चार धाम यात्रा अपने चरम पर थी। हजारों की
तादाद में यात्री बाबा केदार की घाटी में अपनी यात्रा पूरी कर रहे थे। बाबा के मंदिर
में आरती हो चुकी थी। हजारों लोग केदारनाथ में विश्राम कर रहे थे। पिछले साल 14 जून
से घाटी में लगातार बारिश हो रही थी। लेकिन
बाबा केदार के दीवानों को इसकी आवाज से किसी खतरे की आहट नहीं बस बाबा की भक्ति की
गूंज सुन रही थी।
रात के साढ़े नौ बजे। केदार मंदिर के ठीक ऊपर
बने चौराबारी सागर और गांधी सरोवर से गर्जना के साथ पानी का एक बड़ा रेला मंदिर की
ओर आते दिखा। पानी से प्रलय भी हो सकती है
इस कहानी को सुन-सुन कर बड़े हुए लोगों ने पहली बार इसको प्रत्यक्ष देख लिया।
क्षण भर को ठिठके लोग जब तक समझें तब तक सैलाब के साथ आ रहे पत्थर और मिट्टी ने पूरे
इलाके को अपनी चपेट में ले लिया। और भोले बाबा के गुस्से के मिथ से रची बसी केदार घाटी
जैसे मौत की घाटी बन गयी।इसके बाद की कहानी सिर्फ मौत और जिंदगी के जूझने
की कहानी है। उत्तराखंड में गंगोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम के रास्तों से जहां
भी पानी गुजर रहा था तबाही की कहानी लिखता हुआ
मैदानों में उतर रहा था। लोगों के पास बेबसी के अलावा कुछ नहीं था इस विनाश
लीला के बारे में सुनाने के लिये। पूरे देश
ने मौत की वो सिहरन महसूस की।वक्त नहीं थमता। जिंदगी भी चलती रहती है। केदार
घाटी में आई उस प्रलय को भी एक साल गुजर गया। और न्यूज नेशन एक साल बाद केदार के हालात
की कवरेज करने फिर से जा पहुंचा केदारनाथ।
एक साल में काफी कुछ बदल गया। उत्तराखंड के
लोगों कि जिंदगी और यात्रा के सरकारी इंतजाम भी। सरकार ने मोटर मार्ग को काफी हद तक
दुरूस्त कर दिया। लेकिन सड़क के किनारे चलते-चलते आपको रास्ते भर जीवनदायिनी मंदाकिनी
के उग्र रूप से तबाह हुए जनजीवन के दृश्य दिखते रहते है। सोनप्रयाग में एक बार फिर से चैकिंग । इसके बाद आप गौरीकुंड की तलहटी में। यहां
से शुरू होती है यात्रा। मीडिया का भारी जमावड़ा पूरे रास्ते भर या फिर पूरी केदार
घाटी में। हर कोई अपने कैमरे में कैद करना चाहता है साल भर बाद की केदार घाटी को। इसी
बीच कैमरों को देखकर सरगरोशियां भी तेज।
ऐसे ही एक खच्चर वाले से भेंट हुई न्यूजनेशन
की। आवाज में दर्द के साथ संजू नाम का खच्चर वाला आपने एक करीबी रिश्तेदार को इस त्रासदी
में खो चुका है। कैमरा देखा और कहा कि ऊपर पड़ी लाशों को दिखा सकते है क्या आप।
और न्यूज नेशन का कैमरा जा पहुंचा जंगल चट्टी
के जंगलों में। कैमरों में शाट्स लिये जा सकते है। और माईक से आवाजें। लेकिन कंकालों में बदल चुके
लोगों के आखिरी वक्त के दर्द को सिर्फ उऩके अपने ही महसूस कर सकते है। वो दर्द जो कंकालों को देख कर किसी अजनबी को सिहरा
सकता है। दर्जनों लोगों के सामान के बीच दर्जन भर सड़ते हुए कुछ शव और कुछ पूरी तरह
से सड़ चुके शव।
नौकरशाही को खबर को झुठलाने में सैंकेड़ भी
नहीं लगा। रूद्रप्रयाग के डीएम राघव लंगर ने पलक झपकते ही इस बात का खंडन कर दिया कि
न्यूजनेशन के कैमरे में बदनसीब तीर्थयात्रियों के सड़तें हुए शव और सवालों की तरह चुभते
हुए कंकालों को शूट कर दिखाया है। उनके मुताबिक ये पुराना पड़े शवों के वीडियों है।
अगले दिन न्यूजनेशन को फोन किया पुलिस के अधिकारियों
ने। और वो जानना चाहते थे कि शव कहां है। न्यूजनेशन
