Tuesday, April 21, 2015

आशुतोष जी को खेतान की हवा भा रही है।

आशीष खेतान क्या है एक बार उनके साथ काम करने आए पत्रकार ने मेरे से पूछा, मैंने जो कहा था वो उससे पहले मैं आपको बचपन की पढ़ी गई  एक कहानी सुनाता हूं (कहानी है सदियो से सफर तय करती है क्या भूल-सुधार हुई होगी मालूम नहीं) चन्द्रगुप्त के चन्द्रगुप्त बनने की। चाणक्य अपने दोनो शिष्यों को लेकर मगध से कुछ दूर रूके हुए थे। पर्वतक और चन्द्रगुप्त। पर्वतक छोटे से राज्य का राजा भी था और सेना के साथ चाणक्य की लड़ाई में काफी लबें समय से लगा था। सत्ता लगभग हाथ आ चुकी थी। युद्ध खत्म हो चुका था। कुछ औपचारिकताएं बची हुई थी। एक रात चाणक्य आगे की सोच में जागे हुए थे। कि धीमे से किसी ने कमरे में प्रवेश किया। चाणक्य ने देखा कि पर्वतक उनके कमरे में घुसा था। चाणक्य ने पूछा बताओ पर्वकत क्या कहना चाहते हो। पर्वतक ने धीरे से हिचकते हुए कहा कि गुरूदेव लड़ाई तो खत्म हो गई। चाणक्य ने जवाब दिया, हां अब तो उसके बाद की बात करनी है। पर्वतक ने कहा कि अब तक आप एक सवाल पर मौन साधे थे और वो है कि मगध किसका होगा। चाणक्य ने पर्वतक को कुछ क्षणों तक देखा और फिर कहा कि ठीक है उसका जवाब आपको समय पर मिल जाएगा लेकिन पहले एक काम करो चन्द्रगुप्त के गले में एक हार पड़ा है, उसकी मुझे अभी जरूरत है तो तुम उसको चन्द्रगुप्त के गले से निकाल लाओ लेकिन याद रखना कि चन्द्रगुप्त जाग न जाए। पर्वतक चुपचाप चन्द्रगुप्त के कमरे में गया काफी देर तक जतन करता रहा ,सोचता रहा लेकिन ऐसी कोई सूरत नहीं मिली जिससे वो हार बिना जागे निकाल पाता। आखिर में उसने जाकर चाणक्य को कहा कि गुरूदेव ऐसा करना संभव नहीं है। चाणक्य ने कहा कि कोई बात नहीं है मैं आपके प्रश्न का समाधान जल्दी ही आपको मिल जाएगा। पर्वतक चला गया कुछ ही देर बाद चाणक्य सोने वाले थे कि चन्द्रगुप्त ने चुपचाप उनके कमरे में प्रवेश किया और वही सवाल दोहराया। चाणक्य ने भी वही काम बताया पर्वतक के गले की माला और वो भी उन्हीं शर्तों के साथ। चन्द्रगुप्त बाहर गया और थोड़ी देर बार आया तो पर्वतक के कटे हुए सर के साथ माला ला कर चाणक्य के कमरे में रख दी। चाणक्य ने कोई जवाब नहीं दिया और धीरे से कहा कि फैसला हो गया। कहानी का इतिहास के पन्नों पर कितनी विश्वनीयता है नहीं जानता लेकिन बात आशीष खेतान की हो रही थी तो मैंने कहा कि आशीष खेतान माला लेने के लिए सिर वाला ऑप्शन ज्यादा अप्लाई करेगा। बात आई गई हो गई। पत्रकार ने सालो बाद कहा कि आपकी बात सच साबित हुई थी लेकिन मेरी उससे ज्यादा बात नहीं होती थी लिहाजा मैंने बहुत कुछ दरियाफ्त नहीं किया। साधा हुआ पत्रकार लेकिन उससे बड़ा गणितज्ञ समीकरणों को।  खैर मेरी दोस्ती नहीं रही कभी खेतान से। लेकिन खेतान और मैंने साथ काम किया कुछ खबरों में। किसी भी चीज को पूरी गहराई से देखना खेतान का स्वभाव। कोई भी खबर हो या फिर रिश्तें, पहले जानना होता कि मेरे लिए फायदा क्या है।  कई चीजों पर बेहद आग्रही जैसे मोदी विरोध या फिर राईटविंग का विरोध। ये उस हद तक कि सनक बन जाएं। महत्वाकांक्षा पहाड से ऊंची इरादा भी वैसा ही और हासिल करने का जूनुन भी । महत्वाकांक्षा ऐसी कि पहला शिकार हमेशा अपने बॉस को बनाना फिरतत दिखाई दी। इसके गवाह बेचारे कई बॉस हो सकते है। खैर एक दिन न्यूज रूम में खड़ा था कि खबर आई कि खेतान को नई दिल्ली से टिकट मिल गया। मेरे मुंह से निकल गया अरे ये तो जीत गया। पास खड़े सब लोग बोले अरे अभी तो सिर्फ टिकट मिला है आप कैसे कह रहे हो जीत गया मैंने कहा कि भई अभी ये अपने एक पुराने बॉस से टिकट की लड़ाई में थे उसमें जीत गये है वोट की बात तो बाद होगी। मेरे कई पत्रकार मित्रों ने राजनीतक यात्रा के बारे में पूछा तो मैंने कहा कि ये बेहतर परफॉर्म करेगा राजनीतक ताकत हासिल करने में हां आम जनता को कोई फायदा देगा इसमें मुझे संदेह है क्योंकि एक पत्रकार के तौर पर वो एक बड़ा सधा हुआ है लेकिन एक आदमी के तौर पर अच्छा होने में मुझे संदेह है।  दिल्ली के विधानसभा चुनाव से पहले कई लोगों ने मुझसे कहा था कि खेतान क्या करेगा। मैंने कहा कि मौके का इंतजार। और मौका मिलते ही अपने हक में सबसे बड़ा पद हासिल कर लेगा। चुनाव खत्म हुए और पद मिल गया। और मिलते ही सबसे पहले एक ब्यूरोक्रेट को सिखा दिया कि कैसे चलेगा ये आयोग। खेतान के होते हुए किसी दूसरे का सर गर्दन पर होना शायद मुश्किल होगा। अब जैसे ही प्रशांत ने अपना मुंह खोला तो खेतान साहब गिनवाने लगे पूरी ताकत से कि प्रशांत भूषण की कितनी कितनी संपत्ति कहां कहां है  लेकिन साहब ये नहीं बता रहे है कि ये बात प्रशांत के अरविंद की नजरों में उतरने के बाद पता चली या फिर मौंके का इंतजार कर रहे थे। और एनएसी से निकालने से पहले लगाएं गए आरोपो पर पहले माफी मांग ली थी और फिर जब एनएसी से निकाले गए पार्टी से निकाले गए तब याद आ गया सब कुछ।  खैर राजनीति में है तो पद के लिए महत्वाकांक्षा तो होगी ही लेकिन अपनी समझ कुछ ऐसी है कि ये खेतान साहब काफी कुछ हासिल करेंगे लेकिन उससे जनता को कुछ हासिल नहीं होगा। स्वराज को कुछ हासिल नहीं होगा और तो और पार्टी को भी कुछ हासिल नहीं होगा।

1 comment:

Anonymous said...

http://www.caravanalive.com/alive-exclusive/how-much-land-does-a-man-need-12214.html