पत्रकार को किसी राजनीतिक विचारधारा का विरोध या समर्थन करना चाहिए या नहीं इस पर विवाद हो सकता है लेकिन पत्रकार को देश के हक में क्या है और विरोध में क्या है इस पर बेहिचक लड़ना चाहिए। इस वक्त ये कॉरपोरेट के टुकड़ों पर पूरी चुनावी मुहिम चलाने वाली मोदी सरकार काले धन पर एक बार मौका के नाम से काले धन को सफेद करने की छूट लाने वाले ही। उस लूट में कम से कम छह से दस लाख करोड़ रूपए व्हाईट होने का अनुमान है। और उस दस लाख करोड़ से इस देश की तकदीर को सत्ता के दलालों, कॉरपोरेट और टके के नेताओं के हाथों में बहुत लंबे समय तक के लिए गिरवी हो जाएंगी।
दोस्तों मोदी सरकार पर ये कभी यकीन नहीं था कि ये गरीबों, मजलूमों और किसानों के हक में होंगी लेकिन ये किस लॉबी के हक में इस पर भ्रम में था। जब किसानों की जमीन अधिग्रहण अध्यादेश आया तो लगा बिल्डरों और जमीन छीनने वाले कॉ़रपोरेट की कठपुतली है लेकिन इसी बीच काले धन पर बड़े-बड़े दावे आने लगे तो ख्याल आया कि भाई वीडिआईएस यानि अपने आप काला धन घोषित करो और दंड से बचों जैसे लूटेरी स्कीम कांग्रेस ले कर आई थी और देश को लूटने वालों ने 78 बिलियन डॉलर सरकार को दिए थे। यानि सरकार को मिले थे लगभग 45 हजार करोड़ रूपए। और बदले मे सरकार ने लूटेरों को माफ किया था लगभग 1लाख पचास हजार करोड़ रूपए का काला धन। वो धन जो आम जनता को लूट कर हासिल किया गया था जो रिश्वत का था जो भ्रष्ट्राचार का हत्याओं की सुपारी थी या फिर कुछ भी ऐसा जो सभ्य समाज में स्वीकार नहीं किया जा सकता। 1997 में आए उस धन से पूरे हिंदुस्तान की तासीर ही बदल गई। जमीनों के भाव आसमान पर चले गए। ऐय्याशियों की ऐसी खानकाहें बनी कि इतिहास में मिसालें नहीं मिली। भूमि अधिग्रहण को लेकर नाटक जब शुरू हुआ तो लगा कि वाकई ये सरकार कुछ लिए बैठी है एक ऐसा डिजाईऩ जिसमें देश के साथ कुछ बुरा होगा। और जब काले धन में धीरे-धीरे देश के एक ऐसे नेता ने वित्तमंत्री के तौर पर काम काज संभाला जिसका आम जनता से कोई सारोकार कभी नहीं रहा। उस आदमी को देखते ही याद आता है कि मनमोहन सिंह ज्यादा जनप्रिय नेता थे। ज्यादा ईमानदार और कम से कम ज्यादा हिंदुस्तानियों के करीब। (मनमोहन सिंह इतिहास में सबसे ज्यादा घोटालों को अंजाम देने वाली सरकार के मुखिया थे लिहाजा उनकी ईमानदारी गई तेल लेने)। मनरेगा को लेकर ताली पीटने वाला प्रधानमंत्री बेहद बचकाना दिख रहा था जबअगले ही दिन उसके मंत्री ने पांच हजार करोड़ रूपए उसमें बढ़ा दिये। सच में ये ऐसा जाल है जिसमे देश फंस गया है। और जिन उद्योगपतियों को 0.1 फीसदी की दर पर ब्याज मिलता हो ये पैसा उन्हीं की लूट का है उस किसान का नहीं होगा जिसको मिलने वाले ब्याज की दर अगर सही से काऊंट की जाएं तो 36 फीसदी तक पहुंचती है। वो किसान जिसके बच्चें अब शहरों में गुलाम बनने पहुंच रहे है। लिखने को कई बार शब्द नहीं मिलते है क्योंकि आपके विचारों पर कोढ़ी की खाज जैसा गुस्सा हावी हो जाता है। कुछ ऐसी ही हालत है इस वक्त। और अपने विचारों से इस फेस बुक को गंजाईमान करने वाले भक्तगणों से उम्मीद है हम जैसे लोगो की बात न सुने लेकिन देश की मिट्टी की आवाज तो सुने और देश के दुश्मनों को मिलने जा रही इस छूट का विरोध करे। बाकि राजनेता इसके हक में होंगे चाहे वो कांग्रेस हो या फिर वामपंथी दल क्योकि वो कॉरपोरेट की दुम हिलाने वालों से ज्यादा कुछ नहीं है।
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