Sunday, March 29, 2015

क्रांति की नई अलख नौकरशाही के खिलाफ होनी चाहिए


लोग हमेशा वैसे ही नहीं होते जैसा आप उन्हें देखना चाहते है। ये एक कहावत है लेकिन बार बार सच क्यों होती है। कई बार आपको लगता है कि उनको ऐसा करना चाहिए। लेकिन हम हमेशा ये भूले रखते है कि हमको कैसा करना चाहिए। नौकरशाही की जकड़न में ये देश इसके आदर्श, इसके सपने, इसकी दुनिया,इसका भविष्य सब कुछ गुम हो रहा है। रोज ब रोज कोई न कोई कारनाम देश के सामने होता है। रोज कोई घोटाला, रोज कोई ऐसा अपराध जिसकों सुनने के बाद आप टीवा बंद करना चाहते है, आप अखबार को कही छुपा देना चाहते है अपने अबोध बच्चों की निगाह से दूर। हो सकता है आप कामयाब हो पाते हो कुछ देर के लिए। लेकिन ये सिर्फ एक भूल है। ये सिर्फ एक छलावा है। हम हर रोज अपने बच्चों को ऐसी दुनिया में भेज रहे है जहां मौत कही से भी झपट्टा मार सकती है, जहां जिंदगी कभी कही भी साथ छोड़ सकती है, कही भी सपने रूक सकते है टूट सकते है और हैरानी की बात है कि गुनाहगार हम ऊपर बैठे किसी एक ऊपरवाले को मानते है। हमको गालियां देने के लिए कुछ नेता होते है जो लूट के लिए नौकरशाहों के औंजार बनते है। लूट में हिस्सें को लेकर कभी कोई लड़ाई नहीं होती । क्योंकि इसमें एक पक्ष तो हमेशा पर्दे के पीछे छिपा होता है। दूसरे को गालियां खानी है,अपने बच्चों के लिए बददुआ इकट्ठी करनी होती है। नौकरशाह हमेशा पर्दे के पीछे और गाली खाने वाला नेता हर वक्त सामने। रिस्क ज्यादा है तो हिस्सा भी ज्यादा होगा।  पिछले साठ सालों से इस देश में यही खेल चल रहा था लेकिन अब इसमें थोड़ा बदलाव दिख रहा है। नेता और ब्यूरोक्रेट रोज-रोज नए घोटालों में शामिल है। नाम सामने आए या ना आए कोई फर्क नहीं पड़ता है। अब लूट संस्थागत हो गई है। तो उसके तरीके भी विकसित हो गए है।  हो सकता है कि ये बात कभी साबित न हो लेकिन एक आदमी ने कही जिस पर अविश्वास नहीं किया जा सकता है कि अवैध खनन के तौर पर उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में हम लोग जिस गणित की बात करते है वो तो सड़क के किनारे बिकने वाले कैलकुलेटर के साथ ही खत्म हो जाता है लेकिन एक डीएम को मिलने वाली रकम 12 लाख रूपए रोजाना है। बारह लाख रूपए रोजाना अवैध कमाई इसका मतलब आप समझते होंगे लेकिन फिर भी इसको इस तरह लिखते है 3 करोड़ 60 लाख रूपए महीना 42 करोड 20 लाख रूपए सालाना। इस आंकड़े पर शायद आपको पसीना आ गया होगा। लेकिन ये सिर्फ एक खनन का पैसा है किसी एक खनन के जिले में जो डीएम को मिल रहा है। हो सकता है चूंकि मैं जानता हू कि मैं किसी नौकरशाह का कोई दोस्त नहीं हूं लिहाजा उनके पढ़ने के लिए भी नहीं है लेकिन जो पढ़ तो शायद वो मुंह झुठलाने के लिए ही इस पर सवाल उठाएंगा, सच उसको भी पता है और कोर्ट में गड़करी भी ईमानदार साबित हो सकता है। क्योंकि कानून अगर उन अंग्रेजों के वक्त के से नहीं चल रहे होते तो इस देश के वास्तविक लुटेरों के घरबार नीलाम हो जाते। लेकिन छोड़िये वो सब सिंधिया घराना जीत कर लोकसभा और विधानसभाओं में रहता है वही सिंधिया घराना जो रानी लक्ष्मीबाई के खिलाफ  गद्दार और अंग्रेजों के साथ रहा। दरअसल इस देश के इस तरह बदलने में नौकरशाहों का सबसे बड़ा योगदान है। अगर आपको शक हो तो पूरे देश के नौकरशाहों में से एक ऐसा पकड़ कर दिखा दीजिए जिसके बच्चें किसी सरकारी स्कूल में शिक्षा पा रहे है और वहां से उससे बेहतर पब्लिक स्कूल हो।  