सीढ़ियां चढ़ती हांफती
है नौकरानियां
बहाना कर रही है काम
से बचने का
अक्सर पल्लूं से आंखों
से आये आसूं पोंछनें लगती है
खुरदरे हाथों में काली
पड़ चुकी लकींरों में
कोई भी लकीर नहीं सीधी
वक्त उसके हाथो से
फिसला कभी या नहीं
कुछ कह नहीं सकती है
सही से वो
वक्त उसके लिये सुबह
पांच बजे घर की चारदीवारी
और देर रात उसी चारदीवारी
तक पहुंचने के बीच सुईंयों की टकटक है
पौंचा लगाना हो या
फिर बर्तन साफ करना
हर काम में लगता है
कि सही से नहीं करती है
कामचोरी का आदतों से
परेशान है मालकिनें
काम करती है बेटियां
क्या जरूरत है उसकी
बेटियों को फोन की
फोन पर लंबीं बातें
कयों करती है
मालकिनों की बेड़रूम
तक गूंजती है आवाज
मालिकनें परेशान है
इस कार में एवरेज कम
है
बॉस इसका इंटीरियर
क्लास है
गोवा के होटल्स में
काफी भीड़ है
महंगा पड रहा है है
यार
हिल स्टेशन पर अब छुट्टियां
बिताना
झूठ बोलती है नौकरानियां
कल गैंग की शिकार लड़की
की मां
बोल रही थी किसी से
गर्म रोटी की खुशबू
ने खींच लिया था
उसकी बेटी को एक मकान
में
लेकिन मकान में बैठे
दरिंदों ने रोटी नहीं घाव दिये
मालिकनों को मालूम
है बिना किसी के बताएं
खुद भेज दिया होगा
पैसे के लिए लड़की को
बदतमीज है नौकरानियों
के बच्चें
सोफे पर बैठ जाते है
सीधे आकर
गंदें हो जाएँगे तो
धोने का पैसा ले लेगी नौकरानियां
डॉटों तो मुंह चढ़
जाते है नौकरानियों के
कई बार देर तलक नहीं
आती है काम वालियां
क्यों
तो कहती है बेटी को
स्कूल से आने मे देर हो गई
मक्कारियों को किस
कदर छुपा लेती है नौकरानियां
बच्चों के लात मारने
से कौन सा चोट लगती है
झूठ-मूठ बहाने बनाने लगती है नौकरानियां
एक दूसरे की बॉलकोनियों
में
बतलाती है मालिकिनें
हे भगवान
कितना झूठ बोलती है
नौकरानियां
No comments:
Post a Comment