे लेकिन कमाई का वो जरिया गायब हो जाएगा। और नेता जी कमाई के लालच मे उसी करप्ट नौकरशाह को अपना पीए बना लेते है जिसकी जांच का आश्वासन वो रैलियों में बेचारी जनता को देते रहे थे। क्या कभी ये सवाल उठाता है कि लाख रूपए कि सैलरी वालों के बच्चें कहां पढ़ते है। छुट्टियां कहां बिताते है। किस देश में जाकर नौकरियां करते है। उस देश में कौन सी कार चलाते है। और किस तरह के फ्लैट में रहते है। कोई नहीं जानता। हजारों लोग एक चपरासी की भर्ती पर फार्म भरते है और जरा सी गलती पर वो चपरासी सस्पैंड हो जाता है लेकिन ये नए नवाब हमेशा राजा रहते है हजारों करोड़ का घोटाला हो तो दोषी कोई ओर, जहरीली शराब से दर्जनों मर जाएं तो दोषी शराब बनाने वाले या उनसे कमीशन लेने वाले, फिर भाई ये नौकरशाह किस मर्ज की दवा ले रहे है। लाखों रूपए के खर्चें से पल रहे इऩ सरकारी राजाओं की जिम्मेदारी क्या है। अक्सर बौंने राजनेताओं ने पूरा राजनीतिक परिदृश्य घेर लिया है। एक शरद यादव है। संसद में अक्सर आई-बाई गाता रहता है भाई। राजनीतिक ताकत इतनी है कि जबलपुर से नहीं बिहार से जाति विरादरी की राजनीति करता है। और तेवर देखों तो चाणक्य को राजनीति पढ़ा दे। ऐसे नेता का एक बयान याद है जो उसने संसद में दिया था लोकपाल की बहस के दौरान कि अधिकारी काम करने से डर रहे है आरटीआई की वजह से। इस आदमी को गाली देने का मन भी नहीं करता। क्योंकि एकदम से छूंछा सा गुस्सा लगता है। अरे भाई नौकरशाह इस एक्ट में जेल जाने की लाईन लागू करने से पहले ही हटा चुके थे। अरे अगर काम करने से डर रहे हो तो नौकरी छोड़ क्यों नहीं देते। नौकरशाही से बडी जाति व्यव्स्था इस वक्त देश में नहीं है। ये एक दूसरे को सरेराह कोसते है लेकिन जैसे ही कोई एक घेरे में आता है तो सारे के सारे उसे बचाने के लिए दम प्राण एक कर देते है। लिखने के लिए और भी है लेकिन क्या किया जा सकता है। बस डर तो ये है कि पुलिस के नौजवान बनकर या फिर फौंज के जवान बनकर देश की सेवा करने का सपना देखने वाले नौजवानों की वो कतार जो गांव गांव शाम को दौड़ती है टुट न जाएं। नौजवानों के सपने टूटने की आवाज बहुत दर्द भरी होती है और उसका दर्द ये देश हर बार उठाता है और अगर किसी को इसका फर्क नहीं पड़ता तो वो है इस देश के नौकरशाह। जाने कब ये बात लोगो को समझ आएँगी और ज्यादातर की जगह सलाखों के पीछे ये बात पूरी होगी। 
चे कि कुछ पक्तियां है शायद यहां कुछ मौंजू हो
यह कभी मत सोचना कि
उपहारों से लदे और
शाही शान-शौकत से लैस वे पिस्सू
हमारी एकता और सच्चाई को चूस पाएँगे ।
हम उनकी बन्दूकें, उनकी गोलियाँ और
एक चट्टान चाहते हैं । बस,
और कुछ नहीं ।

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