Monday, March 23, 2015

मन की बात मोदी की/वादा अखिलेश का- किसानों को क्या मिलेगा--


“तेग़ मुंसिफ़ हो जहां, दारो रसन हो शाहिद/ बेगुनाह कौन है इस शहर में कातिल के सिवा”
शब्द उधार के भले ही हो लेकिन मन की बात सुन कर यही लगा। लाखों करोड़ रूपए की टैक्स माफी के अलावा अब लाखों करोड़ के लूट के धन को एक मौके के नाम पर केन्द्र सरकार काले धन को सफेद करने जा रही है। ये लाखों करोड़ रूपया जब देश की अर्थव्यवस्था में शामिल होगा तो इंसानों को इंसान समझने वालों की संख्या कितनी कम हो जाएंगी ये शायद अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। मंहगाई के इशारे पर सब कोई नाचेंगा और जो सफेद धन के स्वीमिंग पूल में नहा रहें होंगे उसके लिए इंसान और पानी दोनो ही मुफ्त के दाम हो जाएंगा। कल पूरे समय प्रधानमंत्री किसानों को ये समझाने में लगे रहे कि साठ साल के गुलामी के शासन के बाद ये प्रधानसेवक उनकी जमीनों के सही दाम दिलाने आया है। बस जमीन उनके इशारों पर बेचे दो। मन की बात चल रही है काम की बात कही नहीं है। किसानों ने आत्महत्या का रास्ता पकड़ लिया है। लिहाजा प्रधानमंत्री को ये जमीन अधिग्रहण पर जल्दी करनी चाहिए ताकि ये किसान खुद ही गायब हो जाएं। मजदूरों के तेवर और किसानों के तेवर में काफी अंतर होता है। आजादी की लड़ाई के सामाजिक धागों को सुलझानें के बाद ये आसानी से समझ आ जाएंगी कि गांव गांव से निकले लोगों ने बेखौफ होकर नेताओं की आवाज पर अपनी जमीनें और जानें दोनों देश के लिए बलिदान कर दी। लेकिन उसके बाद उनको सिर्फ फांसी का एक फंदा या फिर कर्ज की जिंदगी का कफन ही हिस्से आया। उनके बच्चें अगर शहर पहुंचें तो वापस गांव जाने नहीें बल्कि गांव को बाजार में लाने के लिए। गांव तो अब बाजार में ही खड़ा है। बिकने के किस्मत हो या अस्मत दोनो शहर के कुछ लोगो के हाथो में दोनो है। ऐसे में प्रधानमंत्री की मन की बात सुन रहा था क्या क्या कह रहे थे जैसे जूनुं में बक रहा हो कोई कितनी बार कहा कि पिछले बिल में हमने इसको नहीं छेड़ा उसको नहीं छेडा़। भाई बीच में तो आपकी सरकार भी रही है उस वक्त याद नहीं रहा किसान। खैर जाने दीजिए भक्तगणों की ताकत से नैय्या पार हो जाएँगी। लेकिन अपना डर उसी लाखों करोड़ के काले धन को एक झटके में सफेद कर देने से है। उसके बाद तो आम आदमी की हैसियत आलू से भी कम रहे जाएंगी। कीमत बोल खरीद लेंगे सब। कानूनों की हैसियत और कोठों की हैसियत में अंतर आपको समझना है। आप गलती से भी उसके फेर में आएं तो आपकी आप जाने दुनिया तो आपकी उतार ही देंगी।
अखिलेश का भी एक बयान आया कि गन्ना किसानों को पैसा सरकार देंगी। अखिलेश के पुरखों के पैसे से ये सरकार चलती है ऐसा लगा। गन्ना किसानों के हजारों करोड़ रूपए मिल मालिकों पर बकाया है। लेकिन हर बार केन्द्र सरकार हो या फिर राज्य सरकार हजारों करोड़ की छूट मिल मालिकों को देती है। वो पैसा डाईवर्ट कर देते है। फिर बाजार में आ खडें हो जाते है। फिर सरकार जनता का ही पैसा उनको देती है। नाटक के लिए हर साल उनकी आर सी कटती है सरकार नाटक करती है जैसे मिल मालिक अरेस्ट हुआ हो। क्यों भाई हर बार ये नाटक क्यों। सरकार अगर उनको गिरफ्तार करती है तो उनके खिलाफ सख्त धाराएं क्यों नहीं लगती सजाएं क्यों नहीं होती । और सबसे बड़ी बात अगर मालिकों पर फ्रैक्ट्रियां नहीं चल रही है तो फिर वो सरकारी रेट पर नीलाम क्यों नहीं की जाती। याद रखना सरकारी फ्रैक्ट्रियां कौंडियों के भाव बेची है उत्तर प्रदेश सरकार ने। इतने सस्ते में कि जमीन की कीमत कई गुना था भाव के। लेकिन नाटक जारी है नूरा कुश्ती जारी है।
आम जनता को लगता है सरकार देंगी और ये ऐसा ही जैसे हड़डी चूसते कुत्तें को महसूस होता है कि खून हड़ड़ी से आ रहा है उसके खुद के मसूड़ों से नहीं।

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