Thursday, February 12, 2015

इतिहास देखता है मिटना-मिटाना ..................................


इतिहास की किताबों को पढ़ते वक्त
कई बार कुछ पन्नों पर रूक गया
लगा कि क्या पन्ना फाड़ सकता हूं
क्या पन्ना फाड़ने से मिट जाएगा
कोई काला अध्याय
लेकिन ये तो सिर्फ एक किताब है
मैं फाड़ सकता हूं सैकड़ों किताबें के पन्नें
या फिर वो  सारी किताबें जिनमें लिखा हो ये पन्ना
लेकिन किताबों से निकला तो फिर ये रह जाएंगा
इमारतों की शक्ल में, पुराने गीतों में
या फिर ऐसे ही किसी सफ़ें में जहां मेरी नज़र नहीं जा सकती हो
कितनी इमारतों को मुझे बिम्मार करना होगा मुझे
नायको और खलनायकों के बीच कागजों में लिपटा है इतिहास
उलझा रहता हूं कई बार देर तलक
कलंक के पन्नों से इतिहास को मुक्त कराने के तरीके
फिर सोचता हूं इतिहास में नायक थे
खलनायक थे, विदूषक थे
मंत्री थे, सेनापति थे,
बिना नाम के हजारों लाखों सिपाहियों की कहानियां थी
लेकिन इसमें मेरे पुरखें कभी नजर नहीं आएं
वो लिपटे रहे  खेतों की डोलों में
कमर पर हाथ रखे , आसमान की ओर ताकते हुए
कुछ बूंदों से जिंदगी के दुश्वार होने और आसान होने की कहानियों को
कही जगह नहीं मिली होंगी सिवाए खेत गांव और खानदानों के बीच की फुसफुसाहटों के
मिटा देने भर से कुछ लाईंनें या फिर बदल देने भर से
बदल सकती है नायकों की कहानियां
त्रासदियों को बदल सकते है त्यौंहारों में
खलनायकों के सर पर रख सकते है
मर्यादाओं का मुकुट
लेकिन खेत में मिट्टी हुए
सैंकड़ों पुरखों को मिटाने
या फिर सामने लाने की जुगत
खोजना आसान नहीं है
क्योंकि उनको इतिहास के इस पन्ने में
पीडाओं के अलावा कुछ नहीं कहना है
खुशियों को उन्होंने जिया है अपने से
शिकायतों की फुर्सत ही नहीं मिली
बेहतर समय था ताक लिया आसमान को रात में और दिन में भी
उधर इतिहास अपने में एक और दिक्तत समेंटे हुए है
लिखता है उनके नाम जो इतिहास बनाते है
और
दर्ज वो भी होते है जो इतिहास मिटाने में जुटे रहते है।

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