Monday, February 16, 2015

मेरे पिता-

तुमको बताना चाहिए था
लाल रंग सिर्फ खून का ही नहीं होता
क्रांत्रि का भी होता है
और रूकने का रंग भी लाल होता है
लाल रंग में भी महीन अंतर  है
तुमको बताना था उस आवाज का अंतर
जो अंतस में उतरकर मजबूर कर देती है
नारा लगाने के लिए
और उस आवाज में भी
जो भीड़ को जंगलियों में तब्दील कर देती है
उन बाजीगरों के बारे में भी बताना था
जो उठे, निकले भूख की गलियों से
और फिर सफेद झूठ के सहारे
खींच ले गए पूरी कौम को
रोशनी के नाम पर अंधी सुरंग में
सुरंग जहां से बाहर निकलने पर पत्थर लगा कर
बैठे सौदा करते रहे सिरों की संख्या की बिना पर
बता देना था कि मुस्कुराहटों में अतंर होता है
कई तरह से मुस्कुरा सकती है एक ही तस्वीर
बिना इनके जाने मैं घुस आया
जिंदगी की इस सुंरग में
नारों के बीच मैं समझ नहीं पाया
किसका चाकू मेरी कमर में घुपा है
बताना था तुमको
भीड़ में सिर्फ इंसान ही नहीं होते
और एक से नारे लगाते लोग एक से नही हो जाते
और मेरे पिता
काश तुम मुझे बता पाते
पेड़ों के रंग बदलने
और गिरगिटों के रंग बदलने का
अंतर
लेकिन मेरी जिंदगी के लिए
तुम इकट्ठा करते रहे
रोटी और दुआ आखिर तक

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