उत्तराखंड पुलिस के साथ घटनास्थल पर पहुंच गया। तो अधिकारियों के भी होश उड़ गये। पुलिस
अधिकारियों ने कैमरे पर माना कि बारह कंकाल सामने है और आस-पास के इलाके में और भी
शव हो सकते है।
इसके बाद न्यूज नेशन पहुंचा। त्रिजुगीनारायण।
भगवान शिव और पार्वती देवी के विवाह स्थल के नाम पर प्रसिंद इस गांव और पास के गांव
तोशी के बीस लोगों ने इस त्रासदी में अपनी जान से हाथ धोया। आप गांव के भीतर पहुंचें और मौत की कहानियों आप
के आस-पास आकर लिपट जाती है।
इसी बीच यही से पता चला कि त्रिजुगीनारायण से
ऊपर एक प्राचीन रास्ता है जो सीधा केदान नाथ धाम की ओर जाता है। तोशी गांव से आगे दो
नदियां पार करने के बाद एक विशाल घास का मैदान और उसके ऊपर पहाड़ों की अनवरत श्रंखला
पार करते हुए गोमकुड़ा और वहां से आगे केदार पर्वत का रास्ता। गांव वालों का दावा था
कि वहां से हजारों लोग रास्ता पार कर त्रिजुगीनारायण गांव पहुंचे थे लेकिन सैकडों लोग
रास्तों में अपनी जान से हाथ धो बैठे थे
गांव वालों की कहानी में यकीन करने का एक कारण
और था और वो था कि गांव के दो लोग वनविभाग के अफसरों की एक टीम के साथ गोमकुड़ा तक
गये थे। रास्ते के दोनों ओर लाशों और कंकालों के होने का दावा भी किया था। टीम 7 मई 2014 को ही वापस लौटी
थी। वनविभाग की टीम ने एक वैकल्पिक मार्ग की संभावना तलाश करने के लिये ये यात्रा की
थी। और यात्रा की कहानी सच थी इस बात पर वन विभाग के बीटमैन पद्माकर पांडेय ने भी मोहर
लगा थी।
यात्रा एक दम दुर्गम रास्तों से थी। कोईरास्ता
नहीं था। लेकिन जंगलचट्टी में जिस तरह से लाशें मिली थी उससे इस बात पर यकीन किया जा
सकता था। सूचना सामने थी लेकिन क्या वहां तक पहुंचा जा सकता है। क्या वहां जाना चाहिये।
क्या न्यूज नेशन 11000 से लेकर 14000 फीट की ऊंचाईं तक खबर की सच्चाईं जानने के लिये
पहुंच सकता है।एक रात लंबा सोच विचार। और आखिरकार गांव के
लोगो की एक टीम को साथ लेकर इस सफर की शुरूआत
करने का फैसला। लेकिन इसी बीच डीआईजी जीएस मरतौलियां की टीम को खबर लगी तो उन्होंने
प्रस्ताव किया कि वो अपने अनुभवी माऊंटैनियर्स के साथ इस खोज में शामिल हो सकते है।
सुबह छह बजे। फाटा हैलीपेड़ से अभियान की शुरूआत।
न्यूज नेशन को लिनचौंली तक हेलीकॉप्टर से पहुंचना था। एक अनुभवी पायलट के साथ इलाके
की जानकारी। अनुभवी पायलट लाल को इलाके की बेहद गहरी जानकारी थी और उन्होंने गोंकुरा
की ऊंचाईं के बारे में बता दिया। पहाड़ों से
जुडते पहाड। एक दम शांत दिख रहे ये पहाड़ अपने में सैकड़ों चींखों को थामें बैठे थे।
इन्हीं पहाड़ों के बीच में हजारों जिंदगियों ने अपनी सांसों से रिश्ता तोड़ दिया था।
और अब उनकी लाशों को खोजने का काम न्यूज नेशन
की पहल पर शुरू हो चुका था। पायलट बता रहा है कि इलाके में कहां से ऑपरेशन होना है।)
लिनचौली हेलीपैड पर तैयार डीआईजी मरतौलिया की अनुभवी टीम। और उनके साथ पहली बार इतनी
ऊंचाई पर जाने की तैयारी में न्यूज नेशन। हवाई रैकी। और इसके बाद सामान के साथ पूरी
टीम पहुंच गई गोंकुरा।
नेट( जहां से सब अपना सामान तैयार कर रहे है
कंधों पर सामान उठा रहे है) उसी स्पॉट पर एक वॉकथ्रू है)
11000 फीट से ऊपर ये एक चौरस जगह। काफी
मुश्किल है यहां तक पहुंचना। लेकिन केदारनाथ धाम से आये यात्री किस तरह इस रास्ते पर
