Thursday, September 3, 2015

औरंगजेब के समर्थन की आवाज और सेक्यूलर होने की होड़।



इतिहास किसी भी कौम, इंसान, या जमीन इन सबके लिए सबसे अहम चीज होता है जो इस दुनिया में अतीत से वर्तमान का रिश्ता जोड़े रखता है और भविष्य का रास्ते का पता दिखाता है इस तरीके से कि कौम, देश या जमीन किस तरह से इतिहास को स्वीकार कर रही है। अभी कुछ दिन पहले एक सड़क का नाम बदला गया। नाम था औंरगजेब। तब से मैंने देखा कि कुछ लोगो को अचानक इतिहास और किंवदंतियों की याद आने लगी। मैंने कुछ पोस्ट पर चलती हुई एक इतनी मासूम बहस देखी कि मन किया खुशी से रो दूं कितने सेक्युलर और इतिहास प्रेमी दोस्त है। लेकिन बात शुरू करने से पहले मैं इतिहास की किताब का छोटा सा वर्णन लिख दूं और उन सेक्यूलर के नाम पर एक खास किस्म की घृणा में योगदान देने वाले दोस्तों के जानकारी के लिए ये भी बता दूं कि ये वही किताब है जिसमें आक्रमणकारियों को काफी सेक्यूलर बताया गया है यानि अपने सम्माननीय इतिहातकार वी डी महाजन की चाहे तो बाजार से खरीद कर पढ सकते है।
"औरंगजेब की धार्मिक संकीर्णता ही असफलता का सबसे बड़ा कारण थी। उसे सुन्नी इस्लाम में आस्था थी और इसके नियमों का कठोरता से पालन करता था। इतना ही नहीं, वह सुन्नि इस्लाम का प्रचार करना अपनी समस्त प्रजा के लिए लाभदायक समझता था। उसने हिंदुओं, सिक्खों को ही नहीं, शियाओं का भी उत्पीड़न किया। इस धार्मिक संकीर्णता के कारण ही साम्राज्य की एकता नष्ठ हो गई। उसने अपनी प्रजा को विभाजित कर दिया जिससे विद्रोह होने लगे और जिससे अंतत साम्राज्य नष्ठ हो गया। उसकी राजपूत नीति भी विफल हो गई। अपनी धार्मिक नीति के क्रियान्वयन में वह राजपूतों को बाधा मानता था।"
- उसने कुटिलता को अपनी राजनीति माना। प्रशासक के रूप में वह स्वयं को सुन्नी मुसलमानों का शासक मानता था। गैर मुसलनानों से घृणा करता था। अत: उसके प्रशासन का आधार ही घृणा और विद्वैष था। उसने पूरी शक्ति दक्षिण को जीतने में लगा दी लेकिन वह दक्षिण को जीत नहीं पाया।
विंसेंट स्मिथ- जब शासक के रूप में उसका परीक्षण किया जाएगा तो असफल ही घोषित करना पडेगा।
प्रो- जदुनाथ सरकार- इस प्रकार का शासक राजनीतिज्ञ नहीं कहा जा सकता। राजा की हैसियत से वो नितांत असफल था। उसमें कोई ऐसा गुण नहीं है जिससे भावी संतान उसकी गणना महान सम्राटों में कर सके। उसके संपूर्ण शासनकाल का परिणाम पूर्ण सत्यानाश और आपदा थी।
औरंगजेब की शसननीति-
औरंगजेब ने कुछ समय बाद शासन की विस्तृत नीति घोषित की। पूर्व मे उसने दारा के विधर्मी कृत्यों की आलोचना की थी और इस्लाम की रक्षा का नारा दिया था। अत इस दिशा में कुछ कार्य करना भी आवश्यक था। इस दिशा में उसने कुछ फरमान जारी किये थे। उसमें से कुछ नीचे है।
1.सिक्कों पर "कलमा" अंकित करने की प्रथा बंद कीजिससे काफिरों के हाथों में जाने से यह अपवित्र न हो सके।
2.नौरोज का उत्सव मनाना बंद कर दिया गया क्योंकि ये गैरइस्लामिक प्रथा थी।
3. मुसलमान कुरान के मुताबिक आचरण करे और धर्म विरोधी आचरण न करे इसके लिए निरीक्षक की नियुक्ति की गई।
4. मस्जिदों. खानकाहों की मरम्मत कराई गई और राजकीय वेतन पर इमाम, मुअज्जिम, खतीब नियुक्त किए गए।
5.शाही दरबार में संगीतज्ञ ऱखने की प्रथा बंद कर दी।
6. तुलादान की प्रथा बंद कर दी क्योकि ये हिंदु प्रथा थी।
