Thursday, September 3, 2015

हम कमाएं और आप लाशों पर मौज करो सरकार।


शुक्रवार की सुबह थी।  बच्चों को स्कूल जाना था। मुझे ऑफिस। तैयारी चल रही थी। कुछ दबे-ढंके स्वरों में रोने की आवाज आ रही थी। इधर-उधर देखा। कुछ दिखा नहीं। ऑफिस चला गया। देश दुनिया के बारे में खबरों पर चर्चा की और सुनी। सरकार में शामिल बौने नेताओं के दफ्तरों के चक्कर काटे, और असली सरकार देश के नौकरशाहों के कमरों के बाहर हाजिरी दी। खबरनवीसी अब यही है। दिन पूरा हुआ लौट आया। घऱ में कपड़े उतारने के साथ ही बॉलकनी में गया। तब लगा कुछ असामान्य सा है।  रात में घर लौटना होता है लिहाजा शाम से वास्ता नहीं रहता। तो शाम कॉलोनी में कैसे होती है मालूम नहीं है हमसे हमनवा नहीं है। तभी पत्नी आई और बताया कि बराबर के फ्लैट में एक जवान मौत हो गई।  एक अट्ठाईस साल का युवा अब नहीं  रहा सिर्फ तस्वीरों और अपने घरवालों की यादों के अलावा। हैरानी से फौरन गया और पता किया तो मालूम हुआ कि पांच दिन से यशोदा नाम के प्राईवेट हॉस्पिटल में पांच दिन तक जिंदगी और मौत से लड़ता रहा। डेंगी मच्छर ने काटा था। और डेंगू लाईलाज की तरह अपने साथ लेकर चला गया। ये एकदम आंख के सामने डेंगू से हुई एक और मौत थी। और जब एक मां अपने जवान बेटे की लाश पर आंसू बहा रही होंगी इस पूरी चेन से जुड़ा नौकरशाह अपने बेटे के लिए दुनिया के सबसे शानदार और मंहगें स्कूल भेजने की तैयारी कर रहा होगा। ठीक समय पर डिनर, ठीक समय पर सोना, ठीक से एसी, ठीक से बिस्तर और ठीक से आराम इस पर होगा उसका ध्यान। इतनी अय्याशी का पैसा कहा से आता है। इन नौकरशाहों को मिलने वाली अय्याशी की इस छूट की कहानी कौन लिखता है ये एक बडी़ आसान सी चीज है लेकिन एक तिलिस्म की तरह है जैसे तिलिस्म दिखता तो बहुत ही उलझा हुआ, अनसुलझी पहेली लेकिन एक चाबी मिलती है और आप को वो तिलिस्म माचिस की तिलियों की तरह ढहता हुआ दिखता है। हिंदुस्तान में नौकरशाही एक तिलिस्म है और उसकी चाबी नौकरशाहों ने कभी बनाई ही नहीं। एक बेरोक-टोक अय्याशी का खुले आम मुजाहिरा। दुनिया के तख्तें पर लूट की वैधानिक छूट। खैर मैं इस सारी चीजों को फिर से वही ले जाना चाहूंगा जहां से शुरू हुई डेंगू से एक जवान की मौत। अस्पतालों में मरते हुए लोगो की संख्या सिर्फ अखबारों में छपी हुई संख्या में तब्दील हो चुकी है। लेकिन ऐसे ही मैने पूछा कि क्या किसी सरकारी हॉस्पीटल में दिखाया था तो बताया भाईसाहब सरकारी में अब कौन डॉक्टर मिलता है मौत से पहले। बात एकदम सही दिखती है। बात एक दम अकाट्य थी। इसी बीच बात आई कि डेथ सर्टिफिकेट की। ये सर्टिफिकेट सरकार को देना है। हो सकता है इसके लिए भी चक्कर लगाने हो उस नौजवान के भाई को, पिता को या फिर किसी रिश्तेदार को। आखिर सरकार को कभी बताना पडेगा नहीं तो सरकार दंड देंगी। मैने ऐसे ही पूछा कि क्या कोई सरकारी अमले का आदमी इस मौत की दरियाफ्त करने आया। ये दीवार पर फेंकी गई आवाज थी जिसने लौटकर मुझे ही खामोश कर दिया। अरे साहब सरकार को