Thursday, May 7, 2015

मोदी के कामकाज पर अरूण शौरी और अचंभित पात्रा। काम कर लीजिए मोदी साहब



आवाज पहली बार घर के अंदर से आई है। बाहर से लग रहे आरोपो को भक्तगण काफी जोरो-शोरो से ठुकरा रहे थे। लेकिन अरूण शौरी के बारे में अभी काफी कम का मुंह खुला है। क्योंकि अरूण शौरी की पत्रकारिता से बीजेपी के 2 सीट से 88 सीट तक के अभियान को काफी मदद मिली थी। लेकिन उस पत्रकारिता पर कोई सवाल नहीं उठा सकता है वो एक बेदाग, बेधड़क और बा असर पत्रकारिता थी। पत्रकारिता का स्टॉरडम हासिल किया था अरूण शौरी साहब ने बिना किसी टीवी या विज्यूअल मीडिया के। अपने मंत्रालय में शौरी साहब ने एनडीए के कार्यकाल में ठीक-ठाक काम किया था और सेंटूर जैसे विवाद को छोड़ दे तो विवादों से दूर ही रहे। खैर बीजेपी के ऐसे वर्कर में तब्दील हो गए थे जो काफी मेहनत से अपनी छाप छोड़ता है। लेकिन वक्त बदल गया है। मोदी साहब के सत्तारोहण के साथ ही सत्ता के लिए तरस रहे मरभूक्खों को एक नया मसीहा मिल गया। आगरा के पार्क से लेकर वाराणसी की सड़कों तक वादों की मोबाईल वैन घूम रही थी। पूरे देश में शाहजादे, राजमाता और शाही दामाद के कारनामों से पब्लिक भी काफी रोष में थी। और साहब दिल्ली चले आएँ। साहब के साथ एक और साहब चले आए। दिल्ली से एक और साहब मिल गए। और फिर बन गई तिकड़ी। इतना ही कहा है अरूण शौरी ने। लगभग एक साल पूरा होने को आया। दुनिया के अलग-अलग देशों में समारोह होने है। चीन की दीवार से लेकर मिनिसोटा तक जश्न ही जश्न का माहौल है। लेकिन काला धन पर उन्होंने एसआईटी बना दी थी। पूरी दुनिया के बैंकों से काला धन खुद ही खींच कर देश में आने लगा है। भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के बाद किसानों के घर विकास पहुंच गया है। मोटरव्हीकल एक्ट में काफी बदलाव हो गया है और सड़कों पर मरने वाले लोग बच गए है। बिल्डरों के हाथ लुट रहे मजलूमों के घर जाकर बिल्डरों ने उनको चाबी सौंप दी है। और देश के लिए कैंसर बन चुके भ्रष्ट्राचार को खत्म करने के लिए जुटे हुए नौकरशाहों को मोदी साहब ने एक ऐसी सुरक्षा दीवार दे दी है कि उसके पीछे बिना डरे हुए आम आदमी के लिए फैसले ले रहे है। ऐसे में अचंभित पात्रा को बहुत अचंभा हुआ अरूण शौरी के बयान से। अरूण शौरी साहब ने गेट क्रैश कर भाजपा की सदस्यता ली थी ऐसा कहा अचंभित पात्रा ने। एक साल तक का समय लोकतंत्र में काफी समय होता है दोस्तों। कम से कम पूत के पांव पालने में देखने वाले देश में। गौरतलब ये है कि ये सारे बिल यूपीए के समय में बने थे। उनमें बदलाव करना था बेहतरी के लिए ये साहब उनको भी बदतर बना रहे है। इस 11 महीने के कार्यकाल में देश को क्या हासिल हुआ ये देखना बहुत जरूरी है। पार्टी के नेता और कार्यकर्ता हर गलती के लिए पिछली सरकार के साठ साल को जिम्मेदार मानने के लिए आपको मजबूर करने के लिए जूतिया सकते है। लेकिन इस दौरान देश को जूता चाट परंपरा के नए एडिटर्स और पत्रकारों की एक जमात मिल गई है। जनता की आवाज दबाने के लिए आपनी आवाज का वोल्यूम बढ़ा दो। हालत ये है कि ये डरे हुए लोग एक पप्पू के कुछ बोलने भर से आक्रांत होकर पहले पेज पर ही एडिटोरियल लिख कर जवाब देने में जुट जाते है। कोई सवाल न करे इसीलिए गरियाने लगते है। अरे भाई देश के प्रधानमंत्री है किसी पार्टी के नेता नहीं। हर सवाल का जवाब उनको देना है। हर गलती पर आलोचना सुननी है। ऐसा नहीं है कि हर आदमी जयगान करने में जुट जाएँ। अब बस मोदी साहब से एक ही दरख्वास्त है कि एक साल में सिर्फ जबान सुनी है वादों का अंजाम नहीं देखा है कृप्या कर कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक कुछ कर के दिखाईंये नहीं तो जनता भी आवाज उठाने से चुकेगीं नहीं। रही बात अचंभित पात्रा जैसे बरसातियों की तो उनको अरूण शौरी साहब की ओर से श्रीकांत वर्मा की एक कविता शायद कुछ कह दे।
राजनीतिज्ञों ने मुझे पूरी तरह भुला
दिया।
अच्छा ही हुआ।
मुझे भी उन्हें भुला देना चाहिये।
बहुत से मित्र हैं, जिन्होंने आँखे फेर
ली हैं,
कतराने लगे हैं
शायद वे सोचते हैं
अब मेरे पास बचा क्या है?
मैं उन्हें क्या दे सकता हूँ?
और यह सच है
मैं उन्हे कुछ नहीं दे सकता।
मगर कोई मुझसे
मेरा "स्वत्व" नहीं छीन सकता।
मेरी कलम नहीं छीन सकता
यह कलम
जिसे मैंने राजनीति के धूल- धक्कड़ के बीच भी
हिफाजत से रखा
हर हालत में लिखता रहा
पूछो तो इसी के सहारे
जीता रहा
यही मेरी बैसाखी थी
इसी ने मुझसे बार बार कहा,
"हारिये ना हिम्मत बिसारिये ना राम।"
हिम्मत तो मैं कई बार हारा
मगर राम को मैंने
कभी नहीं बिसारा।
यही मेरी कलम
जो इस तरह मेरी है कि किसी और की
नहीं हो सकती
मुझे भवसागर पार करवाएगी
वैतरणी जैसे भी
हो,
पार कर ही लूँगा।

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