पहुंचे होंगे ये सोचने भर से रूह कांप ऊंठती है।
गरूड़ चट्टी का जहां से रास्ता
एक दम खत्म हो गया है पुरानी सड़क का। शाट्स लिया हुआ है उसमें एक हेलीकाप्टर भी पड़ा
है टूटा हूआ – पहाड़ों के बीच का इसके साथ ही केदारनाथ मंदिर के सामने से लिया हुआ
है शाट्स है रास्तों का जिसके ऊपर पहाडों का सिलसिला शुरू होता है। ये अनुमान है कि
ये यात्री वहीं से चढ़ते हुए और गरूड़ चट्टी से चढ़ते हुए गौंकुरा तक पहुंचे थे)गोंकुरा या गोमकुड़ा या फिर गौरी मां का
खर्क। इन्हीं नामों से जाना जाता है इस पहाड़ को। केदार घाटी के ऊंचे पहाड़ों में शामिल
इस पहाड़ तक की चढ़ाईं किसी माऊंटैनियर्स के कोर्स में शामिल नहीं है। लेकिन अपने बच्चों
या फिर बूढ़ों के साथ बाबा केदार के दर्शनों को केदारघाटी आये हजारों लोग खौंफ के किस
आलम में होंगे इस पहाड़ पर जाते ही आप समझ जायेंगे। इस पहाड़ से नीचे झांकने का मतलब
है मौंत की आंखों में झांकना। मौत से बचते हुए तीर्थयात्री इस पहाड़ तक पहुंचे
होंगे जहां हर कदम पर मौत झपट्टा मारने के लिये तैयार बैठी है। कदम फिसले नहीं कि आप
हजारों फीट नीचे गहरी खाईंयों में कही भी गुम हो सकते है । औरन्यूज नेशन इसी गोंकुरा
पहाड से अपनी तलाश शुरू कर रहा है।इस पहाड़ से त्रिजुगीनारायण पहुंचना है। तोशी
के रास्ते। लेकिन 11000 फीट के इस पहाड से एक रास्ता गौरीकुंड उतरता है तो दूसरा रास्ता
मुनिकुटिया भी पहुंचता है। पूरी टीम में सिर्फ
एक आदमी इस रास्तें को पहचानता है
सुरेन्द्र की यारदाश्त, अपने फर्ज और डीआईजी
मरतौलिया की टीम की समझ के सहारे हम चल पड़े त्रिजुगीनारायण के रास्ते।पहाड़ में चलने के लिये जिस तरह से साजो-सामान
की जरूरत होती है वो न्यूजनेशन के पास नहीं थे। न्यूजनेशन को इस रास्तें पर जाना था
क्योंकि लोगों के यकीन पर खरा उतरना था। जंगल चट्टी में मिले कंकालों के बाद लगातार
लोग इस बात पर जोर दे रहे थे कि न्यूजनेशन को इस रास्तें पर जाना चाहिये क्योंकि यहां
काफी संख्या में कंकाल पडे है।
पहला सबक। जंगल में किसी चीज पर यकीन नहीं।
घास पकड़ कर उतरते समय आपका पैर फिसल सकता है। जिस पर पैर जमाया है वो पत्थर हिल सकता
है । दूर तलक आप को सिर्फ पहाड़ और उनकी हजारों फीट गहरी खाईंयां ही दिख रही थी। धुंध
से घिरते बादलों में डूबें पहाड आपको देखने में बेहद मासूम और खूबसूरत दिख रहे है लेकिन
इन्हीं पहाडों में सैकड़ों लोगों की जिंदगी का सूरज डूब गया। इस रास्तें पर उतरते वक्त
जरा सी चूक आखिरी चूक साबित हो सकती थी।
हर कदम सोच कर देख कर उठाना है। पहाड अब डरा
रहा था। दिल उन मासूम लोगों की मजबूरी सोच कर दिल कांप रहा था कि कैसे वो लोग यहां
तक जिंदगी की उम्मीद में चढ़ गये थे कि भगवान शायद यहां उनको बचा लेगा क्योंकि यहां
सिर्फ भगवान ही किसी को बचा सकता है।
पहाड़ में कोई रास्ता नहीं। सुरेन्द्र आगे उतर
कर देख कर बता रहा था कि कैसे उतरना है और बाकि टीम के लोगों ने हमको बताना शुरू किया
कहां से उतरना है। 10 किलोमीटर का सफर जो लगातार नीचे ती तरफ जाना है दो नदियां और
कई पहाड़ पार करने है और ये देखते हुए कि कही कोई बदनसीब का कंकाल तो टीम का इंतजार
नहीं कर रहा है
रास्तें में जंगली फूलों के मैदान तो कभी काई
से जड़ी हुई चट्टानें। पत्थरों पर चिपकी हुई काई कभी भी आपके पैरों के तले की जमीन
