अन्ना आंदोलन के दौरान मंच पर एक से बढ़ कर एक कलाकृति मौजूद थी। बौंनों की उछल-कूद के दौरान रामलीला पहुंच रहे मीडिया के बौंनों ने टीवी स्क्रीन पर उछलकूद मचा रखी थी। खैर आशुतोष जी के बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं है उनका एजेंडा साफ था बाकि लोग सिर्फ मंच से भीड़ की उम्मीद का आकलन कर रहे थे। और भीड़ की उम्मीद को मंच पर खड़े हुए अभिनेताओं से जोड़ रहे थे। चलिए बाकि नायकों के बारे में कुछ न कुछ जानता था लेकिन एक आदमी अचानक बीच-बीच में आता था और बोलता था ..लरेगे,, जीतेंगे । उसकी आवाज में इतना जोश था कि सामने वाले अपना होश खो दे। मेरे साथ मेरे एडीटर दीपक शर्मा भी थे उनसे पूछा कि ये कौन है तो उन्होंने कहा कि ये जनाब संजय सिंह है। जगह उन्होंने बताया कि ये अमेठी के है। बाद में अपनी खबरों के दौरान बाईट्स लिए लेकिन कभी वो ऐसा आदमी नहीं दिखा जिससे बहुत बात करने की इच्छा हो। हालंकि बाद में किसी पत्रकार ने बताया कि इनकी अपने पिता से बहुत शानदार बातचीत होती है जिसमें ये अपने पिता से कहते है कि बीस हजार रूपये आप भिजवाते हो उसमें गुजारा नहीं होता है और आपने बहु और बच्चें भी भेज दिये पैसे बढ़ाओं। युवा रिपोर्टर मेरे बहुत करीब है इसीलिए मुझे लगा लेकिन मैंने कहा नहीं कि जो आदमी इतना बड़ा नाटक कर सकता है कि पत्रकारों के सामने अपने पिता को इस तरह सुना रहा वो कुछ भी हो सकता है एक ईमानदार और जननेता नहीं हो सकता। दरअसल इन साहब के बारे में बाकि सब कहानी अगर आपको जाननी है तो फिर आप चले जाएं सुल्तानपुर वहां के एक सपा विधायक थे जिनकी ख्याति किसी और महिला को साथ घुमाने के लिए बहुत हुई थी ये साहब उनके यहां कार्यकर्ताओं की लिस्ट में आते थे। और जिस भाषा का इस्तेमाल किया जाता है चमचे थे। अपनी पूरी योग्यता को इन्होंने यहां पूरे तौर पर दिखाया। यहां ये अरविंद के खासमखास है अक्सर आप इनकी महानता के किस्से सुन सकते है किसी न किसी आपिया पत्रकार से। लेकिन इनका सबसे महान काम सिर्फ ये ही कि आप अरविंद की ओर चले नहीं कि ये गुर्राने लगते है। पहली बार ये सुन कर इऩ पर लिखने को मन हुआ जब इनको एक स्टिंग्स पर सुप्रीम कोर्ट की गाईडनलाईन के बारे में बोलते हुए सुना। वाह रे राजा दूसरों की धोती सरेराह खोलते हुए कभी दूसरी पार्टियों के संविधान या फिर देश के संविधान की याद नहीं आई अपनी पोल खुली नहीं कि लिहाज की गठरी उसी मीडिया के कंधें रखने लगे जिस पर जब चाहते थे जिसकी चाहते थे धोती खोल कर रख देते थे। और एक बात कल इनके कान भी इनको धोखा देने लगे थे जब इन्होंने बताया कि ये अरविंद की आवाज नहीं पहचान पा रहे है। जियो राजा जियो ... वैसे सांडा कि याद है ( पुराना गॉडफादर)
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