7. दरबारियों के प्रणाम करने की हिंदु प्रथा बंद की और आदेश दिया कि सभी दरबारी सलाम- अलै- कुम का प्रयोग करेंगे।
8. हिंदु राजाओं के तिलक करने की प्रथा बंद कर दी। अकबर ने यह प्रथा शुरू की थी। इसी वर्ष जजिया फिर से लगा दिया गया।
9. झरोखा प्रदर्शन की प्रथा बंद कर दी क्योंकि ये हिंदु प्रथा थी।
10. दरबार में हिंदु उत्सवों का मनाना बंद कर दिया।
उुसके शासन का आधार कुरान था।उसे विश्वास था कि उसका पवित्र कर्तव्य शरियत का राज्य स्थापित करना और इस्लाम की सेवा करना है। उसका कहना है एक आस्थावान मुस्लिन के लिए ईश्वरीय मार्ग में जेहाद ही सर्वोत्कृत्ट कर्त्वय है। कुफ्र को समाप्त करना तथा दार-उल-हर्ब को दारू-उल-इस्लाम बनाना इस्लामी राज्य का आदर्श था। गैर- मुस्लिम को कुछ शर्तों पर ही जिम्मी की स्थिति प्राप्त हो सके।
ये इतनी बड़ी कहानी है पूरे तौर पर मंदिरों को तोडने की नीति लागू की गई। और जिस बनारस के मंदिर की कहानी ये झूठे और मक्कार सेक्युरिज्म के नाम पर सुना रहे है उसकी हकीकत भी इतिहास की किताबो में है।
1659 में बनारस के पुजारी को बताया था कि उसका धर्म नए मंदिर बनाने इजाजत नहीं देता है और साथ ही पुराने मंदिर तोड़ने की आज्ञा भी नहीं देता। लेकिन उसने इस सिद्धांत का पालन नहीं किया और कुछ ही वर्षो में उसकी असहिष्णुता पूरे तौर पर प्रकट होने लगी।
1644 में उसने गुजरात का चिंतामणि मंदिर के साथ ही दूसरे मंदिरों को तुडवा दिया।
दक्षिण में उसने खांडेराव का मंदिर तुड़वा दिया था।
1669 में एक आदेश दिया कि काफिरों के सब मंदिर और शिक्षालयों को गिरा दिया जाए।और उनकी धार्मिक प्रथाओं को दबाया जाए। इसको क्रियान्वित करने के लिए प्रत्येक परगने में विशेष अधिकारी भेजे गए और सूबेदारों को कहा गया कि इसके क्रियान्वयन की रिपोर्ट भेजे। इस कार्य के निरीक्षण के लिए एक दरोगा नियुक्त किया गया।इस आदेश के अंतर्गत प्रसिद्ध मंदिरों जैसे सोमनाथा का दूसरा मंदिर, बनारस का विश्वनाथ मंदिर.मथुरा का शवराय मंदिर नष्ट कर दिये गए। मुगलो के मित्र जयपुर आदि राज्यों को भी नहीं छोड़ा गया वहां भी मंदिर तोड़ दिये गए।
ये सिर्फ कुछ इतिहासकार है जो इस शख्स की धार्मिक कट्टरता को इशारे से बता रहे है। जनश्रुतियो में जाने की जरूरत नहीं है। इसकी कहानियां गांव-गांव में बिखरी हुई है। लेकिन कुछ सेक्युलर दोस्त जिनका इतिहास से रिश्ता घृणा का है। जिनको अपने होने में शर्म होती है और अतीत को काटकर वर्तमान की कहानी सिर्फ दिखती है वो किंवदंतियों को अपनी पोस्ट पर लिख रहे है। हमें इस बात पर गर्व करना चाहिए कि हमने एक ऐसे देश के तौर पर अपनी पहचान बनाएं रखी जहां कट्टरता ने बहुसंख्यकों के दिल में घर नहीं की लेकिन अगर कट्टरता कही से दिख रही है उसके जिम्मेदार ये महान सेक्यूलर दोस्त है जो औरंगजेब का नाम बदलने से अपनी चूलें हिलना मान रहे है। मेरी समझ से सेक्यूलर होना इतिहासद्रोही होना नहीं होता है। इतिहास को बदलना बड़ा मुश्किल है मेरे दोस्तों इतिहास से सबक सीखना सीखों।
सेक्यूलर का मतलब है रेशनल होना नाकि किसी भी गलत बात के समर्थन में खड़े होकर नारे लगाना।
( इन तथाकथित सेक्यूलर दोस्तों से हाथ जोड़कर माफी मांग रहा है और बता रहा हूं कि मेरा इस रोड़ का नाम बदलने की किसी योजना में कोई हिस्सा नहीं था। और मैं भक्तगणों में शामिल नहीं हूं इसीलिए सर्टिफिकेट देने की कोशिश न करे)

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