मुंबई मेरी जान।
वो रोशनी की मीनार है। उसकी रोशनी की चकाचौंध में खो कर हजारों वहां पहुंचते है लेकिन जो भी लोग उस मीनार को छूते है वही अंधेंरों में गुम हो जाते है। बात इंसानियत की करना तो दूर की बात है इंसानी रिश्तों को जैसे जहरबाद हो जाता है। एक और नई कहानी। एक और नया अपराध। एक और पतन की मिसाल। शीना बोरा की कहानी क्या कहती है। पहली बात जो उससे निकलती है वो है कि इंसानी रिश्तों को लेकर लिखी गई कोई भी स्क्रिप्ट आखिरी नहीं होती है । इंसानी दिमाग में कई परतें होती है और किसी भी पर्त में अंधेरे कितने होते है आप बता नहीं सकते है। शीना बोरा बहन थी, बेटी थी, या जाने कुछ और थी। ये कहानियां आप को मीडिया बता देगा। मीडिया हवा में सूंघ कर वो तमाम रास्तें आपतक पहुंचा देगा जिन से कभी शीना बोरा या फिर इंद्राणी बोरा या फिर परी बोरा या फिर चमचमाती नियान लाईटों में खोयी हुुई महत्वाकांक्षाओं की एक निर्मम तस्वीर जो चलती फिरती थी। मुंबई में कई स्क्रिप्ट राईटर अब पुलिसवालों के इर्द-गिर्द मंडराने लगेगे क्योंकि इस कहानी में कई मोड है, भावनाओं है, सेक्स है, और रिश्तों में सेक्स है अंधी वासना है, और निर्वसन कल्पनाओं के साथ एक मीडिया है। जिसके महारथियों को संजय दृष्टि मिल गई होगी जो शीना और राहुल की कहानियां देख और सुन पा रहे होंगे। शीना का कोई रिश्ता कही और भी जोड़ने की कोशिश हो रही होगी। लेकिन अपनी नजर में सिर्फ लाईमलाईटों में जड़ गए अंधेरों की कहानी का एक और पन्ना है। वहीं लाईंटे जो आपकी आंखों को चौंधियां देती है और रोशनी के होते हुए भी आप अंधें होते है।
खुदा जाने ये दुनिया जल्वा- गाह ए नाज़ किसकी
हजा़रों उठ गए लेकिन वही रौनक़ है मज्लिस की।
मुंबई मेरी जान -2
शहर अपनी ज़मीन अपनी सड़कों के पत्थरों तक बेवफाई में डूबा हुआ है। यह चोर गडढों का शहर है। यहां रास्ता भटक जाना , खो जाना सबसे आसान काम है। यह गुमशुदा और मुर्दों का शहर है, ेक हैरतअंगे़ज तौर पर उदास शोकगीत। समय और अपने स्थान की ओर वापस जाने के दौरान रूक-रूककर खून बहाती एक याद। हमारे देखते देखते विनाश गहराता जाता है और शहर क्रुद्ध होकर खु़द को इतिहास के रूबरू ला खड़ा करता है और खु़द को मेले में बदल लेता है। (इंची अराल) एक तुर्की उपन्यास में इंची अराल ने शहर का जिक्र कुछ यूं किया था। इस वक्त मीडिया में इंद्राणी है, वही इंद्राणी जिसके लिए इतनी कहानियां मीडिया कह रहा है। अपनी हर तरीके की कुत्सित कल्पनाएं इंद्राणी की दुनिया के आस-पास बुन देगी मीडिया। लेकिन इस सबके बीच एक शहर की अनदेखी दुनिया खुलती चली जाती है। देखी हुई दुनिया इस लिए नहीं क्योंकि आम आदमी के सुख-दुख लगभग हर शहर में एक जैसे हो जाते है। मुंबई को देश में सपनों का शहर कहा जाता है। 70 एमएम का पर्दा जैसे पूरी आबादी के जेहन पर छा गया। हर हालत में सफलता और सफलता इससे कम कुछ भी मंजूर नहीं। इतनी बार मुंबई की सड़कों पर घूमा हर बार एक जैसी कहानी। सपनो में खोए लोग। सपनों में गुम और तन्हा लोग। सपने और तन्हाई में जूझने के बाद जो भी सामने आता है उसका इस्तेमाल करना एक फितरत में बदल जाता है।