क्या लेना-देना है। और बात एक दम से गूंज गई दिमाग में। ये नौजवान 22 साल की उम्र से काम कर रहा था। छह साल तक अपनी कमाई पर इंकम टेक्स, वैट टेक्स और भी जितने दबे-छिपे टैक्स थे सब को नियमित पर अदा कर रहा होगा। इन छह सालों में एक देश जिसमें उसका जन्म एक संयोग हो सकता है क्योंकि माता-पिता हिंदुस्तानी थे उसने लाखो रूपए दिये। कई बार तिरंगे की शान में कशीदें पढ़ते हुए लोगो को देखा होगा जो किसी न किसी सरकार नाम के तंत्र के हिस्सा होंगे। लेकिन उसको सरकार से क्या मिला। क्या उसकी मौत का सरकार से कोई रिश्ता है। क्या उसकी मौत से सरकार नाम की एक बेजान चीज पर कोई असर हुआ है। क्या सरकार को पता चला होगा कि फला-फलां नाम का नौजवान अब नहीं रहा।  जनता की सरकार को पता चला कि जनता में से एक और कम हो गया। किस वजह से मौत हुई इसका कोई अंदाजा लगा होगा या फिर इसकी दरियाफ्त की क्या सरकार ने। नहीं जनाब सरकार नाम के सिस्ट्म का आम आदमी से सिर्फ इतना रिश्ता है कि वो अपना लहू बेंचे, मजदूरी करे या कुछ भी करे लेकिन उसको टैक्स अदा करे। उस टैक्स के पैसे से अय्याशी करे, दफ्तरों में लूट का दस्तूर बनाएं एक सुरक्षा कवच में बैठे नौकरशाह,। इस नौजवान ने प्राईवेट स्कूलों में पढ़ाई की क्योंकि सरकारी स्कूलों को तबाह कर दिया और करोड़ो कीड़ों की माफिक रहने वाले हिंदुस्तानियों के लिए बना दिया नौकरशाहों ने कुछ शिक्षा माफियाओं के साथ मिलकर। एक के बाद एक स्कूलों को खत्म करते हुए लूट को शिक्षा का सबसे बड़ा नियम बनाते हुए आज चारो ओर आपको सिर्फ प्राईवेट शिक्षण संस्थानों के अलावा कुछ नहीं दिखाई देता। क्योंकि ये सब महान नौकरशाहों के फाईलों पर लिखी गई नोटिंग का कमाल है। बहुत बेजान से दिखते हुए नौकरशाह अपना कमीशन लेकर अपने बच्चों को देश के सबसे बड़े शानदार संस्थानों में दाखिला दिलाते रहे। खैर बात बहकने की। क्योंकि उस घर से आ रही रोने की आवाजे आपके कानों में तो जाती नहीं है ना साहब। जब भी वो नौजवान बीमार पडा होगा तो प्राईवेट हॉस्पीटल में दिखाया गया। आने जाने के लिए प्राईवेट साधनों का इस्तेमाल। गजब का मायाजाल। और कमाते ही टके के नेताओं और बेहद शातिर नौकरशाहों की अय्याशियों का जाल। गजब है। किसी की मौत का कोई मतलब नहीं। क्योंकि नौकरशाहों को मालूम है इस देश में आलू और आदमी दोनो की कीमत में  आदमी की कीमत बेहद कम है भले  ही वो आलू की तरह ही पैदा होते हो।  और अगर आपने एक एक्जाम निकाल कर नौकरशाहों की इस दुनिया में अपनी जगह नहीं बनाई तो फिर आपके लिए बाबा नागार्जुन की ये कविता शायद कुछ कह सके।
रहा उनके बीच मैं
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रहा उनके बीच मैं
था पतित मैं, नीच मैं
दूर जाकर गिरा, बेबस उड़ा पतझड़ में
धंस गया आकंठ कीचड़ में
सड़ी लाशें मिली
उनके मध्य लेटा रहा आंखें मींच, मैं
उठा भी तो झाड़ आया नुक्कड़ों पर स्पीच, मैं
रहा उनके बीच मैं
था पति मैं, नीच मैं।

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