Wednesday, April 15, 2015

गंध सिर्फ बारूद की पहचानों ..

.छोड़ो वो सब बातें
मुझे नहीं पूछना है तुमसे कुछ भी
वायुमंडल में क्या है
भूमंडल कैसे बनता है
सूर्य के पार
आकाशगंगा में और कितने ग्रह हो सकते है हमारे जैसे
मैने देख लिया तुम्हारी डायरी में लिखा हुआ
मैडम का प्रशस्ति पत्र
तुमने लिखी है जिंदगी पर
एक शानदार कविता
नहीं तुमको उस पर इतराने की जरूरत नहीं
मैं बस उसे एक रोजमर्रा की टिप्पणी देखता हूं
तुम को खुश नहीं होना चाहिए इस बात पर
कि चुना गया है तुम्हें
सबसे बेहतर कलाकार/चित्रकार
लाईंने खींचते हो
दुनिया को ध्यान से देखते हो
ऐसी तमाम बातें
मुझे चिंता में डाल देती है
क्योंकि तुम देखने लगे हो
दुनिया को अपनी आंखों से
तुम पूछते हो बहुत से सवाल
इतिहास की किताबों से खोज-खोजकर
तुम जोड़ने लगते हो
शहादत की कीमतें
और हिसाब मांगते हो आज के वक्त से
बेहतर होता ये सवाल
बस तुम्हारे बस्तें के आसपास के ही होते
लेकिन तुम जानना चाहते हो लोगो के बारे में
तुम्हारों सवालों के दायरे में आते है
घर, स्कूल, मेरा दफ्तर , और वो तमाम दुनिया
जिसे तुम रोज तय करते हो
तुम कहते हो
ये हमारे लोग है
ये सब सवाल बढ़ा देते है मेरा डर
ये सही नहीं
तुम पूछते हो भगत सिंह की कहानी
तुम जानना चाहते हो नमक की कीमत
और डांडी यात्रा का सच
रोजमर्रा सड़क पर मारे गए
सैंकड़ों बेगुनाहों की मौत पर
किसकी जिम्मेदारी तय होती है
ऐसे तमाम सवाल
तु्म्हारे लिए जानकारी नहीं
चक्रव्यूह रचते है
ऐसे सवालों के सही जवाब
सच बोलने का खतरा
तुम्हारे आस-पास बनाते है
मैं गलत बता नहीं सकता हूं
और डर से सच बोल नहीं पाता हूं
मेरा डर तुम अभी समझते नहीं हो
क्योंकि तुम्हारे लिए होना चाहिए
पास बैंठी लड़की/लड़के का
खाने का चलने, बोलने का तरीका समझना
ज्यादा अहम
तुम समझते नहीं हो
तुम्हारे लिए देश की मिट्टी की कीमत से ज्यादा
रोटी की महक से बढ़कर
मां के प्यार से अमूल्य
और बाप की देखरेख से भी कीमती
बस एक पहचान होनी चाहिए
एक सुंगध की
बारूद की सुंगध की
आस-पास उग रहा है
बोया जा रहा है बारूद
जिदंगी की जमीन में
कभी भी कही भी पैंबस्त हो सकता है बारूद
बाप की गोद को मचलते जिस्म में
मां से मिलने की खुशी में झूमते हुए
सड़क पर अकेले घूमते हुए
या फिर भरी भीड़ में चलते हुए
यहां तक
कि
स्कूल की किताबों में डूबें
बच्चों के सीनों में
खिलौने लेकर लौंटते
बाप के दिल में
बारूद बना लेता है अपना रास्ता
कही भी कोई भी नहीं रहा सुरक्षित
मैं सिर्फ देखना चाहता हूं
तुमको बड़ा होते हुए
मुझे किसी और शहीद की जरूरत नहीं है
शहादत नौकरशाहों के जूतों में बस जाती है
नेताओं के घरों में जूतें उठाते दिखते है शहीदों के बच्चें
एक अदद पैंशन या किसी रोजगार के लिए
चंद मालाओं और एक लोई
उढ़ा देने भर से
चुक जाता है ऋण शहीदों का
भगतसिंह बोलने से नेताओं को वोट
नौकरशाहों को ताकत मिलती है
भगत सिंह बनने से किताबों में
दो पन्नें मिलते है
किताबों को सिर्फ बस्तें में रहने दो
सवालों को दफना दो दिमाग की गहरी खाईंयों में
प्यार सिर्फ अपने से करना सींखों
और गंध सिर्फ बारूद की पहचानों 

2 comments:

Anonymous said...

एक लालची बाप का डर...। जो बच्चे का ठीक से बचपन भी नहीं पढ़ पा रहा है। वो अपने ही द्वारा खींची गयी लकीरों के पार नहीं जाना चाहता। बच्चे का नाम पहले ही आयुध रख छोड़ा है। अब पता नहीं उसे क्या बना देने वाला है। अबे उसे बच्चा ही रहने दे...और आंख खोलकर इस दुनिया का दूसरा पहलू भी देख जो रोज नयी सुबह के साथ इस दुनिया को रोशन कर रहा है।

mediajantantra said...

हा हा सही कह रहे हो। एक बाप का डर और क्या होगा।