Saturday, September 19, 2015

झूठ में जिंदा रहना हमेशा अच्छा लगता है।

हिंदी दिवस काफी शानदार रहा। बहुत सारे दोस्तों ने एसएमएस , व्हाटएप्प या फिर दूसरे सोशल मीडिया के साधनों से हिंदी दिवस की खुशियां शेयर की। बहुत सारी बहस-मुसाहिबें भी हुए। बहुत सारे विद्वान जनों के लेख भी दिखे। हर अखबार ( जाहिर बात है हिंदी के) में हिंदी दिवस पर गणमान्य लोगो के हिंदी की ताकत, उसकी खूबसूरती और व्याकरण की विविधता को लेकर गुनगाण गाते हुए। एक दो उत्तरआधुनिक सुधीश पचौरी जी जैसे तमाम संतों के भजन जिसमें सबसे बडी टेक रहती है बाजार मजबूर हो रहा है हिंदी की शरण में आने के लिए। सच भी एक दो लेख में दिख जाता है। ये झूठी और मक्कारियों की कहानियां थी जो सिर्फ पैसे के लिए लिखी गई थी। हिंदी अब अपनी जगह खो चुकी है। भविष्य में उसके लिए कोई रास्ता नहीं है। सिर्फ वो लोग जो ताकत में नहीं है या ताकत के कॉरिडोर में रास्ता बनाने में असफल रहे है उसकी कहानी सुनाएंगे। इतिहास गवाह है कि जिस भाषा का रोजगार से और ताकत से रिश्ता कट जाता है वो देवभाषा हो जाती है। हिंदी देवभाषा होने के कगार पर है। रही बात बोलने वालों की संख्या या फिर बाजार की तो अभी इस देश का मध्यमवर्ग जो अब अपने बच्चों को मर्जी के स्कूलों में पढ़ा रहा है ज्यादातर में इंग्लिश में बोलने को तरजीह दी जाती है। देश के सत्ता के गलियारों में अभी हिंदी की बात करने से आपको अछूत माना जा सकता है। हिंदुस्तान की सबसे बड़ी अदालत की सीढियां जिस दिन चढा़ उसी दिन देख लिया था वकील साहब के चैंबर में बैठे एक वादी को ये पूछते हुए कि साहब फैसला हमारे हक में है कि दूसरे के। हालांकि वो भी सुनवाई और फैसले के दौरान मौजूद था लेकिन वहां अंग्रेजी के अलावा कोई भाषा नहीं समझ पाते माईलार्ड बहस के दौरान। किसी भी प्राईवेट नौकरी में हिंदी में बायोडाटा भेजना और खुद को भरे चौराहे पर रूई में लपेट कर आत्मदाह करना दोनो बराबर है। हिंदी पर भाषण झाड़ने वाले तमाम लोगो के बच्चे सबसे बढियां इंग्लिश स्कूल में ही पढ़ते है। लेकिन इस देश को ये आदत है कि सच अगर चुभता है तो बोलना नहीं है। अरे भाई लोगों अगर हिंदी से सचमुच में प्यार है तो सीधे पूछों न कि लंबरदार एक बात बता कि मैं बच्चों को हिंदी क्यों पढ़ाऊँ।
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उस सरगर्मी की याद दिलाते
कई परचे कई इश्तहार आज भी
गलियों की दीवारों पर घाम-पानी सहते
चिपके है अपनी अस्तित्व-रक्षा के लिए
उन पर छपे लम्बे-चौड़े वायदों पर
परतें काई की जमीं जा रही है।
जिन्हें देखते-देखते
आँखें लाल हो जाती है।
तुम्हारे पास पुलिस है हथकड़ियाँ हैं
लोहे की सलाखें वाली चारदिवारी है
मुझे गिरफतार करके चढ़ा दो सूली
उसी माला को रस्सी बनाकर
जो कभी तुम्हें पहनाया था
क्योंकि मैंने तुम्हारे ऊपर के विश्वास की
बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी है।
इस जुर्म की सज़ा मुझे दे दो।
मैं इन इश्तहारों को
अब सह नहीं पा रहा हूँ।

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