खिसका सकती थी या फिर आपको हजारों फीट नीचे पहुंचा सकता है। इस तरह से टीम न्यूज नेशन
लगातार एक घंटे तक चलती हुई पहुंची ऐसी जगह जहां अंतिम संस्कार करने के निशान मौजूद
थे,जीएस मरतौलिया की टीम यहां से लेकर गौरीकुंड तक पहले भी कांबिग कर चुकी थी और उसको
185 कंकाल मिले थे। डीआईजी साहब ने बताया कि शवों के डीएनए सैंपल लेकर पूरे सम्मान
के साथ संस्कार कर दिया था। लेकिन इससे आगे के रास्ते पर वो नहीं गये थे क्योंकि वो
रास्ता और भी खतरनाक था और वहां किसी इंसान के जाने की संभावना न के बराबर थी।
लगातार झाडियों, बुरांश के अनछुयें हुए जंगल।
खूबसूरत। लेकिन जिंदगी के लिये खतरनाक। दूर-दूर तक पानी के निशान नहीं। सामने ग्लेशियर
जरूर दिख रहे है जिन पर बर्फ की परत दिख रही है। लेकिन पानी नहीं। साथ चल रही टीम के
मुताबिक यदि यहां पानी नहीं है तो किसी भी स्थिति में इंसान प्यास से ही तड़प-तड़प
कर जान दे देगा। शाम के उतरते ही तापमान माईनस में चला जाता है और बारिश से बचने के
लिये यहां कोई जगह नहीं है। इसीलिये जैसे ही एक रात गुजरती है इंसान यहां हाईपोथर्मियां
के चलते मौत के आगोश में समा जाता है। दूर तक फैली ये वादियां भटक कर आये किसी भी यात्री
के लिये मौत की बाहों से ज्यादा कुछ भी नहीं।
माहौल सर्दी का था लेकिन पहाड़ उतरते
उतरते पसीने के धारायें शरीर से बह निकली और इतनी गर्मी भर आई की जैकेट कंधों पर चली आई। हर एक
उतराईं पहले से खतरनाक। सफर शुरू हुआ था घास के विशाल मैदानों से और लगातार जगह सिमटती
जा रही थी। रास्ते में उतरते वक्त जिस जगह से उतर रहे थे वो एक सूखा हुआ नाला था।।
उस रात इस नाले में पानी पत्थरों के साथ बरस रहा था। अगर लोग जान बचा कर इस तरफ आये
होंगे तो उन्होंने नाले के बीच से आने का रास्ता तो नहीं लिया होगा।
आस पास देखने का कोई रास्ता नहीं। सारे रास्तें
पर घास उग आईं। फारेस्टर सुरेन्द्र को कुछ जगहों का मालूम था लेकिन घास के उगने से
जगह का पता नहीं चल रहा था। कंकालों की तलाश अब सिमटती जा रही थी एक सुरक्षित रास्तें
की तलाश में। पूरे रास्तें में फिसलन और काई के अलावा कुछ नहीं मिल रहा था। पत्तों
पर फैर फिसल रहे थे। रास्ता खतरनाक हो रहा था। इस तरह से सात घंटों की तलाश के बाद
हम लोग सोनगंगा के किनारे तक पहुंचे। इसके किनारे पहुंचने पर पता चला कि नदी पर पार
जाने का पुल पहले ही बह चुका है । अब उस तरफ
जाने के लिये फिर से एसडीआएफ और सिविल पुलिस की मदद ली गई।
पानी की धारा इतनी तेज थी कि किसी भी कच्चे
पुल से इसको पार नहीं किया जा सकता था। चाय का इंतजाम किया गया। और रोप वे से उस पार
जाने की तैयारी। इस रोप वे से नदी पार कर फिर से पहाड पार करने थे। हम लोग पार पहुंचे लेकिन कैमरा तब तक मॉस्चर के
चलते खराब हो चुका था। इसके बाद न्यूज नेशन की टीम ने तोशी गांव तक का सफर पूरा किया
और उसके बाद चढ़ाई चढते हुए त्रिजुगीनारायण
का सफर। इस दौरान तमाम रास्तें में संभावनाये तो दिखी लेकिन कंकाल नहीं। क्योंकि घास
के इतने बड़े ढेरों में कंकाल को तलाश करना आसान नहीं था। न्यूज नेशन ने इस खतरनाक सफर को पूरा किया सिर्फ
जनता के यकीन को पूरा करने के लिये और साथ इस बात के लिये कही रास्तें में बदनसीब कंकाल
बन चुके लोग अपने अंतिम संस्कार का इतंजार न कर रहे हो।
No comments:
Post a Comment