एक नौकरशाह तो स्पैन में छुट्टिया बिताता है तो दूसरे का कंपीटिशन होता है कि वो शिकागो में परिवार के साथ जा पहुंचे। दोस्तों सेलरी से दो कमरे का फ्लैट उनको दिल्ली में नहीं मिल सकता है। लेकिन उनके फार्म हाऊस और कोठियों को देखना हो तो जरा गोमतीनगर में जाकर एक नजर डाल लो।  खैर इन पर लिखना तो इस देश की गुलामी के इतिहास पर लिखना है। उत्तर प्रदेश में ऐसे जाने कितने एसएसपी होंगे जिन्होंने एनकाऊंटर में अपना हाथ नहीं आजमाया होगा। और ये एनकाऊंटर कितने असली होते है ये कानून की आंखों में बंधी पट्टी में दिखाई नहीं देता है। बहुत से एनकाऊंटर अनआईडैंटिफाईड रह जाते है , तो क्या हुआ कानून के नाम पर उनको इंसानों को भेड़ -बकरी से ज्यादा कुछ समझने का होश नहीं रहता है।  नेशनल हाईवे 58 और 24 रोज गुजरते है लाखों लोग। जाम में फंसते हुए, वक्त को दूसरे आदमियों को गाली देते हुए, दिन को कोसते हुए उनको सरेराह दिखता है पैसे वसूलते ट्रैफिक पुलिस वाले। लेकिन नौकरशाही को नहीं दिखता है।क्योंकि कभी भी डीआईजी या आईजी मोदीनगर जाम में फंसा नहीं कि लाठियां लगी और अगले दिन फोटो कैप्शन सहित कि जाम का हल तलाशा जाएंगा। ऐसे बहुत उदाहरण है लेकिन ये तो सिर्फ हंसते-खेलते हुए उदाहरण है अगर नौकरशाही का और भी गंदा चेहरा देखना हो तो आपको गांवों में दूर-दराज के इलाकों में देखना होगा जहां भ्रष्ट्राचार के चलते लोग बीमारी से भूख या अकाल मौत मरते है और नौकरशाह फाईलों में कुछ ऐसी चीजें दर्ज करते है जिससे बौंने राजनेता उछल उछल कर राजनीति करते रहे। काफी बहस होती है संसद और विधानसभाओं में कही भी सिरे नहीं चढ़ती। उदाहरण तो सैंकड़ों हो सकते है लेकिन बात गृहमंत्रालय की कर लेते है। रणवीर एनकाऊंटर जिसमें सीबीआई अदालत ने पुलिसकर्मियों को हत्या का गुनाहगार ठहरा दिया लेकिन वो अधिकारी जिन्होंने कैमरे के सामने बड़ी बड़ी बातें की इस हत्याकांड को मुठभेड़ साबित करने में वो आज होम मिनिस्ट्री में ही है। त्तराखंड आंदोलन के वक्त निहत्थे आंदोलनकारियों की फोर्स ने गोलियां चलाकर हत्याएं की, बलात्कार की घटनाओं के सनसनीखेज आरोप लगे। मैं उस वक्त मुजफ्फरनगर में ही एक स्कूल में पढ़ता था। दो अक्तूबर की इस घटना ने हिला कर रख दिया था। लेकिन हुआ क्या। वो नौकरशाह देश के लिए फिर से कानून बना रहे है जिन्होंने आदेश दिया था। इस कारनामे का। कोई होम मिनिस्ट्री में है तो कोई दिल्ली की ही दूसरी मिनिस्ट्री में। और बौंने नेता जातियों की राजनीति कर टके के भाव बिकते  है। और जनता है कि अपना सारा गुस्सा नेताओं पर जाया करती है और परदे के पीछे हंसतें रहते है नौकरशाह।  दुष्यंत के शब्दों में शायद इस पीड़ा की कोई झलक हो।
आज मेरा साथ दो वैसे मुझे मालूम है
पत्थरों में चीख़ हर्गिज़ कारगर होगी नहीं
आपके टुकड़ों के टुकड़े कर दिये जायेंगे पर
आपकी ताज़ीम में कोई कसर होगी नहीं
सिर्फ़ शायर देखता है क़हक़हों की अस्लियत
हर किसी के पास तो ऐसी नज़र होगी नहीं

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