मीडिया और मुंबई मेरी जान--3
"नैतिकता कैसी ? हम जैसे लोगो का काम दुस्साहसों दुर्लभ चीज़ों और मस्ती के बग़ैर नहीं चल सकता है। मैं,तुम, तुम्हारे रिश्तेदार, हम सब लुटेरे है , हरामजादों का गुट है।""जो चाहिए उसे पकड़ लो, उसे बिखेरो, उसे उछालो,उसे फेंकों, अपनी ज़िंदगी जियो, उसने सोचा क्योंकि जहा भी कोई मायने ढूंढने की उम्मीद करो, वहां मायने मिलते नहीं है। जब आपको लगता भी हो कि मायने है, तो वे आपके लिए सही नहीं होगे या जल्दी ही गायब हो जाएंगे। भविष्य के बारे में मत सोचो क्योंकि इस दुनिया का तल नर्क है, स्याही की तरह काली रात।"
"अब मुझे भविष्य की कोई चिंता नहीं है। यह अपने मायने खो चुका है, या शायद जिस भविष्य की मुझे इच्चा है अब उसका कोई वजूद ही नहीं है।" इंची अराल
कहानियां तब तक चलती है जब तक सुनने वालों की दिलचस्पी उनमें बनी रहती है। जैसे जैसे कहानियां संदर्भ खोने लगती है उनकी लय खोती है वो गुम हो जाती है। आज कहानी शीना बोरा है। आज कहानी है इंद्राणी है। आज कहानी है उनके आसपास गूंज रही है। जो भी उनसे मिला था मीडिया उसके चरित्र की चिंदी-चिंदी करके हवा में उछाल देगा। मीडिया बड़ी ब्रेकिंग देंगा- सैंडविच खाया इंद्राणी ने। इस खबर के खुलासे के कई रहस्यों पर से पर्दा उठ गया। चैनल चूक गया नहीं तो सैंडविच के शैफ से ये इंटरव्यू नहीं दिखाया कि भाई आपने जो सैंडविच बनाया और जो सिर्फ हमारे चैनल ने ही इंद्राणी को खिलाया उसमें सच बोलने वाले मसाले भी डाले है। और रिपोर्टर ने सैंडविच को बनाने की पूरी विधि टीवी पर नहीं दिखाई। सच की तलाश तेजी से होनी चाहिए। जी हां इसी तरह से देश की आबादी का रैफरेंस काम कर रहा है। देश के बाकि स्तंभ अपनी जड़ों को खो चुके है और इस रहा तो बहुत तेजी से पूरा किया है इस तथाकथित स्तंभ ने। खैर कहानी मुंबई की। कहानी में खूबसूरत लड़की है। कहानियों में कुत्सित कल्पनाएं है जो मन में जीता हूआ एक समाज जुबान पर नैतिकता की कहानियां लिए घूमता रहता है। एक के बाद एक रिश्तों की कहानियां खुल रही है।किसी टीवी चैनल पर अब तक नहीं मिला उस अधिकारी पुलिस कर्मचारी या किसी और संबंधित सरकारी कमर्चारी का बयान जिसने 2012 में एफआईआऱ नहीं लिखी। जिसने लाश मिली तो तलाश की जरूरत महसूस नहीं की। क्योंकि उसमें सेक्स नहीं, वासना नहीं , और ऱिश्तों को कलंकित करती हुई कहानियां नहीं है। टीवी दर्शक देखे ना देखे ऑफिस में बैठे लोगो को ये भाती है। क्योंकि आस-पास की दुनिया में उनको इसकी झलक मिलती है वो या तो इनमें खोना चाहते है या फिर हिस्सा न मिल पाने की वजह से दुख और हताशा में गालियां देते है