मुझे कुछ विकृत दिमाग सेक्युलरिस्टों से कोई सहानुभूति नहीं है। जो आरएसएस को आईएसआईएस जितना खतरनाक मान रहे है। मुझे जूलियस फ्रांसिस रैबिरों जिन्हें में देश का हीरो मानता हूं (के पीएस गिल से भी बड़ा) के आर्तनाद से भी बहुत पीड़ा नहीं हुई है क्योंकि ये अतिरंजित प्रतिक्रिया ज्यादा लगता है दर्द कम। राजेश्वर सिंह का नाम पहली बार तभी सुना जब वो लोकल मीडिया में बगदादी की टक्कर का दिखाया गया। ऐसे बहुत से लोग जो मोदी के आने से देश छो़ड़ने की पीड़ा से गुजरने की बात कर रहे है उनसे भी कोई सहानुभूति नहीें है। क्योंकि मैं ये जानता हूं कि बहुसंख्यक जिसने इस देश का भाग्य 1947 में संविधान सभाओं में तय किया था आज भी सौभाग्य से बहुमत में है। हो सकता है बहुत से लोगो को ये बात काफी अजीब लगे लेकिन मानने में कोई दिक्कत नहीं कि ज्यादातर अल्पसंख्यकों की घृणा का पात्र बने हुए मोदी को देश के बहुसंख्यक लोगो ने चुना है। उनको संविधान से मिली शक्ति से ही गद्दी हासिल हुई है किसी तमंचें के जोर पर नहीं। लेकिन चुनाव के दौरान भी अपनी एक ही शंका थी मोदी को लेकर और मुझे बहुत दुख हो रहा है कि वो सच साबित हो रही है। मोदी सरकार लगातार कॉरपोरेट के हक में गरीबों, मजलूमों और किसानों को गिरवी रख देंगी। मजदूरों के बच्चे आधुनिक गुलाम बनेंगे। एक के बाद एक फैसले लगातार इस और जा रहे है जिसमें जिसके पास पैसा है वही मालिक है। कानून की औकात जूते में रहने लायक बनाई जा रही है। किसानों के खिलाफ भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को जिस तरह से पूरी तरह कॉरपोरेट के हक में बनाया गया है उसने शंका को सच किया है। एक के बाद एक फैसले सिर्फ उन्हीं के हक में। और इसके सबसे बड़े मददगार है तीस्ता, आजम और तथाकथित सेक्यूलर लोग। जो पूरी बहस को गरीबों के खिलाफ हो रही गतिविधियों पर ले जाने की बजाय धर्म के आधार पर ले जाने में जुटे है। जिस प्राची को रोज मीडिया शैतान की आवाज बना कर दिखाने की कोशिश करता है वही प्राची बुरी तरह से चुनाव हारी थी और उस सीट पर हिंदु ही बहुसंख्यक थे। ऐसा क्या हो गया उसके बयानों में। संघ पर कब आरोप नहीं लगे। क्या हो गया मोदी के बनने के बाद जो इस देश के शांतिप्रिय बहुसंख्यकों पर से विश्वास उठ गया सेक्युलरिज्म के ऐसे दुकानदारों का। दरअसल ये सब लोग पैसे पर पलते है मल्टीनेशनल कंपनियों के। ये पैसों पर पलते है देश को लूट रहे नौकरशाही और कॉरपोरेट के नाजायद गठबंधन के। इस वक्त मोदी से डर इस बात का नहीं है कि ये देश का सोशल फ्रैबिक टूट जाएगा क्योकि वो बहुसंख्यकों की संविधान के प्रति आस्था और देश को लोकतत्र बनाए ऱखने की जिद के चलते नहीं हो पाएंगा बल्कि डर इस बात का है कि पूरा का पूरा देश कॉरपोरेट को गिरवी न रक दे मोदी। खैर इस कड़ी में एक नई खबर सामने आ रही है अगर आपको दिख नहीं है तो आपकी मर्जी इस बार वही तम्बाकू इड्स्ट्री की शह पर इस सरकार ने पैकेटों पर छापी जाने वाली चेतावनी को लागू करने की तारीख बढ़ा दी है।और नारा वही है दोस्तों आम जनता का ख्याल रखना है। ये भी जान लो कि ये ही वो लॉबी है जिसने हर्षवर्धन जैसे नेता को जो तंबाकू लॉबी के खिलाफ सबसे बड़े कदम उठाने की कोशिश में था सड़क पर ला दिया। ( साईँस एड टेक कम से कम राजनतिज्ञों की भाषा में डंपिग यार्ड है)
खबर शेयर कर रहा हूं। जो अखबार की कटिंग्स के साथ है।
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Relief likely for tobacco firms on the size of health warning
NEW DELHI: The parliamentary committee looking into amendments to the Cigarettes and Other Tobacco Products Act, which mandates increasing the size of health warnings on tobacco products, has urged the government to delay the date of implementation, which is April 1.
The committee on subordinate legislations headed by BJP MP Dilip M Gandhi submitted its report to Lok Sabha on Wednesday saying "the committee strongly urges the government that the implementation of notification dated October 15, 2014 may be kept in abeyance till the committee finalize the examination of the subject and arrives at appropriate conclusions and presents objective report to Parliament".
The panel said it had received representations from MPs, organizations and stakeholders involved in the beedi, tobacco and cigarette trade that the proposed notification would have adverse impact on the livelihood of a large number of people. "It is of the firm opinion that all such apprehensions need to be comprehensively examined before the amendment notification is brought to force," the panel said.
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